Muslim Reservation in india: पीएम नरेंद्र मोदी लगातार अपनी चुनावी रैलियों में कांग्रेस मेनिफ़ेस्टो को लेकर निशाने साध रहे हैं और पार्टी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का इल्जाम भी लगा रहे हैं। महाराष्ट्र के सातारा में एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने आरोप लगाया कि कर्नाटक में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने एक फ़तवा जारी किया और सभी मुसलमानों को ओबीसी बना दिया। कांग्रेस ने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत रिजर्वेशन पर हमला किया है और अब उसका ये एजेंडा पूरे मुल्क में इसे लागू करने का है। लेकिन हम आपको बता दें कि देश में मुस्लिम समाज को ओबीसी के तहत आरक्षण मिलना कोई नई बात नहीं है। भारत में मुस्लिम समाज की कुछ जातियों को आरक्षण दिया जाता रहा है। आइए ऐसे में जानते हैं कि देश में मुस्लिम समाज को आरक्षण कैसे दिया जाता है?
बता दें कि केंद्रीय पिछड़ा वर्ग लिस्ट में कुछ मुस्लिम समाज की जातियों को उन राज्यों में आरक्षण दिया जाता है जहां मंडल आयोग लागू है। पीआईबी में दी गई जानकारी के अनुसार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु के कुछ मुस्लिम समाज की कुछ जातियों, उत्तर प्रदेश के तेली और कायस्थ मुसलमानों, साथ ही बिहार, केरल, असम के मुसलमानों को ओबीसी के तहत रिजरवेशन दिया जा रहा है। इसके अलावा केरल में शिक्षा में 8 फीसदी और नौकरियों में 10 फीसदी सीटें मुस्लिम समाज के लिए रिजर्वड हैं। तमिलनाडु में भी 90 फीसदी मुस्लिम समाज रिजरवेशन की कैटेगरी में आता है, जबकि बिहार में मुस्लिम समाज को पिछड़ा और अति पिछड़ा के रूप में बांट कर आरक्षण दिया गया था।
आंध्र प्रदेश में मुस्लिम समाज को 5 फीसदी आरक्षण दिया गया था। हालांकि, इस आरक्षण को रद्द कर दिया गया क्योंकि ये आरक्षण पिछड़ा वर्ग आयोग से सलाह लिए बगैर दिया गया था। 2005 में मुसलमानों को पांच फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान भी दूसरी बार पास हुआ। लेकिन, आंध्र प्रदेश में आरक्षण की सीमा 51 फीसदी के पार जा रही थी। इसलिए यह आरक्षण अदालत में टिक नहीं सका। इसको ठीक करने के लिए शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर मुस्लिम आरक्षण का कोटा घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया ताकि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार न हो। इसके बाद भी मामला अदालत में चला गया। जिस पर सुनवाई जारी है।
मुस्लिम समाज की तरफ से लगातार आरक्षण की मांग की जाती रही है। लेकिन क्या इस समाज को संविधान के तहत रिजरवेशन दिया जा सकता है? महाराष्ट्र के पूर्व महाधिवक्ता श्रीहरी अणे का मानना है कि संविधान के अनुसार, धर्म के आधार पर आरक्षण देने का कहीं भी कोई प्रावधान नहीं है। साथ ही उनका कहना है कि संविधान में अल्पसंख्यकों और पिछड़े समाजों के लिए अलग-अलग अधिकार दिए गए हैं। अगर किसी मजहब के लोग इसके अंदर आ सकते हैं तो उन्हें अल्पसंख्यक या पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है। लेकिन, केवल मजहब के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत आरक्षण दिया जाना मुमकिन नहीं है। क्योंकि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है।
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