नई दिल्ली. प्रेमचंद की कहानियों में सब तरह के किरदार थे, कोई रिश्वतखोर भी था, तो कोई दब्बू भी. लेकिन निजी जिंदगी में वो स्वाभिमान से भरे हुए नायक की तरह ही थे, अंग्रेजी राज होने के बावजूद किसी से डरते नहीं थे चाहे इसके लिए कितना भी नुकसान उठाना पड़े. ऐसे में सामने उनके अपने शिक्षा विभाग का कोई अधिकारी हो या फिर जिले का कलेक्टर, प्रेमचंद विनम्र होने के बावजूद उनसे दबते नहीं थे. ऐसे ही एक बार उनकी गाय को लेकर जिले के कलेक्टर से उनका विवाद हो गया था.
स्वाभिमानी प्रेमचंद इतने थे कि जो ठान लिया सो ठान लिया, एक बार जब बीए में फेल हो गए तो तय कर लिया था कि जब तक बीए पास नहीं कर लूंगा टोपी नहीं पहनूंगा और ऐसा ही किया भी. पूरी साल अपनी पसंदीदा टोपी से दूर ही रहे. 1919 में उन्होंने प्राइवेट से बीए की परीक्षा दी और अंग्रेजी, फारसी और इतिहास से सेकंड डिवीजन में पास कर ली. वो किस कदर स्वाभिमानी थे, इसे जिले के कलेक्टर से जुड़े उनके एक विवाद से समझा जा सकता है. जब एक गाय के चलते उन दोनों के बीच तनातनी हो गई थी.
दरअसल एक बार प्रेमचंद की गाय कलेक्टर के बंगले के अहाते में घुस गई. ये गोरखपुर का वाकया है. कलेक्टर के कर्मचारियों ने गाय को पकड़ लिया और बांध लिया. कलेक्टर काफी गुस्से में था, उसने कहा कि इस गाय को गोली मार दो लेकिन पहले इसके मालिक को बुलवाओ. जब तक कलेक्टर का चपरासी गाय के मालिक का पता करता और प्रेमचंद के घर पहुंचता, दो ढाई गौभक्त कलेक्टर के बंगले के बाहर इकट्ठा हो गए और नारे लगाने लगे. कलेक्टर की तरफ से जो लोग बात करने बाहर आए, उनको भीड़ ने कह दिया कि अगर गौमाता को मारा तो बवाल हो जाएगा. जब प्रेमचंद कलेक्टर के घर पहुंचे, तो उन्होंने बाहर खड़ी भीड़ को अपने तर्कों से समझाया और फिर घर के अंदर गए.
तब तक कलेक्टर उस भीड़ की वजह से और ज्यादा तनाव में आ चुका था. प्रेमचंद ने पूछा, आपने मुझे याद किया क्या? कलेक्टर ने कहा, हां याद किया, क्या ये गाय आपकी है? प्रेमचंद ने हां में जवाब दिया तो कलेक्टर बोला, ये हमारे अहाते में घुस आती है, हम इसको गोली मार देगा. प्रेमचंद ने शांति से जवाब दिया कि आपको मारना ही तो मार देते, मुझे क्यों बुलाया?
कलेक्टर को इस जवाब की उम्मीद नहीं थी, बोला- मैं कलेक्टर हूं, इसको सच में गोली मार दूंगा अगर अगली बार मेरे घर में घुसी तो. प्रेमचंद भी स्वाभिमानी थे, उन्हें पता था कि गाय तो गाय है, क्या पता फिर घुस जाए. इसमें वो क्यों माफी मांगें जैसा कि कलेक्टर उम्मीद जता रहा होगा. बोले- आपको गोली मारना हो तो मार दीजिएगा, लेकिन मुझे अगली बार याद ना कीजिएगा. इतना कहकर प्रेमचंद उठकर चले गए और कलेक्टर हक्का बक्का रह गया.
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