नई दिल्ली: इंदिरा गांधी 1967 मे चुनाव जरूर जीत गई थीं, लेकिन 78 सीटें कम आईं थीं और सीट हारने के बावजूद कामराज ही अभी कांग्रेस प्रेसीडेंट थे. इस बार तो सिंडिकेट भी नहीं चाहता था कि इंदिरा गांधी पीएम बनें, लेकिन इंदिरा मजबूत पोजीशन में थीं. ऐसे में फिर से मोरारजी देसाई ने पीएम बनने की इच्छा जाहिर की, इंदिरा ने फिर से अपने मास्टर ब्रेन द्वारका प्रसाद मिश्रा को फोन लगाया, लेकिन उन्होंने गेंद यूपी के सीएम सीबी गुप्ता के पाले में डाल दी. डीपी मिश्रा वैसे भी मोरारजी के काफी करीबी थे. इंदिरा नहीं चाहती थीं कि इस बार भी चुनाव हों, कामराज ने दोनों को मिलने बुलाया.
मोरारजी डिप्टी प्राइम मिनिस्टर के साथ होम मिनिस्ट्री भी चाहते थे, इंदिरा तैयार नहीं हुईं. इधर मोरारजी ने पीएम के लिए अपनी उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया. तब सीबी गुप्ता ने मोरारजी से मुलाकात की और इंदिरा के कहने पर उन्हें डिप्टी पीएम और फाइनेंस मिनिस्टर का पद ऑफर किया. लेकिन उनके नाम पर वाईवी चाह्वाण ने फच्चर फंसा दिया.
तो मोरारजी फिर बिदक गए, और सरकार मे शामिल होने से मना कर दिया. कामराज के समझाने पर वो मान गए और इस तरह मोरारजी देसाई इंदिरा के बाद नंबर टू बन गए और इंदिरा दूसरी बार भी पीएम बन गईं. मोरारजी देसाई को केबिनेट में डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बनाने के पीछे ऐसी कौन सी मजबूरी थी, जानने के लिए देखिए हमारा ये वीडियो शो, विष्णु शर्मा के साथ.
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