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कब है सिंधारा दूज, जानिए इसका महत्व और पूजा विधि

कब है सिंधारा दूज, जानिए इसका महत्व और पूजा विधि

नई दिल्ली: सिंधारा दूज, जिसे भारतीय पंचांग के अनुसार दूज तिथि को मनाया जाता है, विशेषकर महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष सिंधारा दूज 2024 में 6 अगस्त को पड़ी है। इस दिन विशेष रूप से माताएँ और महिलाएँ अपने परिवार की समृद्धि, सुख-शांति और खुशहाली की कामना करती हैं। सिंधारा दूज को ‘सौभाग्य दूज’, ‘प्रीति द्वितीया’, ‘स्थान्य वृद्धि’ या ‘गौरी द्वितीया’ आदि के नामों से भी जाना जाता है।

सिंधारा दूज का महत्व

सिंधारा दूज एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है, जो हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से महिलाओं के लिए होता है, जो अपने परिवार की समृद्धि और कल्याण की कामना करती हैं। इस दिन मां गौरी की विशेष पूजा, व्रत और पारंपरिक रीतियों के माध्यम से महिलाएं अपनी कामनाओं की पूर्ति करती हैं। सिंधारा दूज का महत्व खासकर उत्तर भारत में अधिक है। इस दिन महिलाएं अपने घरों को सजाती हैं, खासतौर पर पूजन स्थान को स्वच्छ और सुंदर बनाती हैं। पूजा के दौरान सिंधारा की पूजा की जाती है, जिसे शुभ और सौभाग्य लाने वाला माना जाता है। सिंधारा दूज का उद्देश्य घर में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करना होता है।

सिंधारा दूज का शुभ मुहूर्त

सिंधारा दूज का त्यौहार भाद्रपद मास की दूज तिथि को मनाया जाता है। इस साल सिंधारा दूज 6 अगस्त 2024 (सोमवार) को है। पूजा का शुभ मुहूर्त दूज तिथि प्रारम्भ: 5 अगस्त 2024, शाम 6:04 मिनट से लेकर दूज तिथि की समाप्ति 6 अगस्त 2024 रात 11:05 बजे होगी। उदयातिथि के अनुसार सिंधारा दूज 6 अगस्त को मनाई जाएगी। पूजा का समय: सुबह 7:00 बजे से 9:00 बजे तक

सिंधारा दूज की पूजा विधि

1. सबसे पहले दीपक जलाकर उसकी लौ को देखकर व्रत का संकल्प लें।

2. मिट्टी के गोले को पूजा स्थान पर रखें और उसकी पूजा करें। इसे सिंधारा दूज की पूजा का प्रतीक माना जाता है।

3. चने की दाल और मूँग की दाल को एक स्थान पर रखें और उनके चारों ओर दीपक जलाएं।

4. रक्षासूत्र को अपने हाथ में बांधें और परिवार की सुख-शांति की प्रार्थना करें।

5. पूजा के अंत में मिठाइयाँ और भोग देवी-देवताओं को अर्पित करें और सभी को वितरित करें।

6. इस दिन सफेद रंग के वस्त्र दान करने से चंद्र देव और भगवान शिव की भी कृपा मिलती है।

7. इस दिन विवाहित महिलाएं अगर मंदिर जाकर माता पार्वती को 16 शृंगार अर्पित करती हैं तो इससे माता की विशेष कृपा होती है।

8. इस दिन चावल और दूध से बनी खीर का दान करना काफी शुभ माना जाता है।

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