इलाहाबाद में इस स्कूल को जर्मन और ब्रिटिश नन चलाती थीं. उनको भारतीय परम्पराओं के बारे में ज्यादा पता नहीं था. ये तो आज भी कहीं कहीं हो जाता है कि मेंहदी लगा कर जाने पर या स्कूल में होली खेलने पर मिशनरी स्कूलों में सजा दे दी जाती है. इंदिरा के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक नन ने इंदिरा और उसकी सहेलियों के रंग बिरंगे हाथों को देखा तो उन्हें पकड़कर साथ ले गईं.
नई दिल्ली: इंदिरा गांधी का बचपन शुरू से ही काफी अनियमित सा रहा था, पिता पंडित नेहरू अक्सर कांग्रेस के आंदोलनों के चलते या तो शहर से बाहर होते थे या फिर जेल में और मां अक्सर बीमार रहती थीं. कभी इंदिरा का एडमीशन पुणे में किया गया, कभी शांति निकेतन में, मां को इलाज के लिए स्विटजरलैंड ले जाया गया तो वहां भी उनका एडमीशन करवाया गया. इलाहाबाद के तो कई स्कूलों में वो पढ़ी थीं. ऐसे ही इलाहाबाद के एक ईसाई मिशनरीज स्कूल में उन्हें होली खेलने के चलते सहेलियों के साथ बेंच पर खड़ा रहने की सजा दी गई थी, उस वक्त इंदिरा की उम्र मुश्किल से 10 साल की रही होगी.
इस स्कूल का ना था सेंट मेरी स्कूल, इलाहाबाद में इस स्कूल को जर्मन और ब्रिटिश नन चलाती थीं. उनको भारतीय परम्पराओं के बारे में ज्यादा पता नहीं था. ये तो आज भी कहीं कहीं हो जाता है कि मेंहदी लगा कर जाने पर या स्कूल में होली खेलने पर मिशनरी स्कूलों में सजा दे दी जाती है. इंदिरा के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक नन ने इंदिरा और उसकी सहेलियों के रंग बिरंगे हाथों को देखा तो उन्हें पकड़कर साथ ले गईं. हालांकि इंदिरा ने एक बार बताया था कि वो स्कूल में होली नहीं खेल रही थी बल्कि एक दिन पहले के रंग उनके हाथ से उतरे नहीं थे. जब नन उन सभी लड़कियों पर गुस्सा हुई तो इंदिरा ने प्रतिरोध किया कि क्या हुआ, होली ही तो है?
लेकिन मासूम इंदिरा को उस वक्त क्या पता था कि देश गुलाम है और ये बाहरी लोग होली दीवाली नहीं मनाते हैं. उस वक्त तो तो स्कूलों की होली दीवाली पर ऑफीशियल छुट्टियां भी नहीं होती थीं। नन को इंदिरा का ऐतराज जताना नागवार गुजरा और उसने इंदिरा समेत सभी लड़कियों को बेंच पर खड़े रहने की सजा सुना दी। इंदिरा को स्कूल में केवल दो बार ही सजा मिली थी, इसलिए इस घटना के साथ साथ वो दोनों सजाओं को याद रखती थीं और कई लोगों से इन घटनाओं का जिक्र किया था.
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