देश-प्रदेश

जब इंदिरा गांधी को मिली 1971 की जंग के इस हीरो की बगावत और तख्ता पलट की खबर

नई दिल्ली. हर भारतीय 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने के लिए इंदिरा गांधी की अचूक रणनीति और हिम्मत के लिए लिए जानता है. इंदिरा के सर पर जो कामयाबी का सेहरा बंधा, उसका काफी कुछ क्रेडिट भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ सैम मानेकशॉ के हिस्से भी है. ऐसे में अगर पीएम को सारी गुप्तचर एजेंसियों ने ये खबर दी कि सेना के कमांडर इन चीफ सैम मानेक शॉ के नेतृत्व में कभी भी पाकिस्तान की तरह तख्तापलट हो सकता है, तो ये बड़ी बात थी. इंदिरा के लिए तो ये हैरानी भरा मसला था.

इंदिरा को उनके करीबी मंत्रियों ने भी जानकारी दी तो ये जानकर इंदिरा बुरी तरह चौंक गईं. पहली बार पीएम बनने के समय गुलजारी लाल नंदा की बीएसएफ टुकड़ियों को दिल्ली बुलाने की बात भी उनको याद थी. लेकिन सैम को लेकर उन्हैं यकीन नहीं था, आखिर सैम से उनके रिश्ते खाली पीएम और कमांडर इन चीफ वाले तो थे नहीं, बल्कि उससे भी ज्यादा दोस्ती वाले थे. इधर सैम जहां भी जाते लोग उनसे पूछते कि कब टेकओवर कर रहे हैं. दरअसल कांग्रेस सिंडीकेट के पुराने नेताओं को किनारे लगाते ही उन्होंने बाकी विरोधी पार्टियों से हाथ मिला लिया था. इसके चलते बिना सोशल मीडिया के ही अफवाहों का बाजार जोरों से गर्म था.

इंदिरा पर रहा नहीं गया, इंदिरा ने सीधे सैम मानेक शॉ को पीएम आवास पर बुलवा लिया और सीधे पूछ लिया कि ”आर यू ट्राइंग टू टेकओवर मी?” कई सेकंड्स तक सैम मानेक शॉ के हलक से आवाज तक नहीं निकली. इंदिरा का सेंस ऑफ ह्यूमर इतना अच्छा नहीं था कि वो ऐसा मजाक करने के लिए घर बुलातीं और वो उस वक्त देश की सबसे ताकतवर शख्सियत थीं. मानेक शॉ ने सीधे उनसे ही पूछ लिया कि, ”आप क्या सोचती हो?” तो इंदिरा का जवाब था- ”तुम नहीं कर सकते”. सैम को माहौल हलका करने का मौका मिल गया और मुस्कराकर पूछ डाला कि ”क्या आपको मेरी क्षमता पर शक है?”

बाद में दोनों के बीच इस षडयंत्र की अफवाह पर ढंग से चर्चा हुई, जिसमें सैम ने उनको अपने करीबियों की अफवाहों पर ध्यान ना देने और उन पर भरोसा करने की सलाह दी. यही सैम मानेक शॉ ने बांग्लादेश के लिए छिडी जंग में अपने खिलाफ उठने वाली सभी आवाजों को खामोश रहने पर मजबूर कर दिया. ये सैम ही थे जिसने इंदिरा को जल्दबाजी में पाकिस्तान से युद्ध छेड़ने के लिए मना किया था, और तैयारी के लिए कुछ महीने लिए थे. इंदिरा ने सैम की बात मानकर इंतजार किया और 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग कर दिया.

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Aanchal Pandey

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