देश-प्रदेश

जिस चिकमंगलूर में आज राहुल पहुंचे, जानिए उस शहर से जुड़ीं उनकी दादी की दिलचस्प यादें

नई दिल्ली. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जब 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनावों में अनियमितताओं का दोषी ठहराया और 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिया तो इंदिरा सुप्रीम कोर्ट से फौरी राहत तो ले आईं, लेकिन 25 जून को देश में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया. फिर जेपी आंदोलन की ऐसी आंधी चली कि इंदिरा ने जब इमरजेंसी खत्म करके चुनाव करवाए तो आलम ये हुआ कि इंदिरा और संजय दोनों मां-बेटे अपनी सीट पर हार गए. कांग्रेस 350 से खिसककर 153 सीट्स पर आ गई. लोकसभा में गांधी की नामौजूदगी में यशवंत राव चाह्वाण को लीडर ऑफ अपोजीशन बना दिया गया. इस हार के बाद कांग्रेस में फिर फूट पड़ीं, इंदिरा ने अपनी पार्टी का नाम कांग्रेस (आई) यानी कांग्रेस (इंदिरा) कर लिया. ऐसे वक्त पर जबकि इंदिरा लोकसभा सीट भी ना जीत सकीं, उनको चिकमंगलूर ने ही रास्ता दिखाया था.
 
आज राहुल जिस शृंगेरी मठ में पहुंचे हैं, वहीं कभी चिकमंगलूर से चुनाव लड़ने से पहले इंदिरा गांधी भी पहुंची थी और दो साल के अंदर फिर से पीएम बन गईं. उसी मौके पर कर्नाटक सीएम देवराज उर्स ने उन्हें चिकमंगलूर से लडने का न्यौता दिया, इंदिरा राजी हो गईं. अगले साल ही इंदिरा को लोकसभा में लाने के लिए चिकमंगलूर सीट पर कांग्रेस सांसद डी बी चंद्रेगॉडा ने सीट से इस्तीफा दे दिया, उस सीट पर उपचुनाव हुआ. उस जिले की आठों विधानसभा सीट पर कांग्रेस काबिज थी, सो जीतना आसान था. उसी चुनाव में एक दिलचस्प नारा लगा- एक शेरनी दस लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर. इंदिरा जीत कर इंदिरा फिर से लोकसभा में आ गईं.

मोरारजी देसाई ने इस चुनाव में इंदिरा के खिलाफ कैम्पेन करने से साफ मना कर दिया था, लेकिन जॉर्ज फर्नांडीज काफी गुस्से में थे. उनको कई महीने जेल में रखा गया था, वो इंदिरा से बदला लेना चाहते थे. चिकमंगलूर में उन्होंने इंदिरा के खिलाफ मोर्चा संभाला और कई दिनों पहले से चिकमंगलूर में डेरा डाल दिया. वो हर उस जगह पर जाकर फौरन बाद में सभा करते थे, जहां इंदिरा कर चुकी होती थीं. इंदिरा जो जो दावा अपनी सभा में करतीं, जॉर्ज का काम उनके दावों की धज्जियां उड़ा देने था.

इंदिरा गांधी के लिए उन चुनावों में जो पोस्टर बनवाया गया था, उस पर लिखा था, ‘गिव यॉर वोट टू यॉर लिटिल डॉटर’. एक पोस्टर विपक्ष ने भी लगाया लेकिन भारी पड़ गया, ये पोस्टर था किंग कोबरा का. दरअसल इस पोस्टर में इंदिरा को किंग कोबरा की तरह दिखाया गया और नीचे लिखा था कि सावधान, इस इलेक्शन के जरिए ये कोबरा अपना फन फैलाने वाला है. दूसरे पोस्टर में लोगों को कोबरा को कुचलते दिखाया गया था. लेकिन उन्हें ये अनुमान नहीं था कि कर्नाटक के उस इलाके में कोबरा की पूजा होती है, लोगों ने उस पोस्टर को धार्मिक भावनाओं के खिलाफ बताया. जिसका सीधा फायदा इंदिरा को मिला. इंदिरा की तरफ से एक नारा भी दिया गया था, जो उन दिनों काफी चर्चित रहा था… एक शेरनी सौ लंगूर…चिकमंगलूर चिकमंगलूर.

इसी चुनाव प्रचार के वक्त एक वक्त ऐसा मौका आया कि इंदिरा गांधी को नन बनकर अपनी जान बचानी पड़ी थी. दरअसल उस वक्त केन्द्र में जनता पार्टी सरकार थी. जॉर्ज फर्नांडीज केबिनेट मंत्री थे और काफी ताकतवर तो थे ही, इंदिरा को बर्बाद करने की कसम भी खाए बैठे थे. एक बार चिकमंगलूर शहर के पास जब जॉर्ज को खबर लगी कि इस रास्ते इंदिरा का काफिला आने वाला है, जॉर्ज ने सड़क को ब्लॉक कर दिया और वहां सभा करने लगे. देवराज उर्स को अपने प्रशासनिक अमले से इस बारे में जानकारी रास्ते में ही मिल गई. लेकिन केन्द्रीय मंत्री से भिड़ने की उनकी हिम्मत नहीं थी. अब चूंकि ऐन वक्त पर जानकारी मिली थी, सो लौटा भी नहीं जा सकता था. इंदिरा को उस रास्ते ले जाना भी सुरक्षित नहीं था. तो इंदिरा एक पुरानी कबाड़ कार में बैठीं और नन की तरह की ड्रेस पहनकर बैठ गईं ताकि किसी को शक ना हो. फिर मुख्य सड़क से इंदिरा की वो कार इंदिरा को लेकर पगडंडियों पर खेतों में उतर गई. मुख्य काफिला आगे चिकमंगलूर की तरफ बढ़ गया. तब जाकर इंदिरा किसी तरह बच पाईं. इंदिरा गांधी की दोस्त पुपुल जयकर ने इस घटना का उल्लेख अपनी किताब ‘इंदिरा गांधी: ए बायोग्राफी’ में किया है.

लेकिन इंदिरा को चिकमंगलूर की आखिरी रैली भी छोडनी पड़ गई, उनके दोस्तों को खबर लगी कि वहां जॉर्ड फर्नांडीज बड़ा बवाल करने के मूड में हैं तो जिस जगह वो रुकी थीं, उनकी वो  कार ही गायब कर दी. इस तरह इंदिरा को वहां जाने से रोक दिया गया. लेकिन वो इलाका कांग्रेस का गढ़ था, इसलिए इंदिरा आसानी से चुनाव जीत गईं.

वक्त के थपेड़ों ने इंदिरा को इतना रुलाया कि वो ना केवल धार्मिक हो गईं बल्कि ज्योतिषियों और तांत्रिकों तक पर भरोसा करने लगी थीं. ये ऑनरिकॉर्ड है चिकमंगलूर से इलेक्शन लडते वक्त ज्योतिषी की सलाह पर 6 अक्टूबर को 12.30 बजे ही पर्चा भरा. चिकमंगलूर चुनाव के बाद इंदिरा सीधे अरुणाचल प्रदेश के रमणा महर्षि आश्रम में पहुंचीं. वो रमणा श्रषि के उस कमरे में एक घंटे अकेली बैठी रहीं, जहां वो रहते या सोते थे. आपको अब मोदी और इंदिरा में कोई खास अंतर नजर नहीं आ रहा होगा. अक्सर पीएम मोदी के वीडियो सामने आते रहे हैं कि वो भाषण देते देते रुक गए क्योंकि पास में ही कहीं से अजान की आवाज आ रही थी. ऐसी ही आदत इंदिरा गांधी की भी थी, अजान के वक्त भी भाषण देते देते वो भी रुक जाती थीं, कई किताबों में इसका जिक्र किया गया है, लेकिन आज की तरह तब के ऐसे वक्त के वीडियोज नहीं है. पुपुल जयकर की बायोग्राफी में चिकमंगलूर की ऐसी ही एक घटना का जिक्र भी है.

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Aanchal Pandey

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