नई दिल्ली: कर्नाटक चुनाव से पहले कांग्रेस ने जो अपना मेनिफेस्टो जारी किया है उसमें पार्टी का एक वादा इस समय सियासत गरमाए हुए है. दरअसल कांग्रेस पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में कहा है कि यदि उसकी सरकार राज्य में आती है तो वह बजरंग दल पर बैन लगाएगी. कांग्रेस के इस वादे ने […]
नई दिल्ली: कर्नाटक चुनाव से पहले कांग्रेस ने जो अपना मेनिफेस्टो जारी किया है उसमें पार्टी का एक वादा इस समय सियासत गरमाए हुए है. दरअसल कांग्रेस पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में कहा है कि यदि उसकी सरकार राज्य में आती है तो वह बजरंग दल पर बैन लगाएगी. कांग्रेस के इस वादे ने भाजपा को नई राजनीति का मौका दे दिया है. भाजपा ने बजरंग दल की तुलना भगवान हनुमान से करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधना शुरू कर दिया है.
हालांकि आज से करीब 31 साल पहले भी कांग्रेस की सरकार बजरंग दल पर बैन लगा चुकी है. दरअसल ये पूरा मामला साल 1992 के राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा हुआ है जब 6 दिसंबर 1992 को एक उन्मादी भीड़ ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दिया था. इसके बाद कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने एक्शन लेते हुए पांच संगठनों पर प्रतिबंध लगाया था जिसमें बजरंग दल भी शामिल था. जिन पांच संगठनों पर बैन लगाया गया था उनमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS), विश्व हिन्दू परिषद (VHP), इस्लामिक सेवक संघ, और जमात-ए-इस्लामी हिंद शामिल थे.
9 दिसंबर 1992 की रात को नरसिम्हा राव सरकार ने एक गजट जारी किया था. इस गजट में Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 के तहत पांच संगठनों पर प्रतिबंध लगाया गया था. उस समय ये प्रतिबंध साम्प्रदायिक उन्माद की स्थिति को देखते हुए लगाया गया था. इसलिए इन गतिविधियों पर नियंत्रण करना जरूरी था. उस समय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), विश्व हिन्दू परिषद (VHP) और बजरंग दल पर आरोप लगाया था कि ये संगठन मस्जिद विध्वंस करने में सक्रिय थे जिससे देश भर में साम्प्रदायिक उन्माद फ़ैल रहा था.
दरअसल 1984 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान बजरंग दल ने उग्र और सक्रिय भूमिका निभाई थी. अयोध्या में कारसेवकों को बजरंग दल के संस्थापक रहे विनय कटियार ने संगठित करने, राम मंदिर आंदोलन की रूप रेखा तैयार का काम किया था. रामजन्मभूमि आंदोलन को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने आक्रामक बनाया था और इस पूरे घटनाक्रम को पूरे देश के सामने हिन्दुओं की सांस्कृतिक पहचान से जोड़कर पेश किया गया.
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