राहुल बन जाएंगे कांग्रेस प्रेसीडेंट तो क्या करेंगी सोनिया गांधी?

कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालने को लेकर राहुल गांधी के सामने जो चुनौतियां हैं उसके बारे में काफी चर्चाएं हैं. लंबे समय से इस पद पर आसीन सोनिया गांधी पद छोड़ने के बाद राहुल गाइड करती रहेंगी.

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राहुल बन जाएंगे कांग्रेस प्रेसीडेंट तो क्या करेंगी सोनिया गांधी?

Aanchal Pandey

  • December 5, 2017 10:45 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

जाहिर ये सवाल हर एक के मन में होगा कि राहुल गांधी कांग्रेस के प्रेसीडेंट चुन लिए जाएंगे तो उनकी मां सोनिया गांधी क्या करेंगी? ये भी अजब संयोग है कि सोनिया गांधी इसी 9 दिसम्बर को पूरे 71 साल ही होने जा रही हैं सोनिया गांधी. राहुल के सामने जो चुनौतियां हैं, उनके बारे में तो तमाम चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन सोनिया गांधी के पास क्या विकल्प होंगे, इनके बारे में बातें कम हो रही हैं. कांग्रेस के ऑफिशयल बयान में केवल यही आया है कि वो लगातार गाइड करती रहेंगी.

ये तो वैसे भी जाहिर था क्योंकि उनका बेटा ही कांग्रेस प्रेसीडेंट बनेगा और जितना तजुर्बा सोनियां गांधी को इस पद पर रहने का है किसी भी कांग्रेस अध्यक्ष को नहीं था. दिसम्बर में और वो कांग्रेस प्रेसीडेंट बने रहतीं तो उन्हें इस पद पर पूरे बीस साल हो जाते. 1998 में जब उन्हें इस पद के लिए राजी किया गया था तो कांग्रेस की महज 4 प्रदेशों में सरकार थी, राहुल के वक्त में फिर भी एक ज्यादा है और पांडिचेरी जैसा केन्द्र शासित प्रदेश भी. हालांकि सोनिया ने जब ये पद संभाला तो कांग्रेस की लोकसभा में 114 सीटें थीं, जो अब घटकर महज 44 पर सिमट गई हैं. ये अलग बात है कि एक साल के अंदर सोनिया की अगुवाई में कांग्रेस की 14 राज्यों में सरकार बन गई थी. हालांकि ऐसे में राहुल के सामने ये बड़ी चुनौती होगी कि पहले गुजरात और फिर अगले साल ही कर्नाटक के बाद एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे बीजेपी के मजबूत गढों में चुनाव होंगे, जिन्हें भेदना राहुल के लिए आसान नहीं होगा. अगर इन सब राज्यों में राहुल कड़ी टक्कर भी नहीं दे पाए तो 2019 भी उनके हाथ से जाना तय है.

ऐसे में चूंकि चुनाव आयोग से भी 31 दिसम्बर तक चुनाव प्रक्रिया पूरे करने का दवाब था, नीचे के लेवल पर हो ही चुकी थी. सोनिया की उम्र और स्वास्थ्य भी उनका साथ नहीं दे रहा था. 1 से 4 दिसम्बर तक नामांकन होना था, जिसमें शहजाद पूनावाला का हंगामा तो हुआ लेकिन कोई दूसरा नाम सामने नहीं आया. आज स्क्रूटनी में ये पता चलेगा कि विभिन्न प्रदेशों की कांग्रेस कमेटियों को भी नामों की सिफारिश करनी होती है, कांग्रेस के फ्रंटल संगठनों को भी करनी होती है, तो उनकी तरफ से तो राहुल के अलावा कोई और नाम तो नहीं है. हालांकि ऐसा होना अचम्भा ही होगा, सभी ने राहुल के नाम पर मोहर लगाई होगी. तो ये तय है कि भले ही कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव प्रभारी ने 19 दिसम्बर की तारीख रखी हो, लेकिन ये सब तय सोनिया गांधी के जन्मदिन यानी 9 दिसम्बर तक ही हो जाएगा, उस दिन गुजरात के पहले चरण का चुनाव भी है.

जब से 2013 में राहुल गांधी को कांग्रेस का वाइस प्रेसीडेंट बनाया गया था तभी से ये माना जा रहा था कि सोनिया गांधी अब आराम चाहती हैं. पिछले दो साल में वो चार से पांच बार हॉस्पटलाइज्ड रह चुकी हैं, देश से बाहर भी. हाल ही में उन्हें शिमला से रातों रात लाकर दिल्ली के गंगाराम हॉस्पिटल में भर्ती किया गया. दूसरे सोनिया अब अपने परिवार को भी समय देना चाहती हैं, जिनमें प्रियंका के बच्चों के लिए समय निकालना, इटली में अपने रिश्तेदारों के पास जाना और तीसरे राहुल के परिवार के बारे में भी सोचना क्योंकि 71 साल की उम्र कोई कम नहीं होती.

ऐसे में क्या वो कांग्रेस से एकदम किनारा कर लेंगी? या फिर किसी मार्गदर्शक मंडल की सदस्य बन जाएंगी? कांग्रेस अध्यक्षों के इतिहास में जाएं तो आप पाएंगे कि गांधी-नेहरू परिवार में पिछले दोनों अध्यक्ष यानी राजीव गांधी और इंदिरा गांधी मरते दम तक इस पोस्ट पर रहे. इंदिरा भी 1978 से लगातार कांग्रेस अध्यक्ष और पीएम पोस्ट पर बनी रहीं तो राजीव उनकी मौत के बाद कांग्रेस अध्यक्ष और पीएम के पद दोनों पर काबिज रहे, पीएम की कुर्सी तो अगले आम चुनाव में उनके हाथ से चली गई लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष का पद उनकी हत्या के बाद ही किसी को मिला.

जबकि जवाहर लाल नेहरू भी 1951 से 1954 तक पीएम रहते भी कांग्रेस अध्यक्ष का पद तब तक संभालते रहे जब तकि उनको यूएन ढेबर जैसा विश्वसनीय हाथ नहीं मिल गया, बीच में एक बार इंदिरा को भी बनाया, लेकिन उन्होंने अपेंडिक्स के ऑपरेशन और नेहरू को उनकी मदद बाधित हुई तो छोड़ दिया. तो ये तय था कि सोनिया गांधी भी अपने किसी विश्वसनीय या घर के आदमी के लिए ही ये पद छोड़ेंगी और 71 साल की उम्र और 19-20 साल का लम्बा कार्यकाल इसके लिए काफी था.

सोनिया गांधी के पास कई विकल्प होंगे, जिनमें वो शांति के साथ राजनीति में बने भी रह सकती हैं, राहुल को मदद करते हुए भी परिवार को समय दे सकती हैं. जिनमें से सबसे मुफीद है यूपीए के चेयरपरसन की पोस्ट, जिस पर वो अभी भी हैं, वैसे भी बाकी पार्टियों से रिश्ते बनाने के लिए सोनिया जैसी ही कोई कद्दावर और कूल हस्ती ही चाहिए. कांग्रेस वर्किंग कमेटी और गांधी-नेहरू परिवार के कई ट्रस्ट हैं जहां वो हैं भी और आगे भी रह सकती हैं. ऐसी बातें भी चल रही हैं कि उनके लिए संरक्षक जैसा पद भी ईजाद किया जा सकत हैं लेकिन ज्यादा अनुमान इसी बात के हैं कि सोनिया गांधी को यूपीए के चेयरपरसन जैसे सम्मानित पद ही सुशोभित रखा जाए.      

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