नई दिल्ली: मोसाद को दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसियों में से एक माना जाता है. इसका नाम सुनते ही बड़े-बड़े आतंकियों के पैरों तले जमीन खिसक जाती है. अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और रूस की खुफिया एजेंसियां हैं. लेकिन मोसाद को बेहद खतरनाक एजेंसी कहा जाता है.
मोसाद इजराइल की खुफिया एजेंसी है ये न केवल अपने देश के लिए बल्कि दुनिया भर में आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत दीवार के रूप में भी जानी जाती है. मोसाद की स्थापना 13 दिसंबर 1949 को तत्कालीन प्रधान मंत्री डेविड बेन गुरियन की पहल पर की गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद से लड़ना और इज़राइल की राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना है. शुरुआत में इसकी स्थापना सेना खुफिया विभाग, आंतरिक सुरक्षा सेवा और विदेश विभाग के सहयोग से की गई थी. 1951 में इसे प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन कर दिया गया, जिसके कारण यह सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है.
मोसाद का पूरा नाम इंस्टीट्यूट फॉर इंटेलिजेंस एंड स्पेशल ऑपरेशंस है। मोसाद का काम बेहद गोपनीय और रणनीतिक है. इसकी टीम अपने कामकाज में बहुत कुशल है. एजेंट अपने लक्ष्य की पहचान करने से पहले गहन शोध करते हैं. इसके बाद वे किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पहले से ही योजना बना लेते हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक भर्ती मोसाद की ओर से की जाती है. जिसके लिए इच्छुक उम्मीदवार आवेदन करें. फ़िल्टर करने के बाद, उम्मीदवारों के साथ कई परीक्षण और साक्षात्कार आयोजित किए जाते हैं. जो उम्मीदवार सफल होते हैं उनकी पृष्ठभूमि की जांच की जाती है. मोसाद में शामिल होने से पहले उम्मीदवारों को बेहद कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है. इसमें उन्हें विभिन्न तकनीकों, फील्ड ऑपरेशंस, खुफिया जानकारी जुटाने और आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है.
मोसाद की दो प्रमुख आतंकवाद विरोधी इकाइयाँ हैं, इनमें मेट्सडा और किडॉन शामिल हैं. मेट्सडा सीधे हमला करता है, जबकि किडोन का काम गुप्त रखा जाता है. इनमें से प्रत्येक इकाई में विशेषज्ञता और विशेष प्रशिक्षण वाले एजेंट हैं. मोसाद की कार्यप्रणाली इतनी साफ-सुथरी है कि अक्सर इसका कोई सबूत नहीं मिलता.
मोसाद ने इथियोपियाई यहूदियों को इज़राइल लाने के लिए “ऑपरेशन मूसा” जैसे कई महत्वपूर्ण अभियान चलाए हैं। इसके अलावा यह विदेशों में यहूदी और इजरायली नागरिकों को निशाना बनाने वाली आतंकवादी घटनाओं के खिलाफ भी सक्रिय रूप से काम करता है।
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