नई दिल्ली: देशभर में एकबार फिर CA की चर्चाओं के बीच एनपीआर का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रदेश में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( एनपीआर) सिर्फ 2010 के फॉर्मेट में ही लागू किया जाएगा। यानी एनपीआर के पुराने और नए फॉर्मेट पर एक बार […]
नई दिल्ली: देशभर में एकबार फिर CA की चर्चाओं के बीच एनपीआर का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रदेश में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( एनपीआर) सिर्फ 2010 के फॉर्मेट में ही लागू किया जाएगा। यानी एनपीआर के पुराने और नए फॉर्मेट पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। एनपीआर पर विवाद क्यों हो रहा है इस बात को समझने के लिए हमें दोनों फॉर्मेट में क्या अंतर है ये समझना जरुरी होगा।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर:
NPR एक डेटाबेस है जिसमें देश के सभी सामान्य निवासियों की सूची होती है। इसका उद्देश्य देश में रहने वाले लोगों का एक व्यापक पहचान डेटाबेस रखना है।
दरअसल, एनपीआर एक रजिस्टर है जिसमें 1 गांव या ग्रामीण क्षेत्रों या कस्बे या वार्ड या किसी शहर या शहरी क्षेत्र में 1 बोर्ड के भीतर सीमांकित क्षेत्र में सामान्य रूप से निवास करने वाले व्यक्तियों का विवरण होता है. यह पहली बार 2010 में तैयार किया गया था, जिसके बाद 2015 में इसे अपडेट किया गया था. इसके बाद 2020 में इसका एक नया अपडेट वर्जन लाया गया।
सरकार के मुताबिक एनपीआर का मकसद देश में सामान्य निवासियों का एक डेटाबेस तैयार करना है. सरकार का कहना है कि डेटाबेस के लिए कोई दस्तावेज जमा नहीं किया जाएगा लेकिन नए फॉर्मेट में कुछ सवाल जोड़े गए हैं जो 2010 के फॉर्मेट में नहीं थे. नए फॉर्मेट में जोड़े गए इन सवालो की वजह से यह पूरा विवाद छिड़ा हुआ है.
2010 में इन 15 बिंदुओं के आधार पर जानकारी इक्ठा की गई थी-
-व्यक्ति का नाम
-मुखिया से संबंध
-पिता का नाम
-माता का नाम
-पत्नी/पति का नाम
-लिंग
-जन्मतिथि
-वैवाहिक स्थिति
-जन्मस्थान
-घोषित राष्ट्रीयता
-सामान्य निवास का वर्तमान पता
-वर्तमान पते पर रहने की अवधि
-स्थायी निवास का पता
-व्यवसाय/कार्यकलाप
-शैक्षणिक योग्यता
इन तमाम जानकारियों का इस्तेमाल 2011 की जनगणना में भी हुआ था. 2010 के एनपीआर में व्यक्ति के माता-पिता की जन्म तिथि और जन्म स्थान की जानकारी नहीं मांगी गई थी और ना ही पिछले निवास स्थल की जानकारी मांगी गई थी. जबकि यह जानकारी 2020 के एनपीआर में मांगी गई है जिसको लेकर अब विवाद हो रहा है।
आधार नंबर (इच्छानुसार)
-मोबाइल नंबर
-माता और पिता का जन्मस्थान व जन्मतिथि
-पिछला निवास पता (पहले कहां रहते थे)
– पासपोर्ट नंबर (अगर भारतीय हैं)
-वोटर आईडी कार्ड नंबर
-PAN नंबर
– ड्राइविंग लाइसेंस नंबर
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनपीआर को पुराने फॉर्मेट के तहत लागू करने की बात कहते हो यह भी बताया कि बिहार सरकार ने पहले ही केंद्र को पत्र लिखा है। पत्र में एनपीआर फॉर्म से विवादास्पद धाराओं को हटाने की मांग की गई है। नीतीश कुमार ने कहा- हमने स्पष्ट कर दिया है कि नए फॉर्म में माता पिता के जन्म स्थान जैसी जानकारी देने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। ये सही नहीं है.
वही नए फॉर्मेट पर कुछ राजनीतिक दलों का मानना है कि इस तरह की जानकारी मांगना दरअसल एनआरसी की दिशा में ही आगे बढ़ना है. यानी इस तरह की जानकारी से लोगों की नागरिकता को खतरा हो सकता है. विरोधी खेमों की तरफ से इस पूरी प्रक्रिया को CAA- एनआरसी से जोड़कर देखा जा रहा है. जब देश भर में CAA के खिलाफ आंदोलन चले तब भी इस तरह की बहस जमकर हुई हालांकि तब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि एनपीआर और एनआरसी में कोई संबंध नहीं है उन्होंने यह भी कहा था कि एनपीआर डाटा का इस्तेमाल एनआरसी में नहीं किया जाएगा। लेकिन एक बार फिर इस मामले पर बहस छिड़ गई है. बीजेपी विरोधी दल तो पहले ही एनपीआर लागू करने पर असहमति जाहिर कर चुके हैं अब बीजेपी के सहयोगी नीतीश कुमार ने भी साफ कर दिया कि बिहार में एनपीआर पुराने फॉर्मेट के तहत ही लागू किया जाएगा। अब देखना होगा इस पर बीजेपी की क्या प्रतिक्रिया सामने आती है.