What is Moulding of Relief Ayodhya Case: क्या होता है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस में सभी पक्षों से 3 दिन में मांगा है जवाब

What is Moulding of Relief Ayodhya Case, Moulding of Relief Kya hai, Molding of Relief Hindi Meaning: अयोध्या जमीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट की संविधान पीठ ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद से जुड़े सभी पक्षों से तीन दिन के भीतर मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर जवाब मांगा है. ऐसे में आपके मन में सवाल होगा कि आखिर मोल्डिंग ऑफ रिलीफ क्या होता है और इसका अयोध्या केस से क्या जुड़ाव है?

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What is Moulding of Relief Ayodhya Case: क्या होता है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस में सभी पक्षों से 3 दिन में मांगा है जवाब

Aanchal Pandey

  • October 16, 2019 5:21 pm Asia/KolkataIST, Updated 5 years ago

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद अयोध्या जमीन विवाद मामले में सुनवाई पूरी हो चुकी है. 40 दिन चली सुनवाई के बाद बुधवार को शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने बहस पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख दिया है. 17 नवंबर को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के रिटायरमेंट से पहले इस मामले का फैसला आ जाएगा. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आखिरी दिन की सुनवाई खत्म कर सभी पक्षकारों से 3 दिन के भीतर लिखित में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर जवाब मांगा है. ऐसे में आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये मोल्डिंग ऑफ रिलीफ भला है क्या? कोर्ट की सुनवाई में इसका क्या महत्व है और राम मंदिर बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ की क्या भूमिका होगी?

क्या है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ (Moulding of Relief)-
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का जमीन विवाद जैसे सिविल मामलों में होता है. संविधान के आर्टिकल 142 में इसका उल्लेख है. यदि किसी जमीन पर अलग-अलग पक्षकार अपना-अपना हक होने का दावा करते हैं तो ऐसे में सभी पक्षकारों को ध्यान में रखते हुए मोल्डिंग ऑफ रिलीफ प्रावधान का उपयोग करती है. मतलब यह कि ऐसे मामलों मे यदि कोर्ट किसी पक्षकार के पक्ष में फैसला सुनाता है तो अन्य पक्षकारों के लिए मोल्डिंग ऑफ रिलीफ यानी राहत के लिए कुछ अलग विकल्प दिया जाता है.

अयोध्या केस में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ का क्या काम?
अयोध्या जमीन विवाद मामला पर पूरे देशभर की नजर है. इस केस में दो पक्षों में कोई व्यक्ति या संस्था नहीं बल्कि धर्म आमने-सामने हैं. दोनों पक्ष अपनी-अपनी दलीलों के जरिए जमीन पर अपने कब्जे का दावा कर रहे हैं. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि विवादित स्थल पर मस्जिद को तोड़ा गया, मस्जिद से पहले वहां मंदिर होने के कोई खास प्रमाण नहीं हैं. वहीं हिंदू पक्षकारों का कहना है कि 16वीं शताब्दी में राम मंदिर को तोड़कर उस जमीन पर मस्जिद बनाई गई थी. यानी कि पहले यहां मंदिर था.

यानी की सुनवाई के आखिरी दिन तक सभी पक्ष अपनी बात पर अड़े रहे. हालांकि कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अयोध्या केस में सुनवाई खत्म करते हुए सभी पक्षकारों से लिखित में तीन दिन के भीतर मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर जवाब मांगा है. यदि किसी पक्षकार के खिलाफ फैसला आता है तो उसे विकल्प के तौर पर क्या चाहिए, यह कोर्ट को लिखित में देना होगा.

हालांकि रामलला विराजमान और रामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति जैसे पक्षकार सिर्फ विवादित जमीन पर राम मंदिर का निर्माण चाहते हैं. वहीं मुस्लिम पक्ष की दलील है कि विवादित जमीन पर उनकी मस्जिद तोड़ी गई तो वैसी ही मस्जिद बनवाकर उन्हें दी जाए. ऐसे में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ में सभी पक्षकार कोर्ट में क्या जवाब देते हैं यह तो तीन दिन बाद ही पता चल पाएगा.

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