What is Farmers Bill: किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर कोई कर लगाने से रोक लगाता है और किसानों को इस बात की आजादी देता है कि वो अपनी उपज लाभकारी मूल्य पर बेचे. सरकार का तर्क है कि इस बिल से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. इस बिल में अनाज, दलहन, आलू, प्याज समेत कुछ खाद्य वस्तुओं (तेल) आदि को आवश्यक वस्तु की लिस्ट से बाहर करने का प्रावधान है.
नई दिल्ली: लोकसभा में किसानों को लेकर दो बिल पारित होने के बाद से एनडीए में फूट पड़ गई है. बीजेपी की पुरानी सहयोगी पार्टी शिरोमणी अकाली दल की नेता और केंद्र सरकार में मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने किसान बिल के विरोध में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है. शिरोमणी अकाली दल एनडीए गठबंधन में रहेगी या नहीं, इस बारे में अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है. दरअसल पंजाब और हरियाणा के किसान इस बिल का जबर्रदस्त विरोध कर रहे हैं जिसको लेकर किसानों के समर्थन में हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दिया है. वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार मॉनसून सत्र में इस बिल को पास कराकर विधेयक बनाना चाहती है.
जिस बिल पर इतना हंगामा मचा है आखिरकार वो बिल है क्या?
किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर कोई कर लगाने से रोक लगाता है और किसानों को इस बात की आजादी देता है कि वो अपनी उपज लाभकारी मूल्य पर बेचे. सरकार का तर्क है कि इस बिल से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. इस बिल में अनाज, दलहन, आलू, प्याज समेत कुछ खाद्य वस्तुओं (तेल) आदि को आवश्यक वस्तु की लिस्ट से बाहर करने का प्रावधान है. सरकार का तर्क है कि इससे प्राइवेट इन्वेस्टर्स को व्यापार करने में आसानी होगी और सरकारी हस्तक्षेप से मुक्ति मिलेगी. सरकार का ये भी दावा है कि इससे कृषि क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा.
मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान समझौता बिल 2020 में प्रावधान किया गया है कि किसान पहले से तय मूल्य पर कृषि उपज की सप्लाई के लिए लिखित समझौता कर सकते हैं. केंद्र सरकार इसके लिए एक आदर्श कृषि समझौते का दिशा-निर्देश भी जारी करेगी, ताकि किसानों को मदद मिल सके और आर्थिक लाभ कमाने में बिचौलिए की भूमिका खत्म हो सके.
किसान क्यों कर रहे हैं बिल का विरोध?
इन बिल को लेकर किसानों की सबसे बड़ी चिंता न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर है. किसानों को डर सता रहा है कि सरकार बिल की आड़ में उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य वापस लेना चाहती है. दूसरी तरफ कमीशन एजेंटों को डर सता रहा है कि नए कानून से उनकी कमीशन से होने वाली आय बंद हो जाएगी. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 12 लाख से ज्यादा किसान परिवार हैं और 28,000 से ज्यादा कमीशन एजेंट रजिस्टर्ड हैं.
केंद्र सरकार के तहत आने वाला भारतीय खाद्य निगम पंजाब-हरियाणा में अधिकतम चावल और गेहूं की खरीदारी करता है. 2019-20 में रबी खरीद सीजन में पंजाब में 129.1 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी. जबकि कुल केंद्रीय खरीद 341.3 लाख मीट्रिक टन हुई थी. साफ है कि कृषि से पंजाब की अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर जुड़ी है. किसानों को डर सता रहा है कि नए कानून से केंद्रीय खरीद एजेंसी यानी FCI उनका उपज नहीं खरीद सकेगी और उन्हें अपनी उपज बेचने में परेशानी होगी और एमएसपी से भी हाथ धोना पड़ेगा.
क्यों झुका अकाली दल?
इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा झटका शिरोमणि अकाली दल को लगा है. महीने भर पहले अकाली दल किसान अध्यादेश का समर्थन कर रहा था. पंजाब विधान सभा सत्र के ठीक एक दिन पहले (28 अगस्त, 2020) सुखबीर सिंह बादल ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की चिट्ठी जारी करते हुए कहा था कि किसानों को मिलने वाली एमएसपी प्रभावित नहीं होगी. उन्होंने तब सीएम अमरिंदर सिंह पर किसानों को बहकाने का ठीकरा फोड़ा था लेकिन जब राज्य में किसानों का आंदोलन उग्र हुआ तो बादल को अपनी भूल का अहसास हुआ.