देश-प्रदेश

फैमिली कोर्ट क्या है? हिमाचल और नगालैंड के लिए क्यों पड़ी फैमिली कोर्ट संशोधन विधेयक लाने की ज़रूरत

नई दिल्ली, लोकसभा में कुछ दिन पहले इसी मानसून सत्र में फैमिली कोर्ट संशोधन विधेयक, 2022 पेश किया गया और आज यानी मंगलवार को ये विधेयक पास कर दिया गया है. इस विधेयक के जरिए हिमाचल प्रदेश और नगालैंड में स्थापित कुटुंब न्यायालय या फैमिली कोर्ट को कानूनी मान्यता मिल सकेगी और उनके द्वारा की गई सभी कार्रवाई भी मान्य होगी. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर कुटुंब न्यायालय या फैमिली कोर्ट के क्या अधिकार होते हैं ?

कब हुई फैमिली कोर्ट की स्थापना

हमारे देश में कई प्रकार के न्यायालय हैं और उन्हीं में से एक है कुटुंब न्यायालय जिसे पारिवारिक न्यायालय या फैमिली कोर्ट कहा जाता है, इसे फैमिली कोर्ट इसलिए कहा गया है कि क्योंकि इसमें घर-परिवार में होने वाले झगड़े/विवादों का निपटारा होता है. खासकर इसमें पति और पत्नी के बीच होने वाले विवाद शामिल हैं. फैमिली कोर्ट से पहले सभी सिविल कोर्ट में ऐसे मामलों की सुनवाई की जाती थी, लेकिन साल 1984 में भारत सरकार की ओर से कुटुंब न्यायालय अधिनियम लाया गया और इसी अधिनियम के जरिए पारिवारिक विवाद निपटाने के लिए एक अलग कोर्ट बनाया गया. इसका मकसद था कि इस कोर्ट के आने से पारिवारिक विवाद का जल्द निपटारा किया जा सके.

देश में कितने फैमिली कोर्ट हैं?

फैमिली कोर्ट स्थापित कर विवाह और परिवार के मामलों एवं उससे संबंधित विषयों में सुलह और विवादों का शीघ्र समाधान करने के उद्देश्य से कुटुंब अदालत अधिनियम 1984 को अधिनियम लाया गया था, यह अधिनियम 14 सितंबर 1984 को लागू हुआ और अप्रैल 2022 की स्थिति के अनुसार, 26 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में 715 फैमिली कोर्ट की स्थापना की गई है और ये सभी आज के समय में कार्य कर रही हैं.

किन मामलों में होती है सुनवाई

फैमिली कोर्ट जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि परिवार, इसलिए इसमें परिवार वाली बात ज़रूर शामिल होगी, कुटुंब न्यायालय या फैमिली कोर्ट में परिवार के विवाद से जुड़े मामले सुने जाते हैं. पति-पत्नी के बीच होने वाले तलाक और संपत्ति के विवाद से जुड़े मामलों की सुनवाई इसी कोर्ट में होती है. तलाक के बाद बच्चों पर किसका हक होगा और कौन भरण पोषण करेगा, ऐसे मामलों की सुनवाई भी फैमिली कोर्ट में होती है.

जिन शहरों की आबादी दस लाख से ज्यादा है वहां मामले फैमिली कोर्ट में सुने जाते हैं, हालांकि सभी शहरों में फैमिली कोर्ट नहीं है. और जिन शहरों में फैमिली कोर्ट की स्थापना नहीं की गई है वहां ऐसे मामलों की सुनवाई सिविल कोर्ट में की जाती है. हालांकि सिविल कोर्ट और फैमिली कोर्ट की सुनवाई में बहुत ज्यादा फर्क तो नहीं होता है लेकिन फिर भी कुछ फर्क होता है. सिविल कोर्ट में दूसरे और भी मामले होते हैं जिसकी वजह से इसकी प्रक्रिया थोड़ी लंबी हो जाती है, वहीं फैमिली कोर्ट में ऐसे मामलों में जल्द सुनवाई शुरू हो जाती है और फैसला भी सिविल कोर्ट के मुकाबले यहाँ जल्दी आ जाता है.

क्यों पड़ी विधेयक की ज़रूरत

फैमिली कोर्ट संशोधन विधेयक, 2022 लोकसभा में पास हो गया है, अप्रैल 2022 की स्थिति के मुताबिक, कुटुंब अदालत अधिनियम 1984 के तहत 26 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में 715 कुटुंब अदालतों की स्थापना की गई है और ये सभी अदालतें काम कर रही हैं. इसके तहत हिमाचल प्रदेश में तीन और नगालैंड में दो कुटुंब न्यायालय हैं, इसमें कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने शिमला, धर्मशाला और मंडी में 15 फरवरी 2019 की अधिसूचना के जरिये तीन कुटुंब न्यायालय स्थापित किए हैं तथा नगालैंड सरकार ने 12 सितंबर 2008 की अधिसूचना के तहत दीमापुर एवं कोहिमा में दो कुटुंब न्यायालय स्थापित किए. वहीं अधिनियम की धारा 1 की उपधारा 3 के अधीन उक्त अधिनियम को इन राज्यों में प्रवृत्त करने के लिये केंद्र सरकार की अधिसूचना जारी नहीं की गई थी.

विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के मुताबिक, चूंकि हिमाचल प्रदेश और नगालैंड में फैमिली कोर्ट अपनी स्थापना की तारीख से ही कार्य कर रही हैं और राज्य सरकार के साथ फैमिली कोर्ट की कार्रवाइयों को विधिमान्य करना अपेक्षित है, इसलिये इस अधिनियम में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया. इसके माध्यम से इन दोनों राज्यों में फैमिली कोर्ट के अधीन की गई सभी कार्रवाइयों को पूर्व प्रभाव से विधि मान्य हो सकेगा.

 

Aanchal Pandey

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