नई दिल्लीः चीन ने हाल ही में दुनिया की सबसे गहरी प्रयोगशाला के अनावरण की घोषणा की है। चीन ने दक्षिण पश्चिम चीन के सिचुआन प्रांत में बने इस प्रयोगशाला में काम करना शुरु भी कर दिया है। अंडरग्राउंड और अल्ट्रा-लो रेडिएशन बैकग्राउंड फैसिलिटी फॉर फ्रंटियर फिजिक्स एक्सपेरिमेंट्स (डीयूआरएफ) अत्याधुनिक वैज्ञानिक जांच का केंद्र बनने […]
नई दिल्लीः चीन ने हाल ही में दुनिया की सबसे गहरी प्रयोगशाला के अनावरण की घोषणा की है। चीन ने दक्षिण पश्चिम चीन के सिचुआन प्रांत में बने इस प्रयोगशाला में काम करना शुरु भी कर दिया है। अंडरग्राउंड और अल्ट्रा-लो रेडिएशन बैकग्राउंड फैसिलिटी फॉर फ्रंटियर फिजिक्स एक्सपेरिमेंट्स (डीयूआरएफ) अत्याधुनिक वैज्ञानिक जांच का केंद्र बनने के लिए तैयार है। चीन ने इस प्रयोगशाला को चाइना जिनपिंग अंडरग्राउंड लेबोरेटरी (सीजेपीएल) नाम दिया गया है। चीन का कहना है कि उसने यह प्रयोगशाला डार्क मैटर (Dark Matter) की खोज करने के लिए बनाई है।
चीन में बनी यह प्रयोगशाला दुनिया की सबसे गहरी प्रयोगशाला है। इसकी गहराई 2400 मीटर है। इसका मतलब है कि यह लैब धरती से करीब 2.5 किलोमीटर नीचे बना है। जानकारी के मुताबिक, इस लौब को बनाने में चीन को करीब तीन साल का समय लगा है। सीजेपीएल या चाइना जिनपिंग अंडरग्राउंड लैबोरेटरी दुनिया की सबसे गहरी और सबसे बड़ी अंडरग्राउंड प्रयोगशाला है। इसकी कुल कमरे की क्षमता 330,000 क्यूबिक मीटर है। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रयोगशाला उन्हें डार्क मैटर नामक अदृश्य पदार्थ का पता लगाने के लिए एक स्वच्छ स्थान प्रदान करती है।
अंडरग्राउंड और अल्ट्रा-लो रेडिएशन बैकग्राउंड फैसिलिटी फॉर फ्रंटियर फिजिक्स एक्सपेरिमेंट्स (डीयूआरएफ) चीन जिनपिंग अंडरग्राउंड प्रयोगशाला का दूसरा चरण है। इसका पहला चरण 2010 में पूरा हो गया था। जिससे चीन पहले ही डार्क मैटर डायरेक्ट डिटेक्शन प्रयोगों में काफी सफलता हासिल कर चुका है और इस क्षेत्र में अग्रणी बन गया है।
डार्क मैटर (Dark Matter) उन कणों से बना है जिन पर कोई आवेश (charge) नहीं होता है। ये कण प्रकाश का उत्सर्जन नहीं करते हैं इसीलिए ये “डार्क” हैं। यह पूरी प्रक्रिया एक विद्युत चुंबकीय घटना है। डार्क मैटर में सामान्य पदार्थ की ही तरह द्रव्यमान(mass) होता है, इसलिए यह गुरुत्वाकर्षण के साथ अंतःक्रिया करते हैं। कई मॉडल ऐसी भविष्यवाणी करते हैं कि डार्क मैटर कण कमजोर अंतःक्रिया स्तर पर सामान्य कण से जुड़ सकते हैं, इसलिए डायरेक्ट डिटेक्शन प्रयोग के जरिए डार्क मैटर कण के संकेत को पकड़ना संभव है। पिछले साल अमेरिका में भी डार्क मैटर की खोज के लिए लक्स जेप्लिन एलजेड नाम का एक प्रयोग किया गया था।
वैज्ञानिकों का कहना है कि पूरी दुनिया डार्क मैटर (Dark Matter) से बनी है। उनका मानना है कि डार्क मैटर और डार्क एनर्जी की वजह से ही पूरा यूनिवर्स एक क्रम में बंधा हुआ है। एस्ट्रोपार्टिकल भौतिकी और ब्रह्माण्ड विज्ञान में कई ऐसे सबूत मिले हैं जो यह संकेत करते हैं कि दुनिया का 85% हिस्सा डार्क मैटर से बना है और शेष 15% सामान्य पदार्थ है। दुनिया में इतनी ज्यादा मात्रा में मौजूद होने के बावजूद भी लोग इसके बारे में बहुत जानकारी नहीं प्राप्त कर पाए हैं।
यह भी पढ़ें: Muslim Woman Assaulted For Voting For BJP: मुस्लिम महिला को बीजेपी को वोट देना पड़ा महंगा, घरवालों ने किया ये हाल
Election: एमपी में 11 दिसंबर को तय होगा सीएम का चेहरा, नियुक्त किए गए पर्यवेक्षक