Citizenship Amendment Bill: केंद्रीय कैबिनेट से पारित कराने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार सोमवार 9 नवंबर को नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा में पेश करेगी. नागरिकता संशोधन विधेयक के संसद में चर्चा के लिए आने से पहले ही विवाद हो रहा है. दरअसल इस बिल में मोदी सरकार ने गैरमुस्लिम बाहरी प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया है, जबकि मुस्लिमों को इस दायरे से बाहर रखा गया है. आइए जानते हैं कि क्या है नागरिकता संशोधन बिल, क्या है इस विधेयक के प्रावधान और क्यों हो रहा इस पर विवाद.
नई दिल्ली. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन करने जा रही है. नागरिकता संशोधन बिल 2019 को कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है. अब मोदी सरकार आज यानी सोमवार 9 नवंबर को शीतकालीन सत्र के दौरान इसे लोकसभा में पेश करेगी. लोकसभा में पारित होने के बाद इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा. नागरिकता संशोधन बिल के बारे में काफी विवाद भी हो रहा है. आइए जानते हैं कि नागरिकता संशोधन बिल के क्या मायने है और यह बिल पास होने के बाद देश में क्या-क्या बदलाव होंगे.
नागरिकता संशोधन बिल क्या है?
नागरिकता संशोधन बिल के जरिए केंद्र सरकार बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दिए जाने के नियमों को आसान करने जा रही है.
नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान 2016 में भी सरकार ने लोकसभा से नागरिकता संशोधन बिल पारित कराया था. हालांकि उस समय राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के कारण यह बिल पारित नहीं हो सका.
पिछली लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल निष्प्रभावी हो गया. जब नरेंद्र मोदी सरकार 2019 में फिर से सत्ता में आई तो एक बार फिर इस बिल को नए सिरे से संसद में पेश किया जाएगा.
नागरिकता संशोधन में क्या है प्रावधान?
इस बिल के जरिए नागरिकता अधिनियम 1955 में बदलाव किए जाएंगे. बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से गैरमुस्लिमों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. ताकि इन तीनों देशों के गैरमुस्लिम शरणार्थी भारत के नागरिक बन सके. हालांकि मुस्लिमों को इस दायरे से बाहर रखा गया है.
इसके साथ ही केंद्र सरकार अवैध प्रवासियों के नागरिकता हासिल करने की अवधि को भी कम करने जा रही है. मौजूदा नियमों के मुताबिक भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए बाहर से आए एक शक्श को कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी होता है. अब केंद्र सरकार संशोधन कर इस सीमा को 6 साल करने जा रही है. यानी कि 6 साल के भीतर ही लोगों को नागरिकता मिल जाएगी.
नागरिकता संशोधन बिल पर विवाद-
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सपा, सीपीएम समेत अन्य विपक्षी पार्टियां इस बिल का जमकर विरोध कर रही हैं. विपक्षी नेताओं का आरोप है कि मोदी सरकार देश को धर्म के आधार पर बांटना चाह रही है. यह संविधान के उसूलों के खिलाफ है. संविधान में सभी धर्मों को बराबर हक देने का प्रावधान है. मगर मोदी सरकार बाहर से आए गैरमुस्लिमों को तो शरणार्थी मान रही है जबकि मुस्लिमों को घुसपैठिये करार दे रही है.
दरअसल नागरिकता संशोधन बिल में मुसलमानों को बाहर रखा गया है. यानी कि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई, इन छह धर्म के लोगों के लिए नागरिकता के नियमों में ढील देने जा रही है. ऐसे में यह मुद्दा काफी विवाद में छाया हुआ है.
नागरिकता संशोधन बिल की असली परीक्षा राज्यसभा में होगी-
सोमवार को लोकसभा में पेश होने के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक पर विपक्ष हंगामा कर सकता है. इसके बावजूद मोदी सरकार संसद के निम्न सदन में यह बिल आसानी से पारित करा लेगी. क्योंकि लोकसभा में बीजेपी सरकार के पास पूर्ण बहुमत है.
इस बिल की असली परीक्षा राज्यसभा में होगी. क्योंकि संसद के उच्च सदन में बीजेपी नीत एनडीए के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है. हालांकि पांच महीने पहले ही केंद्र सरकार ने राज्यसभा से जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पास कराया था. उस समय बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति जैसी पार्टियों का समर्थन मिला था.
यदि कुछ गैर एनडीए दलों के सांसद राज्यसभा में समर्थन करेंगे तो मोदी सरकार नागरिकता संशोधन बिल पारित कराने में कामयाब हो जाएगी. जल्द ही नागरिकता कानून में संशोधन हो जाएगा.
Also Read ये भी पढ़ें-