देश-प्रदेश

क्या है अफगानिस्तान की ‘बच्चा बाजी’ परंपरा? कब तक चलता रहेगा ये घिनौना काम..

नई दिल्ली: बीते साल अगस्त के माह में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा हो गया था. अब अफगानिस्तान की आबो-हवा बदल गई है. अफगानिस्तान में एयरपोर्ट से लेकर सड़कों तक तालिबान का ही राज है. एक बार फिर से वहाँ से बच्चों और महिलाओं संग जुल्म की खबरें तेज हो रही है. देश की महिलाएं भी चारदीवारी में रहने को मजबूर हैं. लेकिन आपको बता दें, तालिबान के आने से पहले ही अफगानिस्तान में कई तरह की गलत परम्पराएं चली आ रही है और इन्हीं में से एक है ‘बच्चा बाजी’… क्या है ये आपको इस बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं;

 

अफगानिस्तान की ‘बच्चा बाजी’ परंपरा

बच्चा बाजी जैसी परंपरा का दुनिया में विरोध होता रहता है. अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान मुल्क में भी बच्चा बाजी का चलन है और पाकिस्तान से भी ऐसी तरह-तरह की खबर आती रहती हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इस प्रथा का क्यों विरोध किया जाता है.

क्या है बच्चा बाजी?

 

अफगानिस्तान व पाकिस्तान जैसे मुल्क में लड़कों को लड़कियों जैसे रंग-बिरंगे कपड़े पहना कर नचाने की परंपरा है. इस परंपरा को ‘बच्चाबाजी’ कहा जाता है. बताया जाता है कि 10-12 साल के लड़कों को लड़कियों के रूप में तैयार किया जाता है और उन्हें मेकअप पहना दिया जाता है. इसके बाद इन्हें पार्टी व शादियों में नचवाया जाता है. अफगानिस्तान की पेश एक एक रिपोर्ट के अनुसार, वहाँ की श्तून संस्कृति बच्चा बाजी को एक गैर-इस्लामी या हराम काम के तौर पर नहीं देखती है क्योंकि पुरुष, लड़कों से प्यार नहीं करते सिर्फ उन्हें यौन क्रिया के लिए रखते हैं.

 

नाच-गाना व यौन शोषण

 

बच्चा बाजी की यह क्रूर प्रथा अत्याचार को एक कदम आगे की ओर ले जाती है. यहाँ पर युवा लड़कों को “बच्चा बरीश” व “लौंडे” के नाम से भी जाना जाता है. बच्चा बरीश माने दाढ़ी रहित लड़के होते है. इन बच्चों को कामुक नृत्य व यौन क्रियाओं में लिप्त होने के लिए मजबूर किया जाता है. इस दौरान करने कई सारे ताकतवर पुरुष बच्चा बरीश को खरीदने का भी काम करते हैं.

 

बताया जाता है कि इस कुप्रथा पर लगाम लगाने की कोशिश की गई थी. इसमें छोटे लड़कों का या तो अपहरण कर लिया जाता है या उनके परिवारों से उन्हें खरीद लिया जाता है.

 

किसी की मजबूरी भी….

वह बच्चे जो गरीबी की हालत में होते हैं वह इस काम को करने के लिए मजबूर भी होते हैं. जिन बच्चों के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं होता है, वो लोग इसको रिज्क का सहारा बना लेते हैं. साथ ही उन बच्चों को इस काम के लिए सिर्फ कपड़े और खाना दिया जाता हैं. एक बेहतर जीवन की तलाश में छोटे लड़के इस दलदल में न चाहते हुए भी फंस जाते हैं क्योंकि उनके पास गैर जरिया नहीं होता है.

 

 

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Amisha Singh

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