भगत सिंह की फाँसी पर क्या बोले जिन्ना? ऐसा था जवाहरलाल नेहरू का रवैया

नई दिल्ली: 28 सितंबर यानि आज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा और सेनानी शहीद भगत सिंह की जयंती है. भगत सिंह भारत के महान योद्धाओं में से एक थे. देश की आजादी के लिए उनकी लड़ाई और योगदान तथा बलिदान पर देश को गर्व है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगत सिंह को […]

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भगत सिंह की फाँसी पर क्या बोले जिन्ना? ऐसा था जवाहरलाल नेहरू का रवैया

Aprajita Anand

  • September 28, 2024 2:00 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 months ago

नई दिल्ली: 28 सितंबर यानि आज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा और सेनानी शहीद भगत सिंह की जयंती है. भगत सिंह भारत के महान योद्धाओं में से एक थे. देश की आजादी के लिए उनकी लड़ाई और योगदान तथा बलिदान पर देश को गर्व है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगत सिंह को लेकर मोहम्मद अली जिन्ना और जवाहरलाल नेहरू का क्या रुख था? आज हम आपको बताएंगे कि इन नेताओं ने भगत सिंह के बारे में क्या कहा था.

भगत सिंह का योगदान

भारत की आजादी में भगत सिंह और उनके साथियों के योगदान को भारत हमेशा याद रखता है. भारत अपने सभी वीरसपूतों की शहादत पर उन्हें श्रद्धांजलि देता है. देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह को 23 साल की उम्र में फांसी दे दी गई थी. भगत सिंह पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में मुकदमा चलाया गया था. सितंबर 1929 में, जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जेल में भूख हड़ताल पर थे, तब शिमला में केंद्रीय विधानसभा की बैठक हुई. तब मोहम्मद अली जिन्ना उस सेंट्रल असेंबली में बॉम्बे का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. उस सभा में जिन्ना ने भगत सिंह का पूरा समर्थन किया था. उन्होंने हमेशा अपनी मां के प्यार से ज्यादा महत्व भारत मां के प्रति अपने प्यार को दिया। आज उनकी 117वीं जयंती है.

जिन्ना ने कहा-

जिन्ना ने कहा था कि आप अच्छी तरह जानते हैं कि वह अपनी जान भी कुर्बान करने को तैयार हैं. यह कोई मज़ाक नहीं है. भूख हड़ताल करने वाला व्यक्ति अपनी आत्मा की आवाज सुनता है और एक उद्देश्य के लिए जीता है. ये कदम उठाना हर किसी के बस की बात नहीं है. जब आप इसे आजमाएंगे तभी आपको पता चलेगा. जिन्ना ने कहा था कि भगत सिंह के साथ राजनीतिक कैदी की बजाय अपराधी जैसा व्यवहार किया जा रहा है, जो बिल्कुल गलत है.

नेहरू का रवैया

बता दें कि 19 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेख को लाहौर में फांसी दे दी गई थी. अगले दिन दिल्ली में नेहरू ने कहा था कि वह अपने आखिरी दिनों में पूरी तरह चुप रहे, ताकि मेरा एक भी शब्द उनकी सजा कम करने की संभावनाओं को नुकसान न पहुंचा सके. मैं चुप रहा, लेकिन मेरा दिल उबल रहा था. अब सब कुछ ख़त्म हो गया है. हम सब भी उसे नहीं बचा सके, जो हमें इतना प्रिय था और जिसका अद्भुत साहस और बलिदान आज भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा बन रहा है. आज भारत अपने सबसे प्यारे बच्चों को भी फाँसी से नहीं बचा पाया है।

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