नई दिल्ली: 26 जून 1975 की सुबह देश में सुने जाने वाले ऑल इंडिया रेडियो पर जो पहली आवाज़ सुनाई दी वो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की थी जो उस दिन के ऐलान के साथ आई थी जिसे इतिहास में काला दिवस माना जाता रहा है. इंदिरा गांधी के शब्द थे, ‘राष्ट्रपति ने इमरजेंसी की […]
नई दिल्ली: 26 जून 1975 की सुबह देश में सुने जाने वाले ऑल इंडिया रेडियो पर जो पहली आवाज़ सुनाई दी वो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की थी जो उस दिन के ऐलान के साथ आई थी जिसे इतिहास में काला दिवस माना जाता रहा है. इंदिरा गांधी के शब्द थे, ‘राष्ट्रपति ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी है…इससे घबराने की जरूरत नहीं है. आज देश में लगी इमरजेंसी को 48 साल पूरे हो गए हैं जिस मौके पर आज हम आपको बताने जा रही हैं कि इमरजेंसी से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने क्या-क्या कदम उठाए थे.
उस दौरान पूर्व पीएम इंदिरा ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब मैंने इमरजेंसी लगाई तो देश में एक कुत्ता भी नहीं भौंका था. जो 25 जून की रात का सत्य है. इस फैसले के पीछे की पटकथा 12 जून 1975 को लिखी गई थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव रद्द कर दिए थे इसके अलावा अगले 6 सालों के लिए किसी भी संवैधानिक पद के लिए उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था.
ये फैसला बरेली से इंदिरा के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले राज नारायण की याचिका पर लिया गया था जिन्होंने तत्कालीन पीएम इंदिरा गाँधी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने चुनाव के दौरान सरकारी मशीनरी का उपयोग किया है. सुप्रीम कोर्ट में 24 जून 1975 को इस फैसले के खिलाफ सुनवाई भी हुई जिसमें जस्टिस कृष्णा अय्यर ने फैसला सुनाया कि जब तक मामला कोर्ट में है तब तक इंदिरा गांधी पीएम बनी रह सकती हैं. लेकिन उनके हाथों से संसद में किसी ही चर्चा या बिल पर वोट करने का अधिकार छीन लिया गया था.
इंदिरा गांधी की जीवनी में कैथरीन फ्रैंक ने लिखा है कि इंदिरा गांधी को कोर्ट का ये फैसला रास नहीं आया और उनके समर्थकों में भी इस फैसले से खूब असंतुष्टि देखने को मिली. वह पीएम के पद पर तो थीं लेकिन ना तो उनके हाथों कोई शक्तियां नहीं थीं और ना ही कोई अधिकार.
जयप्रकाश नारायण ने नई दिल्ली के रामलीला मैदान में इसके अगले ही दिन यानी 25 जून को इंदिरा सरकार के खिलाफ बड़ी रैली निकाली थी. इस महारैली में महंगाई और भ्रष्ट्राचार के मुद्दे को लेकर देश में गुस्सा पनपने लगा और पूरे देश में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने लगे.
इंदिरा गांधी ने 25 जून की सुबह बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे से फ़ोन पर बातचीत की थी. उस समय सीएम शंकर दिल्ली में ही बंग भवन में रुके थे जिहोने फोन उठाया तो दूसरी ओर इंदिरा गांधी के सेक्रेटरी आर के धवन थे. प्रधानमंत्री ने रे को 1 सफदरजंग रोड अपने आवास पर तुरंत बुलाया जिसपर तत्कालीन बंगाल सीएम भी पहुंचे. उन्होंने इंदिरा गांधी को स्टडी रूम में बैठा देखा जहां टेबल पर फाइलों का ढेर लगा हुआ था. वो भी वहीं आकर बैठे और दोनों के बीच 2 घंटों तक बातचीत हुई.
प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब ‘द ड्रमैटिक डेकेड’ में लिखा है कि बाद में रे ने शाह कमीशन के सामने अपने बयान में बताया कि उनके वहाँ पहुंचने पर इंदिरा ने उनसे कहा कि उन्हें कई रिपोर्ट्स मिली हैं जिसके अनुसार सब ओर अव्यवस्था फैली हुई है. उस समय बिहार और गुजरात की विधानसभाओं को भंग किया जा चुका था. विपक्ष सिर्फ आंदोलन कर रहा था वहीं विपक्ष की मांगों पर भी कोई अंत नहीं था. देश में कानून का राज नहीं रह गया था जहां इंदिरा गाँधी ने ये सभी हालात गिनाते हुए कोई कड़ा कदम उठाने की जरूरत जताई.
उसी शाम इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण की रामलीला मैदान में होने वाली सभा के संबंध में एक इंटेलिजेंस रिपोर्ट प्रस्तुत की. इस रिपोर्ट में कहा गया कि जेपी नारायण ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन का आह्वान कर एक सामानांतर प्रशासन चलाने की योजना बनाई है. वह कोर्ट से लेकर पुलिस और सेना तक को सरकार से बगावत करने के लिए कहेंगे.
शाह कमीशन के सामने सिद्धार्थ शंकर रे ने बताया कि इंदिरा गांधी पहले भी उनसे दो-तीन मौकों पर कह चुकी थीं कि भारत को ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की आवश्यकता है. जैसे कोई बच्चा पैदा होने का बाद हरकत नहीं करता तो उसे शॉक दिया जाता है. इंदिरा का कहना था कि देश में एक बड़ी शक्ति का उभरना बेहद जरूरी है.
इस बीच सवाल ये भी उठा कि आखिर इंदिरा गांधी ने इस बात की चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री रे को ही क्यों बुलाया था. दरअसल बताया जाता है कि वे इंदिरा गांधी के करीबी लोगों में से एक थे जिन्होंने कांग्रेस के टूटने पर इंदिरा फ्रैक्शन के साथ वफादारी निभाई थी. रे पर इंदिरा के भरोसे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने कानून मंत्री तक से इस बारे में कोई चर्चा नहीं की थी.
बताया जाता है कि इस दो घंटों की बातचीत में इंदिरा गाँधी ने रे को बताया था कि वह अमेरिकी प्रेसिडेंट रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं और उन्हें CIA की मदद से सरकार गिरने का डर है. जिस तरह अमेरिका ने चिली में जनरल ऑगस्टो पिनोचेट का तख्तापलट करवाया है. ‘इंदिरा: द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू’ में कैथरीन फ्रैंक बताती हैं कि इंदिरा गांधी 1974 से ही जयप्रकाश नारायण पर अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA के साथ शामिल होने का आरोप लगाती रही थीं.
हालांकि इंदिरा गांधी के मन में अमेरिका को लेकर बेवजह डर नहीं था. जब वह साल 1971 में अमेरिका दौरे पर गई थीं तब भारत-पाक युद्ध से एक महीने पहले उनकी यात्रा का मकसद पाकिस्तान और अमेरिका के बीच हथियारों की सप्लाई को रोकना था. लेकिन अमेरिका ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. ‘डॉक्यूमेंट्स ऑन साउथ एशिया, 1969-1972’ में बताया गया कि 5 नवंबर की सुबह 8:15 से 9:00 बजे सुबह के बीच प्रेसिडेंट, NSA और ह्वाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ के बीच बातचीत हुई. इसी दिन इंदिरा गांधी भी अमेरिका के दौरे पर थीं. इंदिरा गांधी जाटनी थीं कि रिचर्ड निक्सन उनसे नफरत करते हैं।
सिद्धार्थ बाबू ने इंदिरा गांधी की सारी बातें सुनने के बाद कहा कि उन्हें सोचने के लिए समय चाहिए ताकि वह कोई समाधान सोच सकें. शाम पांच बजे तक का समय मानकर सिद्धार्थ बाबू ने भारतीय संविधान के साथ अमेरिकी संविधान को टटोला. दोपहर 12 बजे तक वह इसी काम में लगे रहे और म 3:30 बजे फिर 1 सफदरजंग रोड पहुंचे। रे ने इंदिरा गांधी को समझाते हुए भारतीय संविधान की धारा 352 बाह्य और आंतरिक अव्यवस्था के समय इमरजेंसी की बात बताई. आतंरिक अव्यवस्था कैसे अलग है पर भी रे ने प्रकाश डाला.
भारत-पाक युद्ध के समय लगाई गई इमरजेंसी के बारे में भी उन्होंने इंदिरा को बताया. इस दौरान इंदिरा गांधी ने रे से कहा कि वह मंत्रिमंडल के सामने इस मामले को नहीं लाना चाहती हैं. इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति के सामने इस बात को रखा क्योंकि उनके पास मंत्रिमंडल को बुलाने के लिए समय नहीं था.
दूसरी ओर सिद्धार्थ बाबू से उन्हें प्रेसिडेंट के पास जाने पर विरोध जताया. उन्होंने इंदिरा से ये भी कहा कि वो एक मुख्यमंत्री हैं प्रधानमंत्री नहीं. हालांकि बाद में वह राष्ट्रपति भवन जाने के लिए राजी हो गए.
इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ शंकर रे उसी शाम 5:30 बजे राष्ट्रपति आवास पहुंचे तब देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद थे. सारी बातें इंदिरा गांधी और सिद्धार्थ बाबू ने राष्ट्रपति को बताई. राष्ट्रपति ने इमरजेंसी के दस्तावेज पहुंचाने के लिए कहा और इंदिरा गांधी ने सिद्धार्थ शंकर रे से 1 सफदरजंग रोड पहुंचने की बात कही. इस दौरान इंदिरा गांधी के सचिव पी एन धर को ब्रीफ किया जिसके बाद धर ने अपने टाइपिस्ट को बुलाया और इमरजेंसी की घोषणा के दस्तावेज तैयार किए गए. दस्तावेज लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे तब तक रात हो गई थी जिसके बाद सुबह 5 बजे मंत्रिमंडल बताए जाने का फैसला लिया गया.
सिद्धार्थ शंकर रे ने 1 सफदरजंग रोड पर इंदिरा गांधी को उनके सुबह दिए जाने वाले भाषण को लिखने में मदद भी की. संसदीय राज्य मंत्री आर के धवन, संजय गांधी और ओम मेहता दूसरे कमरे में सुबह गिरफ्तार किए जाने वाले विपक्षी नेताओं की लिस्ट तैयार कर रहे थे. सुबह अखबारों और कोर्ट की बिजली काट दिए जाने की योजना भी बनाई गई. जहां इंदिरा गांधी ने जब तक अपने भाषण को पूरा किया तब तक 3 बज चुके थे. तब तक रे वहीं थे जिन्होंने भाषण पूरा होने के बाद इंदिरा गांधी से विदा ली. जब रे बाहर निकल रहे थे तब उनकी टक्कर ओम मेहता से हुई जिन्होंने दिल्ली अखबारों की बिजली काटने और देश भर की अदालतों को बंद रखने का बंदोबस्त पूरा कर लिया था. ये बात सुनकर रे चौंक गए और उन्होंने ऐसा करना बेतुका बताया.
सीएम रे ने कहा कि संविधान के आपातकाल को इस तरह से लागू नहीं किया जा सकता है. जब तक सीएम रे ने इन बदलावों को करवाने के लिए इंदिरा गांधी से मुलाकात करने की कोशिश की तब तक लेडी प्रेम मिनिस्टर शो चुकी थीं. धवन ने सीएम रे को बताया कि बिजली काटने का विचार संजय गांधी का था. जिसके बाद इंदिरा गाँधी को बाहर लाया गया और उन्हें इस बारे में बताया गया. इंदिरा गांधी ने इस दौरान आश्वासन दिया कि बिजली नहीं काटी जाएगी. हालांकि दिल्ली के कई अख़बारों की बिजली काट दी गई थी और 26 जून की सुबह बस हिंदुस्तान टाइम्स और स्टेट्समैन अखबार ही निकल पाए. ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि उनका प्रेस कनेक्शन म्युनिसिपालिटी की जगह नई दिल्ली से था.