Waqf Bill Debate: लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 के पारित होने के बाद केरल के एर्नाकुलम जिले के मुनंबम गांव में खुशी की लहर दौड़ गई. यह विधेयक जो अब राज्यसभा में चर्चा के लिए पेश किया गया है. मुनंबम के निवासियों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरा है. यहां 400 एकड़ से अधिक भूमि पर लंबे समय से कानूनी लड़ाई चल रही है. जिसे वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित किया है. जबकि इस पर पीढ़ियों से ईसाई और कुछ हिंदू परिवार बसे हुए हैं.
मुनंबम का यह विवाद 1900 के दशक की शुरुआत से शुरू होता है. जब त्रावणकोर शाही परिवार ने 404 एकड़ जमीन अब्दुल सथर मूसा सैत को पट्टे पर दी थी. 1948 में उनके उत्तराधिकारी मोहम्मद सिद्दीक सैत ने इसे अपने नाम दर्ज कराया और 1950 में कोझिकोड के फारूक कॉलेज को दान दे दिया. इस तटीय इलाके में मछुआरे परिवार पीढ़ियों से रहते आए थे. 1987 से 1993 के बीच फारूक कॉलेज प्रबंधन ने इन निवासियों से पैसे लेकर उन्हें मालिकाना हक के दस्तावेज दिए. लेकिन 1995 में वक्फ अधिनियम लागू होने के बाद स्थिति जटिल हो गई.
2008 में तत्कालीन सीपीआई(एम) सरकार ने एक जांच आयोग गठित किया. जिसने मुनंबम की जमीन को वक्फ संपत्ति माना. 2019 में वक्फ बोर्ड ने इसे स्वत संज्ञान में लेकर वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया और राजस्व विभाग को भूमि कर लेना बंद करने का निर्देश दिया. 2022 में राज्य सरकार ने इस निर्देश को पलट दिया. लेकिन उसी साल उच्च न्यायालय में याचिकाओं के बाद सरकार के फैसले पर रोक लग गई. फारूक कॉलेज ने भी दावा किया कि यह जमीन उन्हें उपहार में मिली थी, न कि वक्फ संपत्ति थी.
पिछले साल से मुनंबम का मुद्दा तब गरमाया जब भाजपा ने वक्फ बोर्ड के दावे पर सवाल उठाए. केरल विधानसभा के वक्फ विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव के बाद भाजपा ने इसे राजनीतिक हथियार बनाया. पार्टी ने मुनंबम में ‘भूमि संरक्षण समिति’ के विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और वक्फ बोर्ड से दावा छोड़ने की मांग की. केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल (केसीबीसी) ने भी ‘बेदखली की धमकी’ का विरोध करते हुए संसद की संयुक्त समिति को याचिका दी. निवासियों का कहना है कि बिना भूमि कर रसीद के वे अपनी जमीन को गिरवी रखकर ऋण नहीं ले सकते. जिससे उनकी आजीविका खतरे में है.
2 अप्रैल, 2025 की देर रात लोकसभा में वक्फ विधेयक पारित होने के बाद मुनंबम के लोगों ने इसे अपनी जीत माना. भाजपा ने इसे ‘सभी नागरिकों के संपत्ति अधिकारों’ की रक्षा का कदम बताया. मुनंबम में 600 से अधिक परिवार, ज्यादातर ईसाई मछुआरे, इस फैसले से उत्साहित हैं. उनका मानना है कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड के मनमाने दावों पर लगाम लगाएगा.
भाजपा का दावा- भाजपा ने मुनंबम को अपने हिंदुत्व एजेंडे और ईसाई समुदाय से नजदीकी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया. सांसद सुरेश गोपी और अन्य नेताओं ने इसे ‘वक्फ की बर्बरता’ करार देते हुए विधेयक को जरूरी बताया.
कांग्रेस और आईयूएमएल का पलटवार- कांग्रेस नेता वीडी सतीसन ने कहा कि विधेयक का कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं है. इसलिए यह मुनंबम के लोगों की मदद नहीं करेगा. उन्होंने इसे भाजपा का धार्मिक ध्रुवीकरण का हथकंडा बताया. आईयूएमएल सुप्रीमो सादिक अली शिहाब थंगल ने मुनंबम के लोगों के साथ एकजुटता दिखाई लेकिन विधेयक का विरोध जारी रखा.
एलडीएफ की स्थिति- सीपीआई(एम) ने सरकार के तौर पर मुनंबम निवासियों का समर्थन किया लेकिन विधेयक का विरोध कर रही है. विपक्ष ने इसे ध्रुवीकरण के लिए देरी का आरोप लगाया.
मुनंबम का यह भूखंड भाजपा के लिए केरल में पैठ बनाने का मौका बन गया है. 400 एकड़ पर 600 से अधिक परिवारों की आजीविका दांव पर है. ईसाई समुदाय का समर्थन और चर्च की मुखरता ने इसे सांप्रदायिक रंग दे दिया. भाजपा इसे वक्फ बोर्ड की ‘अतिवादिता’ के खिलाफ उदाहरण बनाकर पेश कर रही है जबकि विपक्ष इसे संविधान और अल्पसंख्यक अधिकारों पर हमला बता रहा है.
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