प्यारेलाल वडाली रामलीला में कृष्ण बनकर करते थे परिवार की आर्थिक मदद, सूफी गायकी से बनाई दुनिया में पहचान

Wadali Brothers Profile: वडाली बदर्स के नाम से मशहूर सूफी गायक प्यारे लाल वडाली का अमृतसर में आज सुबह निधन हो गया. वडाली बंधुओं ने संगीत की दुनिया में अपनी जादुई आवाज का लंबे समय तक जादू बिखेरा और रंगरेज, तू माने या ना माने दिलदारा और इक तू ही तू ही जैसे कई मशहूर गाने दिेए.

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प्यारेलाल वडाली रामलीला में कृष्ण बनकर करते थे परिवार की आर्थिक मदद, सूफी गायकी से बनाई दुनिया में पहचान

Aanchal Pandey

  • March 9, 2018 4:23 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

मुंबई. वडाली ब्रदर्स नाम से मशहूर जोड़ी अब टूट गई है. पंजाबी सूफी गायकी में नाम कमाने वाले वडाली बंधुओं में से एक प्यारेलाल वडाली का शुक्रवार को कार्डिएक अरेस्ट की वजह से पंजाब के अमृतसर में निधन हो गया. वह पूरन चंद वडाली के छोटे भाई थे. प्यारेलाल वडाली की उम्र 75 साल थी. वडाली ब्रदर्स की आवाज के दीवाने न सिर्फ भारत में हैं बल्कि दुनिया के कई मुल्कों में उनकी आवाज के दीवाने है. अगल अलग देशों में कार्यक्रम कर वडाली ब्रदर्स अपनी आवाज का जादू बिखेरा करते थे. वडाली बंधुओ ने रंगरेज, तू माने या ना माने दिलदारा और इक तू ही तू ही जैसे कई मशहूर गाने दिेए. बता दें कि पूर्णचंद वडाली को पदमश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया है.

पूरनचंद 25 सालों तक अखाड़े में पहलवानी करते थे, जबकि प्यारेलाल गांव की रासलीला में कृष्ण बनकर घर की आर्थिक मदद करते थे. काफिया, गजल और भजन गाने में दोनों भाई अच्छे-अच्छों सूफी गायको को चुनौती देते थे. पूर्णचंद वडाली ने संगीत की शिक्षा पटियाला घराना के मशहूर गायक पंडित दुर्गा दास और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान से ली. जबकी प्यारेलाल वडाली ने गायकी अपने बड़े भाई पूर्णचंद से सीखा जो उन्हें अपना गुरु और मेंटर मानते थे. वडाली बंधुओ ने अपनी पहली परफॉर्मेंस जालंधर के हरबल्लभ मंदिर में करना शुरू किया था. 1975 में, दोनों बदर्स हरबल्लभ संगीत संमेलन में परफॉर्म करने गए लेकिन उन्हें वहां गाने की इजाजत नहीं दी गई. निराश होकर उन्होंने हरबल्लभ मंदिर में संगीत की पेशकश करने का फैसला किया, जहां जालंधर के ऑल इंडिया रेडियो ने उन्हें देखा और वहां उन्होंने अपना पहला गीत रिकॉर्ड किया.

वडाली बंधु अपने पैतृक घर गुरु की वाडली में रहते हैं, और उन लोगों को संगीत सिखाया करते थे जो इसे संरक्षित करने का वादा करते हैं. वे संगीत सिखाने के लिए अपने शिष्यों से कोई पैसे नहीं लेते थे, और सरल जीवन जीते हैं. वे सूफी परंपरा में विश्वास करते हैं. वे खुद को एक ऐसे माध्यम के रूप में मानते हैं जिसके माध्यम से महान संतों का उपदेश दूसरों को पारित किया जाता है. उनके नाम पर मुट्ठी भर रिकॉर्डिंग दर्ज है जो ज्यादातर लाइव कॉन्सर्ट्स में गाए गए हैं. वे अपने संगीत में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करने में असहज महसूस करते हैं. उनका मानना ​​है कि अगर आप खुले आसमान में बिना किसी बंदिश के गाते हैं तो आध्यात्मिक ऊंचाइयों को आसानी प्राप्त किया जा सकता है. 2003 में उन्होंने बॉलीवुड में प्रवेश किया. फिल्म पिंजर में संगीत निर्देशक और लेखक गुलजार की भावनात्मक गीत को अपनी अनूठी शैली से प्रस्तुत किया. डिस्कवरी चैनल वडाली बदर्स पर एक डॉक्यूमेंटरी बनाने की भी योजना बना रहा है.

मशहूर सूफी गायक उस्ताद प्यारे लाल वडाली का दिल का दौरा पड़ने से निधन

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