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प्रकृति के लिए वरदान हैं गिद्ध, फिर भी क्यों हैं इतने बदनाम, जानिए वजह

नई दिल्ली: गिद्धों को अक्सर नकारात्मक नजर से देखा जाता है। उनकी छवि हमेशा एक मांसभक्षी पक्षी के रूप में उभरी है, जो मृत जानवरों का मांस खाता है। मगर हकीकत यह है कि गिद्ध प्रकृति के अनमोल संरक्षक होते हैं। वे Ecosystem में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो इंसानों और दूसरे जीवों के […]

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  • September 9, 2024 10:26 am Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

नई दिल्ली: गिद्धों को अक्सर नकारात्मक नजर से देखा जाता है। उनकी छवि हमेशा एक मांसभक्षी पक्षी के रूप में उभरी है, जो मृत जानवरों का मांस खाता है। मगर हकीकत यह है कि गिद्ध प्रकृति के अनमोल संरक्षक होते हैं। वे Ecosystem में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो इंसानों और दूसरे जीवों के स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है। इसके बावजूद गिद्धों को हमेशा बदनाम किया गया। आखिर इसकी वजह क्या है? आइए इस पर विस्तार से जानते हैं कि ऐसा क्यों माना जाता है।

गिद्धों की भूमिका

गिद्ध प्रकृति के सफाईकर्मी के रूप में काम करते हैं। वे मरे हुए जानवरों का मांस खाकर पर्यावरण को साफ रखने में मदद करते हैं। जब जानवर मरते हैं, तो उनके सड़ने पर विभिन्न तरह के खतरनाक बैक्टीरिया और रोगाणु फैल सकते हैं। गिद्ध इन मृत शरीरों को खाकर उन खतरनाक बीमारियों को फैलने से रोकते हैं। उनके शक्तिशाली पाचन तंत्र में एंजाइम होते हैं जो खतरनाक रोगाणुओं को नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार गिद्ध बीमारियों के फैलाव को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, खासकर ग्रामीण और वन्य क्षेत्रों में।

गिद्धों की घटती संख्या

पिछले कुछ दशकों में, गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट आई है। इसका एक बड़ा कारण ‘डाइक्लोफेनेक’ नामक दवा का उपयोग है। यह एक पशु चिकित्सा दवा है जिसे मवेशियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। जब गिद्ध इन मवेशियों के मृत शरीरों का मांस खाते हैं, तो उनके शरीर में यह दवा पहुंचती है, जो उनके लिए जानलेवा साबित होती है। इसकी वजह से गिद्धों की आबादी में भारी कमी आई है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को बड़ा नुकसान हुआ है। 2000 के दशक के शुरुआती वर्षों में, भारत और दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में गिद्धों की तीन प्रमुख प्रजातियों की संख्या में 90-99% तक की गिरावट देखी गई।

गिद्धों को लेकर गलतफहमियां

गिद्धों के बारे में एक आम धारणा है कि वे अशुभ होते हैं। उनके मृत शरीरों को खाने की प्रवृत्ति के कारण लोग उन्हें ‘मौत का संकेत’ मानते हैं। यह एक बड़ा मिथक है। असल में, वे प्रकृति के सफाईकर्मी होते हैं जो न केवल पर्यावरण को साफ रखते हैं, बल्कि बीमारियों के फैलाव को रोकने में भी मदद करते हैं। इसके अलावा, कई संस्कृतियों में गिद्धों को अशुभ मानने के बजाय सम्मानित किया जाता है। प्राचीन मिस्र में गिद्धों को देवी नेखबे के रूप में पूजा जाता था, जो रक्षा और मातृत्व की प्रतीक थीं।

गिद्धों की सुरक्षा

गिद्ध केवल पर्यावरण के लिए नहीं, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उनका नाश इंसानों के लिए भी खतरा साबित हो सकता है। गिद्धों की घटती संख्या के कारण मरे हुए जानवरों का मांस खाने वाले दूसरे मांसभक्षी पक्षियों और जानवरों की संख्या बढ़ सकती है, जो अधिक बीमारियां फैला सकते हैं। इसलिए गिद्धों की सुरक्षा के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे। गिद्धों को बदनाम करने की बजाय हमें उनकी असली भूमिका को पहचानने की जरूरत है। वे प्रकृति के सबसे अच्छे सफाईकर्मी हैं, जो हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखते हैं और हमें बीमारियों से बचाते हैं।

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