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धर्म परिवर्तन एक संस्थागत साजिश, उपराष्ट्रपति धनकड़ ने किया देश को आगाह

जयपुर: देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने धर्मांतरण पर गहरी चिंता जताई है। गुरुवार को उन्होंने राजस्थान की राजधानी जयपुर में सनातन पर बात की। उन्होंने कहा कि सनातन कभी जहर नहीं फैलाता। यह खुद शक्तियों का संचार करता है। देश में एक संकेत दिया गया है, जो बहुत खतरनाक है और यह राजनीति को […]

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धर्म परिवर्तन एक संस्थागत साजिश, उपराष्ट्रपति धनकड़ ने किया देश को आगाह
  • September 27, 2024 7:38 am Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

जयपुर: देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने धर्मांतरण पर गहरी चिंता जताई है। गुरुवार को उन्होंने राजस्थान की राजधानी जयपुर में सनातन पर बात की। उन्होंने कहा कि सनातन कभी जहर नहीं फैलाता। यह खुद शक्तियों का संचार करता है। देश में एक संकेत दिया गया है, जो बहुत खतरनाक है और यह राजनीति को भी बदलने वाला है। यह नीतिगत तरीके से, संस्थागत तरीके से और सुनियोजित षड्यंत्र के तरीके से हो रहा है। यह धर्मांतरण है!

शुगर कोटेड फिलॉसफी बेची जा रही

हिंदू आध्यात्मिक और सेवा मेले के उद्घाटन भाषण के दौरान जगदीप धनखड़ ने दावा किया, “इस समय देश में शुगर कोटेड फिलॉसफी  बेची जा रही हैं। वे समाज के कमजोर वर्गों को निशाना बनाते हैं। वे हमारे आदिवासी लोगों के बीच ज्यादा घुसपैठ करते हैं। उन्हें लालच देते हैं। हम धर्मांतरण को एक नीति के रूप में बहुत दर्दनाक तरीके से देख रहे हैं और यह हमारे मूल्यों और संवैधानिक परिसर के विपरीत है।

उपराष्ट्रपति ने कहा, “आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि आज भारत को तोड़ने के लिए कितने लोग सक्रिय हैं। जब मैं अपने सामने राष्ट्रवाद और देशभक्ति देखता हूं और पड़ोसी देश में कुछ होता है, तो एक संवैधानिक पद पर रह चुका व्यक्ति, केंद्र में मंत्री रह चुका व्यक्ति, कानूनी पेशे में वरिष्ठ अधिवक्ता, नैरेटिव चलाता है, कहता है कि भारत में भी ऐसा हो सकता है। क्या हमारा लोकतंत्र कमजोर है?”

यह संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “हम एक दर्दनाक धर्म परिवर्तन देख रहे हैं और यह हमारे मूल्यों और संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना सनातन धर्म के सार को दर्शाती है। हिंदू धर्म वास्तव में समावेशी है, यह पृथ्वी पर सभी जीवों का ख्याल रखता है। दूसरों की सेवा में जीवन व्यतीत करना हमारी भारतीय संस्कृति का सार और मूल मंत्र है। भारत एक ऐसा देश है जहां दस में से चार लोग सार्वजनिक कार्यों में लगे हैं और दूसरों की सेवा कर रहे हैं।”

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