देश-प्रदेश

महिला सरपंच के निर्णय लेने से ग्रामीण हुए नाखुश, लैंगिक समानता पर उठा सवाल, जानें SC का अंतिम आदेश

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के विचखेड़ा ग्राम पंचायत की निर्वाचित सरपंच मनीषा रविंद्र पानपाटिल को पद से हटाने के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को हटाने का निर्णय हल्के में नहीं लिया जा सकता, विशेष रूप से जब यह मामला ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं से जुड़ा हो।

महिला के निर्देशों करना होगा पालन

जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि यह मामला इस बात का उदाहरण है कि गांव के निवासियों ने एक महिला को सरपंच के रूप में स्वीकार करने पर असहमति जताई। उन्होंने कहा कि ग्रामीणों के लिए यह स्वीकार करना कठिन था कि एक महिला उनके लिए निर्णय लेगी और उन्हें उसके निर्देशों का पालन करना होगा।

लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण पर दिया जोर

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वर्तमान परिस्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब देश लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के प्रगतिशील लक्ष्यों की ओर अग्रसर हो रहा है। न्यायालय ने कहा कि महिलाओं का सार्वजनिक और निर्वाचित पदों पर प्रतिनिधित्व बढ़ाने के प्रयासों को इस तरह के उदाहरण बाधित करते हैं और जमीनी स्तर पर महिला सशक्तिकरण की दिशा में हो रही प्रगति को कमजोर करते हैं। बेंच ने यह भी कहा किया कि ऐसी महिलाएं जो सार्वजनिक पदों तक पहुंचती हैं, अक्सर उन्हें कई सघर्षों सामना करना पड़ता हैं। इसलिए उनको पद से हटाने के फैसले को बिना ठोस जांच और पर्याप्त आधार के नहीं लिया जाना चाहिए।

क्या था पूरा मामला?

मामला मनीषा पानपाटिल का था, जिन्हें ग्रामीणों की शिकायतों के आधार पर पद से हटा दिया गया था। ग्रामीणों का आरोप था कि पानपाटिल सरकारी जमीन पर बने मकान में अपनी सास के साथ रह रही थीं। हालांकि पानपाटिल ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वह अपने पति और बच्चों के साथ किराए के मकान में अलग रहती हैं। उन्होंने याचिका में यह भी दावा किया कि बिना उचित जांच और ठोस सबूतों के जिलाधिकारी ने उन्हें सरपंच पद के लिए अयोग्य करार दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पानपाटिल की दलीलों को सुनने के बाद उनके पक्ष में निर्णय दिया और उन्हें पद से हटाने के आदेश को खारिज कर दिया।

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Yashika Jandwani

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