नई दिल्ली। आज यानि 12 मई को ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी मंदिर विवाद पर कोर्ट का फैसला आया. अदालत के आदेश पर सर्वे करने गई टीम और कोर्ट कमिश्नर को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं. वीडियोग्राफी करने गए व्यक्ति ने परिसर में कुछ ऐसी चीजे रिकॉर्ड की है, जो इसके मंदिर होने की तरफ […]
नई दिल्ली। आज यानि 12 मई को ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी मंदिर विवाद पर कोर्ट का फैसला आया. अदालत के आदेश पर सर्वे करने गई टीम और कोर्ट कमिश्नर को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं. वीडियोग्राफी करने गए व्यक्ति ने परिसर में कुछ ऐसी चीजे रिकॉर्ड की है, जो इसके मंदिर होने की तरफ इशारा करती है. इस पर मुस्लिम पक्ष ने सर्वे और वीडियोग्राफी करने गए कोर्ट कमिश्नर पर ही सवाल उठा दिए. ऐसे में आज देखना होगा कि इस पर कोर्ट क्या फैसला सुनाता है।
आइये जानते है क्या है ज्ञानवापी मस्जिद विवाद? और इस विवाद में शामिल पक्ष ने अब तक क्या दलील पेश किए हैं और उनका दावा क्या है?
बता दें कि वादी हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर के अंदर सर्वे कराए जाने के लिए कोर्ट से मांग की. इस पर अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने अपना पक्ष रखने के लिए अदालत से बुधवार तक का समय मांगा था. जब 6 मई से ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे शुरू हुआ तो महज डेढ़ दिन बाद ही मुस्लिम पक्ष ने सर्वे के लिए अदालत की तरफ से नियुक्त किए गए कोर्ट कमिश्नर की निष्पक्षता पर ही सवाल उठा दिया। इसके बाद जमकर हंगामा हुआ और आज कोर्ट ने इसपर अपना फैसला सुनाया है. ज्ञानवापी के बारे में जो सबसे प्रचलित मान्यता है वह ये है कि इस मस्जिद का निर्माण सन 1664 में मुगल शासक औरंगजेब ने करवाया था. ये भी कहा जाता है कि इस मस्जिद के बनने से पहले यहां मंदिर हुआ करता था और औरंगजेब ने वह मंदिर ध्वस्त कर उसके अवशेषों का इस्तेमाल कर इसका मस्जिद में निर्माण करवाया।
इस मामले में साल 1991 में सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय ने वादी के तौर पर प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विशेश्वर की ओर से अदालत में मुकदमा दायर किया. ज्ञानवापी मस्जिद का मामला 1991 से अदालत में है, लेकिन मां श्रृंगार गौरी का मामला महज 7 महीने पुराना है. 18 अगस्त 2021 में वाराणसी की एक अदालत में यहां की 5 महिलाओं ने मां श्रृंगार गौरी के मंदिर में पूजा अर्चना की मांग की. इस याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने श्रृंगार गौरी मंदिर की मौजूदा स्थिति को जानने के लिए कमीशन का गठन किया। कोर्ट ने श्रृंगार गौरी की मूर्ति और ज्ञानवापी की परिसर में वीडियोग्राफी कराकर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा था जिसपर हंगामा छिड़ गया।
वाराणसी का जो काशी विश्वनाथ मंदिर है उसे बिल्कुल सटी हुई ये ज्ञानवापी मस्जिद है. इसको लेकर दावा किया जा रहा है कि प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर मस्जिद बनाई गई है. साल 1991 में वाराणसी की के एक सिविल जज की अदलात में एक मुकदमा दायर किया गया। काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास समेत तीन लोगों ने याचिका दायर की. इस याचिका में दावा किया कि साल 1669 में औरंगजेब ने 2000 साल पुराने भगवान के मंदिर को तोड़कर उसमें मस्जिद बना दी. इसलिए ये जमीन उन्हें वापस दी जाए. पंडित सोमनाथ और अन्य की तरफ से वकील विजय शंकर रस्तोगी थे।
इस जमीन के मालिकाना हक का दावा करने वाला व्यास परिवार आज भी सालाना श्रृंगार गौरी की पूजा करता है. परिवार के लोगों का मानना है कि ये जमीन उनकी है भले ही उसके ऊपर वो मस्जिद है, जिसे लेकर विवाद है. बता दें इलाहाबाद हाईकोर्ट से पहले आगरा हाईकोर्ट था। कोर्ट ने तय किया कि जमीन का मालिकाना हक व्यास परिवार का है, लेकिन उस पर बनी मस्जिद मुसलमानों की है.
कोर्ट के इस फैसले को आज भी व्यास परिवार मानता आ रह है. साथ ही व्यास परिवार का दावा है कि मुस्लिम पक्ष के पास जमीन का एक भी कागज नहीं है. वहीं मुस्लिम पक्ष भी ये मानता है कि ज्ञानचंद व्यास की जमीन पर मस्जिद बनी है, मगर उसके मुताबिक ज्ञानचंद व्यास ने अपनी जमीन मस्जिद को अपनी मर्जी से दी थी. व्यास परिवार के वकील इंद्र प्रकाश हैं.
इस मामलें पर जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना हसीन असमद हबीबी का कहना है कि ये मामला पेचीदा है. क्योंकि मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ये औरंगजेब से पहले की बात है, लेकिन हिंदू पक्ष इन तस्वीरों और नक्शे के साथ ही मालिकाना हक के दस्तावेजों के साथ अदालत में अपनी दलील रख रहा है. उन्होंने कहा कि अयोध्या के बाद अदालत के सामने ये एक और बेहद मुश्किल मामला है.
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