नई दिल्ली: Gandhi Jayanti : अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कौन नहीं जनता है। बापू आंदोलनों के चलते पूरे देश में प्रसिद्ध थे।जब भी गांधी जी का जिक्र होता है तो उनसे जुड़े तीन बंदरों का याद आना स्वाभाविक है। क्या आप जानते हैं कि इन तीनों बंदरों […]
नई दिल्ली: Gandhi Jayanti : अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कौन नहीं जनता है। बापू आंदोलनों के चलते पूरे देश में प्रसिद्ध थे।जब भी गांधी जी का जिक्र होता है तो उनसे जुड़े तीन बंदरों का याद आना स्वाभाविक है। क्या आप जानते हैं कि इन तीनों बंदरों का नाम बापू के साथ कैसे जोड़ा गया था? माना जाता है कि ये बंदर चीन से महात्मा गांधी के पास पहुंचे थे। दरअसल, देश- विदेश से लोग अक्सर सलाह लेने के लिए महात्मा गांधी से मुलाकात करने आया करते थे।
मिजारू बंदर : इसने दोनों हाथों से आंखें को बंद किया होता है, यानी जो बुराई को नहीं देखता है ।
किकाजारू बंदर : इसने दोनों हाथों से कान बंद किए होते हैं, यानी जो बुरा नहीं सुनता है।
इवाजारू बंदर : इसने दोनों हाथों स मुंह बंद कर होता है, यानी जो बुरा नहीं बोलता ।
एक दिन चीन का एक प्रतिनिधिमंडल गांधी जी से मिलने आए हुए थे। बातचीत के बाद उन लोगों ने गांधी जी को एक भेंट देते हुए कहा कि यह एक बच्चे के खिलौने से बड़े तो नहीं हैं लेकिन हमारे देश में बेहद मशहूर है। गांधी जी तीन बंदरों के सेट को देखकर बेहद खुश भी हुए। उन्होंने इस बंदर के सेट को अपने पास रख लिया और जिंदगी भर अपने पास संभाल कर रखा। इस तरह ये तीन बंदर बापू के नाम के साथ हमेशा के लिए जुड़ गए। कहा जाता है कि ये बंदर बुरा न देखो, बुरा न सुनो, बुरा न बोलो के सिद्धांतों को दर्शाते हैं।
गांधीजी के इन तीन बंदरों को जापानी संस्कृति से भी जोड़कर देखा जाता है। दरअसल 1617 में जापान के निक्को स्थित तोगोशु की समाधि पर यही तीनों बंदर बने हुए देखे गए हैं। माना जाता है कि ये बंदर चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के थे और आठवीं शताब्दी में ये चीन से जापान पहुंच गए थे। उस वक्त जापान में शिंटो संप्रदाय का दबदबा था। बता दें, शिंटो संप्रदाय में बंदरों को काफी माना जाता है। जापान में इन्हें ‘बुद्धिमान बंदर’ के नाम से जाना जाता है। साथ ही इन्हें यूनेस्को ने अपनी वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया गया है।
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