रांची: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिलक्यारा सुरंग (Uttarkashi Tunnel) में फंसे 41 मजदूर कल यानी मंगलवार (29 नवंबर) रात सुरक्षित बचाए गए। इनमें से एक 22 वर्षीय मजदूर अनिल बेदिया (Anil Bediya) ने बताया कि टनल में फंसने के बाद वे लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटते थे। […]
रांची: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिलक्यारा सुरंग (Uttarkashi Tunnel) में फंसे 41 मजदूर कल यानी मंगलवार (29 नवंबर) रात सुरक्षित बचाए गए। इनमें से एक 22 वर्षीय मजदूर अनिल बेदिया (Anil Bediya) ने बताया कि टनल में फंसने के बाद वे लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटते थे। अनिल ने बताया कि शुरूआती कुछ दिन उन लोगों ने मुरमुरे खाकर गुजारे थे। झारखंड के निवासी अनिल बेदिया ने बताया कि उन्होंने सुरंग में फंसकर मौत को बहुत करीब से देखा।
झारखंड के श्रमिक अनिल ने बुधवार को बताया कि मजदूरों ने सुरंग (Uttarkashi Tunnel) के अंदर कैसे जिंदगी बिताई। अनिल ने कहा कि मलबा ढहने के बाद तेज चीखों से पूरा इलाका गूंज गया था। बेदिया ने बताया कि टनल में फंसने के बाद सभी मजदूरों ने सोंचा था कि वे सुरंग के भीतर ही दफन हो जाएंगे। आगे अनिल कहता है कि शुरूआती कुछ दिनों में हमने सारी उम्मीदें खो दी थीं। यह एक बुरे सपने की तरह था। श्रमिक ने बताया कि हमने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटा और शुरूआती कुछ दिन तक हमने मुरमुरे खाकर दिन गुजारे थे।
अनिल बेदिया रांची के बाहरी इलाके खिराबेड़ा गांव के निवासी हैं। बता दें कि यहां से कुल 13 लोग एक नवंबर को काम के लिए उत्तरकाशी गए थे। अनिल बताते हैं कि जब सुरंग में मलबा गिरा तब खिराबेड़ा गांव के 13 लोगों में से केवल 3 ही टनल के अंदर थे। जानकारी हो कि सिल्क्यारा सुरंग के अंदर फंसे 41 मजदूरों में से कुल 15 श्रमिक झारखंड से थे।
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श्रमिक अनिल बेदिया ने बताया कि अधिकारियों के साथ लगभग 70 घंटों के बाद संपर्क होने पर उनके अंदर जीवित रहने की पहली उम्मीद जगी। अनिल ने बताया कि हमारे पास सुरंग के अंदर खुद को राहत देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। लेकिन जब आखिरकार हमने बाहर से हमसे बात करने वाले लोगों की आवाजें सुनीं, तो हम में जीवित रहने की आशा जगी और हमारी हताशा खत्म हुई।