नई दिल्ली: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल हादसे (Uttarkashi Tunnel Collapse) का आज 9वां दिन है। 9 दिन से इस टनल में 41 मजदूर फंसे हुए हैं। दरअसल, उत्तरकाशी में 12 नवंबर को निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा ढहने से उसके भीतर काम कर रहे 41 श्रमिक फंस गए। अब घटना के 8 दिन बीत चुके हैं, पर अभी तक यहां फंसे मजदूरों को बाहर नहीं निकाला गया है। बीतते समय के साथ सुरंग के बाहर मजदूरों का इंतजार कर रहे उनके परिजनों में निराशा बढ़ती जा रही है। हालांकि रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। आइए विस्तार से जानते हैं अब तक की पूरी खबर।
12 नवंबर की सुबह 4 बजे अचानक से मलबा गिरने लगा। करीब 5.30 होते- होते मेन गेट से 200 मीटर अंदर तक भारी मात्रा में मलबा इकट्ठा हो गया। इससे उस वक्त टनल के अंदर काम कर रहे 41 मजदूर फंस गए। उनके बाहर आने का कोई रास्ता नहीं बचा। बता दें कि टनल के एंट्री पॉइंट से 200 मीटर अंदर 60 मीटर तक मिट्टी धंसी हुई है।
ऐसे में बचाव अभियन शुरु किया गया। इसके तहत टनल से पानी निकालने के लिए बिछाए गए पाइप के जरिए अंदर फंसे श्रमिकों के लिए ऑक्सीजन, भोजन, पानी और दवा पहुंचाई जाने लगी। उसी दिन बचाव अभियान में NDRF, ITBP और BRO को काम में लगा दिया गया। साथ ही 35 हॉर्स पावर की ऑगर मशीन से 15 मीटर अंदर तक का मलबा भी हटा दिया गया।
इसके बाद अगले दिन यानी 13 नवंबर को टनल के अंदर से 25 मीटर तक मिट्टी के अंदर पाइप लाइन डाली जाने लगी। लेकिन इस कार्य के दौरान दोबारा से मलबा गिर गया। इस कारण 25 मीटर के बजाय 20 मीटर तक ही काम करके इसे रोकना पड़ गया।
दो दिन बीत चुके थे और कोई समाधान नहीं निकल पाया था। टनल में मिट्टी लगातार अंदर धंसती जा रही थी। इसलिए 14 नवंबर को नॉर्वे और थाईलैंड के एक्सपर्ट्स से इस मामले में सलाह ली गई। 900 एमएम यानी लगभग 35 इंच मोटे पाइप को टनल के अंदर डालकर श्रमिकों को बाहर निकालने का प्लान बनाया गया। इसके लिए ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक को काम में लगाया गया, पर ये मशीनें फेल हो गईं।
रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाए गए मशीनों के फेल होने के बाद घटना के चौथे दिन यानी 15 नवंबर को टनल (Uttarkashi Tunnel Collapse) के बाहर पुलिस और मजदूरों के बीच झड़प हो गई। दरअसल, मजदूर बचाव कार्य में हो रही देरी से नाराज थे। इसके बाद पीएमओ के आदेश पर दिल्ली से एयरफोर्स के हरक्यूलियस विमान के जरिए ऑगर मशीन को चिल्यानीसौड़ हेलीपैड पहुंचाया गया। पर ये पार्ट्स इतने बड़े और हैवी थे कि विमान में ही फंस गए। करीब तीन घंटे की मशक्कत के बाद इन्हें प्लेन से बाहर निकाला गया।
16 नवंबर को जाकर ऑगर मशीन का इंस्टॉलेशन पूरा हो पाया। इसके बाद रात 8 बजे से बचाव अभियान दोबारा से शुरु किया गया। इस दौरान टनल के अंदर 18 मीटर पाइप डाले गए। इस बीच भूकंप की वजह से टनल से और पत्थर गिर गए, जिसकी वजह से मलबा कुल 70 मीटर तक फैल गया। साथ ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बचाव अभियान की रिव्यू बैठक की।
घटना के छठे दिन यानी 17 नवंबर की सुबह टनल में फंसे दो मजदूरों की तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें दवा पहुंचाई गई। साथ ही दोपहर के 12 बजे रास्ते में पत्थर के आने से ऑगर मशीन से हो रही ड्रिलिंग रोक दी गई। अब तक टनल के अंदर करीब 24 मीटर पाइप डाला जा चुका था। रात में फिर टनल को दूसरी जगह से ऊपर से काटकर फंसे मजदूरों को निकालने के लिए सर्वे किया गया।
18 नवंबर को ड्रिलिंग को रोक दिया गया क्योंकि बचावदल का कहना था कि सुरंग में से कुछ चटकने की आवाज आने के बाद आसपास दहशत का माहौल फैल गया और आशंका जताई जाने लगी सुरंग का एक और हिस्सा धंस सकता है। इस बीच कई दिन से टनल के अंदर फंसे श्रमिकों ने भूख से कमजोरी की शिकायत की। इसके बाद पीएमओ के सलाहकार रहे भास्कर खुल्बे और डिप्टी सेक्रेटरी मंगेश घिल्डियाल उत्तरकाशी पहुंचे और 5 जगहों से ड्रिलिंग की योजना बनाई गई।
19 नवंबर को सुबह होते ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और प्रदेश के सीएम घटनास्थल पर पहुंचे और बचान अभियान का जायजा लिया। साथ ही फंसे श्रमिकों के परिवार के लोगों को भरोसा दिलाया कि उन्हें जल्द ही बाहर निकाला जाएगा। इसके बाद शाम के 4 बजे से सिल्क्यारा एंड से ड्रिलिंग का काम दोबारा शुरु किया गया। साथ ही मजदूरों को खाना पहुंचाने के लिए एक और टनल बनाने का काम शुरु हुआ। प्लान बना कि टनल में जहां से मलबा गिरा है, वहां से छोटे रोबोट के जरिए खाना भेजा जाएगा या टनल बनाने का काम करवाया जाएगा।
टनल (Uttarkashi Tunnel Collapse) में फंसे मजदूरों को फंसे हुए आज यानी 20 नवंबर को 9 दिन हो गया है। इस बीच एनएटचआईडीसीएल के डायरेक्टर अंशु मनीष ने कहा है कि टनल के अंदर स्थित अतिसंवेदनशील है। यहां कभी भी, कुछ भी हो सकता है। स्थिति को देखते हुए यहां ऑगर्स मशीन के साथ काम कर रहे श्रमिकों के सुरक्षा के मद्देनजर अलग से सुरंग बनाई जा रही है।
अभी डंडालगांव की तरफ से वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए काम किया जा रहा है। साथ ही सिलक्यारा की तरफ से 6 इंच की नई पाइपलाइन टनल के अंदर भेजी जा चुकी है। अब अंदर फंसे श्रमिकों के लिए डाइट चार्ट बनाकर आज शाम से सेब, दलिया, खिचड़ी जैसे हल्के खाद्य पदार्थ भेजे जाएंगे।
इसके अलावा, यहां एंडोस्कोपी जैसा एक कैमरा भी मंगाया जा रहा है ताकि अंदर फंसे लोगों को देखा जा सके। बता दें कि इस सुरंग के अंदर भेजने के लिए रोबोट भी मंगाए गए हैं। हालांकि, अभी इन रोबोट्स को टनल के अंदर भेजने में सफलता नहीं मिली है।
आज सुबह ‘इंटरनेशनल टनलिंग अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन’ के प्रेसिडेंट प्रोफेसर ऑर्नल्ड डिक्स ने टनल के बाहर से वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए दो पॉइंट फाइनल किए हैं। उन्होंने टनल की मिट्टी और पत्थरों की जांच कर अंदर फंसे श्रमिकों के साथ ही रेस्क्यू स्टाफ की सुरक्षा को भी जरूरी बताया था। जानकारी हो कि प्रोफेसर डिक्स दुनिया भर में टनल सेफ्टी एक्सपर्ट और डिजास्टर इन्वेस्टिगेटर के तौर पर प्रसिद्ध हैं।
उत्तराखंड सरकार ने घोषणा की है कि कई राज्यों के श्रमिकों की जानकारी लेने पहुंचे परिजनों का खर्च सरकार उठाएगी। साथ ही इन परिजनों से समन्वय बनाने के लिए तीन और अफसर उत्तरकाशी भेजे गए हैं। बता दें कि यहां पहले से आईएएस डॉ नीरज खैरवाल, एसडीएम शैलेन्द्र नेगी तैनात हैं। ये दूसरे राज्यों के अफसरों को बचाव कार्य की जानकारी दे रहे हैं।
नए प्लान के अंतर्गत आठ एजेंसियां- NHIDCL, ONGC, THDCIL, RVNL, BRO, NDRF, SDRF, PWD और ITBP एक साथ 5 तरफ से टनल में ड्रिलिंग करने वाली हैं। इस तरह से होगी टनल में 5 तरफ से ड्रिलिंग-
1. NHIDCL सिलक्यारा की ओर से मेन टनल में 35 मीटर की ड्रिलिंग करेगी।
2. THDCIL डंडालगांव की ओर से मेन टनल में 480 मीटर की खुदाई करने वाली है।
3. ONGC डंडालगांव की तरफ से 172 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग करेगी।
4. सिलक्यारा से 350 मीटर आगे यमुनोत्री जाने वाले पुराने रास्ते पर BRO ने सड़क बनाई है, जिसपर RVNL हॉरिजॉन्टल खुदाई करने वाली है।
5. RVNL और सतलुज जल विद्युत निगम सिलक्यारा की तरफ से ही 350 मीटर आगे 84 मीटर की दो वर्टिकल ड्रिलिंग करेंगी। पहली ड्रिलिंग 24 इंच की जाएगी। इससे श्रमिकों को खाना दिया जाएगा। इसमें 2 दिन लगने की उम्मीद जताई जा रही है। वहीं, दूसरी ड्रिलिंग 1.2 मीटर की होगी, जिसके जरिए लोगों को निकाला जाएगा। इसमें लगभग 4-5 दिन लग सकते हैं।
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जानकारी हो कि टनल (Uttarkashi Tunnel Collapse) के अंदर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के मजदूर फंसे हुए हैं।
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