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Uttarkashi: रैट होल माइनिंग के बारे में जानिए, जिसके चलते उत्तरकाशी से मजदूरों के लिए जगी आशा की किरण

उत्तरकाशीः उत्तरकाशी के शिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरो के लिए आखिरकार 17 दिनों बाद राहत भरी खबर आई है। आज यानी 27 नवंबर को ड्रिलिंग का खत्म हो चुका है और मजदूरों को कभी भी बाहर निकाला जा सकता है। इसके लिए एनडीआरएफ और सेना के जवान मोर्चे पर डटे हुए है। वहीं राज्य के […]

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Uttarkashi: रैट होल माइनिंग के बारे में जानिए, जिसके चलते उत्तरकाशी से मजदूरों के लिए जगी आशा की किरण
  • November 28, 2023 4:02 pm Asia/KolkataIST, Updated 1 year ago

उत्तरकाशीः उत्तरकाशी के शिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरो के लिए आखिरकार 17 दिनों बाद राहत भरी खबर आई है। आज यानी 27 नवंबर को ड्रिलिंग का खत्म हो चुका है और मजदूरों को कभी भी बाहर निकाला जा सकता है। इसके लिए एनडीआरएफ और सेना के जवान मोर्चे पर डटे हुए है। वहीं राज्य के सीएम पुष्कर सिंह धामी भी घटनास्थल पर पहुंच चुके है। अब ऐसा माना जा रहा है की कुछ घंटो के अंदर सभी 41 मजदूरों को बाहर निकाल लिए जाएगा लेकिन ये सब संभव हुआ रैट होल माइनिंग के जरिए। आईए जानते है इसके बारे में विस्तार से

रैट होल माइनिंग के बारें में जानिए

रैट-होल माइनिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कुछ खनिक ( कोयला निकालने वाला ) कोयला निकालने के लिए संकरे बिलों में जाते हैं। हालांकि, यह पद्धति भारत में विवादित और गैर-कानूनी भी है। जानकारी दें दे कि यह प्रथा पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय में प्रचलित थी। खनिक गड्ढे खोदकर चार फीट चौड़ाई वाले उन संकरे गड्ढों में उतरते थे जो, जहां केवल एक मजदूर की जगह होती है। वे बांस की सीढ़ियों और रस्सियों का प्रयोग करके नीचे उतरते थे, फिर गैंती, फावड़े और टोकरियों आदि का उपयोग करके मैन्युअल ( मजदूरों के द्वारा ) रूप से कोयला निकालते थे।

रैट माइनिंग क्यों है गैरकानूनी

इस तरीके से होने वाली खुदाई से सुरक्षा खतरे पैदा हो सकते है। ऐसा इसलिए क्योंकि खनिक विना सुरक्षा व्यवस्था किए बिना गड्ढे में उतर जाते थे और कई बार हादसों का शिकार हो जाते थे। ऐसे कई मामले भी आए जहां बरसात में रैट होल माइनिंग के कारण खनन क्षेत्रों में पानी भर गया, जिसके चलते श्रमिक जान गंवा बैठे। यही कारण है कि वर्ष 2014 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने मेघालय में इस पद्धति से होने वाली खुदाई पर रोक लगा दिया था।

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