नई दिल्ली. नरेंद्र मोदी सरकार के सवर्ण आरक्षण बिल को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया है. सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण के लिए संविधान में 124वां संशोधन किया गया. ये संशोधन बिल नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद में पेश किया था. मंगलवार को ये बिल लोकसभा में और बुधवार को राज्यसभा पास हो चुका है. अभी बिल राष्ट्रपति के पास साइन होने के लिए गया है. उनके साइन के बाद ही ये कानून के रूप में लागू होगा. इससे पहले ही बिल को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किए जाने की खबर आ रही है.
आरक्षण विरोधी संगठन ने इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया है. ये संगठन है यूथ फॉर इक्वेलिटी. इन्होंने इस बिल के कानून बनने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया है. अभी आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के लिए केवल एक बिल ही संसद में पास किया गया है. इस बिल को कानून का रूप राष्ट्रपति के साइन के बाद ही दिया जाएगा.
बता दें कि सदन की कार्यवाही को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है. हालांकि यूथ फॉर इक्वेलिटी ने इसे कानून बनने से पहले ही सदन की कार्यवाही के बाद बिल को चैलेंज कर दिया है. इसी टेक्निकल आधार पर यूथ फॉर इक्वेलिटी की सुप्रीम कोर्ट में बिल के खिलाफ दी गई याचिका खारिज की जा सकती है. यूथ फॉर इक्वेलिटी आरक्षण विरोधी संगठन है. इनका मानना है कि देशभर से आरक्षण को खत्म कर देना चाहिए और मेरिट के आधार पर ही लोगों को नौकरी या शिक्षा के क्षेत्र में मौका दिया जाना चाहिए.
यूथ फॉर इक्वेलिटी द्वारा सुपर्म कोर्ट में दी गई याचिका में लिखा है कि आर्थिक मापदंड आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है. कहा गया है कि ये समानता के अधिकार और संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है. साथ ही कहा गया कि ये बिल नागराज बनाम भारत सरकार मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है. याचिका के जरिए परिवार की 8 लाख रुपये सालाना आय के पैमाने पर भी सवाल उठाया है.
Rajya Sabha Quota Bill: लोकसभा से पास 10% सवर्ण आरक्षण बिल राज्यसभा से जस का तस पारित
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