Upper Caste Quota 10% Reservation: मोदी सरकार ने सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला दिया है. इस फैसले के तहत आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण का लाभ मिलेगा. लेकिन अहम बात यह है कि अब तक आरक्षण को भीख कह कर पुकारने वाले सवर्ण समाज को यह कितना पसंद आएगा?
नई दिल्ली. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सोमवार को एक बड़ा फैसला लेते हुए आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला लिया. सोमवार हुई कैबिनेट की एक बैठक में यह फैसला लिया गया. इस फैसले के लिए मोदी सरकार मंगलवार को सदन में संविधान संशोधन प्रस्ताव पेश कर सकती है. क्योंकि यह फैसला संविधान की मूल आत्मा के विरुद्ध है. संविधान के अनुसार 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है.
लेकिन मोदी सरकार के इस फैसले पर कई सवाल खड़े हो रहे है. पहला सवाल तो यह है कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट में कितना टिकेगा? इस फैसले से जुड़ा दूसरा अहम प्रश्न यह है कि आरक्षण को भीख बताने वाले सवर्णों को मोदी सरकार का 10 प्रतिशत आरक्षण कितना पसंद आएगा? यदि आरक्षण और उससे उपजी सामाजिक व्यवस्था पर गौर करें तो यह बात साफ होती है कि यह समाज को बांटने का काम करती है.
मसलन सवर्ण आज तक आरक्षण को इस बात पर गलत बता रहे थे कि इससे मेरिट वाले लोगों को सही मौका नहीं मिलता है, वे इस फैसले को कैसे लेंगे? सवर्ण नेता जो कल तक सोशल मीडिया से लेकर भाषणों तक आरक्षण को भीख बताते थे वो अब ऐसा नहीं कर सकेंगे. इससे मेरिट का डिबेट कमजोर होगा.
यह सामान्य समझ है कि आरक्षण से योग्य प्रतिभागियों के लिए मौके कम जाते है. 80 नंबर हासिल करने के बाद भी सवर्ण बच्चें का एडमिशन नहीं होता लेकिन वहीं 65 नंबर हासिल करने वाले ओबीसी, एससी एसटी समाज के बच्चे नामांकन हासिल कर लेते है. जिसका विरोध सर्वण समाज लंबे समय से कर रहा था. अब इस फैसले के बाद प्रतिभा पर जारी बहस धीमी होगी.
सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण से सवर्ण समाज में भी एक विभाजनकारी रेखा जन्म लेंगी. आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को तो इसका लाभ मिलेगा. लेकिन बाकी बचे सवर्णों के लिए मौके और कम हो जाएंगे. मतलब यह कि अब तक की व्यवस्था के अनुसार सवर्ण 50 प्रतिशत में फाइट करते थे. जो अब घट कर 40 प्रतिशत रह जाएगी. ऐसे में जो सवर्ण आरक्षण के अधीन नहीं आएंगे उनके लिए अवसरे और कम जाएगी.