नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन टूटने का असर यूपी की सियासत पर साफ दिख रहा है. इंडिया गठबंधन की प्रमुख पार्टी कांग्रेस अब यूपी में सपा के प्रभाव में राजनीति करने के मूड में नहीं है. इसलिए उनका क्षेत्रीय संगठन फ्रंट पर रहकर राजनीति कर रहा है. वहीं, कांग्रेस नेतृत्व वाले राज्य में […]
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में सपा-कांग्रेस गठबंधन टूटने का असर यूपी की सियासत पर साफ दिख रहा है. इंडिया गठबंधन की प्रमुख पार्टी कांग्रेस अब यूपी में सपा के प्रभाव में राजनीति करने के मूड में नहीं है. इसलिए उनका क्षेत्रीय संगठन फ्रंट पर रहकर राजनीति कर रहा है. वहीं, कांग्रेस नेतृत्व वाले राज्य में लगातार ऐसी राजनीतिक गतिविधियां चल रही हैं, जिससे समाजवादी पार्टी के नेता असहज महसूस कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन में फूट पड़ गई. इसके बाद कांग्रेस ने साफ कर दिया कि विपक्षी दलों का गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए है. इसके चलते उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब कांग्रेस और सपा आमने-सामने नजर आ रही हैं. पहले मुस्लिम नेताओं को पार्टी में शामिल करने और अब आजम के नाम पर मुस्लिम राजनीति को हवा देने के कांग्रेस के कदम ने सपा के साथ टकराव बढ़ा दिया है।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस आक्रामक राजनीति के मूड में है. वह अपने सहयोगी दलों की दया पर निर्भर नहीं रहना चाहतीं. इसी क्रम में उन्होंने अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल कर कमान अजय राय को सौंप दी है. अजय राय ने कमान संभालते ही ‘हर-हर महादेव’ के नारे लगाकर कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया. साथ ही वह खुद भी हर मुद्दे पर कांग्रेस का पक्ष रखने से नहीं चूकते.
वह मण्डल से लेकर जिले तक दौरा कर रहे हैं. इसके अलावा प्रभावशाली नेताओं को भी पार्टी में शामिल किया जा रहा है. इसमें खासकर पश्चिम के बड़े मुस्लिम चेहरे इमरान मसूद और पूर्व मंत्री कोकब हमीद के बेटे अहमद हमीद और फिरोज आफताब के शामिल होने से सपा खेमे की बेचैनी बढ़ गई है।
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एमपी में गठबंधन टूटने के बाद सपा और कांग्रेस के बीच कड़वाहट बढ़ गई है. इसके बाद यूपी में पोस्टर वॉर शुरू हो गया है. सपा नेताओं ने जहां पार्टी मुखिया अखिलेश को पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया है, वहीं लखनऊ कांग्रेस दफ्तर के आसपास भी पोस्टर लगाए गए हैं.
इसमें राहुल गांधी को पीएम और प्रदेश अध्यक्ष अजय राय को भावी सीएम चेहरे के तौर पर दिखाया गया था. इसके साथ ही कांग्रेस दफ्तर में लगे पोस्टरों में सपा की जगह बसपा और रालोद से गठबंधन का सुझाव दिया गया है. इन पोस्टर वॉर को दबाव की राजनीति के तौर पर देखा जा रहा है.