नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों से पहले ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुना दिया. हाई कोर्ट के इस फैसले से राज्य सरकार संतुष्ट नहीं दिख रही है. राज्य सरकार ने फैसला किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख करेगी. दरअसल फैसला सरकार के […]
नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों से पहले ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुना दिया. हाई कोर्ट के इस फैसले से राज्य सरकार संतुष्ट नहीं दिख रही है. राज्य सरकार ने फैसला किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख करेगी. दरअसल फैसला सरकार के हिट में नहीं आया है. और इस फैसले में ओबीसी आरक्षण को रद्द कर जल्द से जल्द चुनाव करवाने का आदेश दिया गया है. इसके अलावा फैसले में कहा गया है कि ओबीसी आरक्षण के लिए जल्द से जल्द ट्रिपल टेस्ट कराने फैसल सुनाया है. लेकिन ये पहली बार नहीं है कि जब ओबीसी आरक्षण की वजह से किसी राज्य के निकाय चुनाव का पेंच फंसा हो. आइए जानते हैं पहले किस राज्य में फंसा निकाय चुनाव का पेंच.
दरअसल उत्तर प्रदेश में नगरीय निकायों का कार्यकाल 12 दिसंबर 2022 से 19 जनवरी 2023 के बीच ख़त्म होने जा रहा है. इस बीच सूबे में 760 नगरीय निकायों का चुनाव होने वाला है. राज्य सरकार ने इसके लिए सीटों का आरक्षण जारी कर दिया था. राज्य की नगर निगमों के मेयर, नगर पालिका परिषद एवं नगर पंचायतों के अध्यक्ष और पार्षदों के आरक्षण को लेकर हाई कोर्ट में के याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में सरकार ने निकाय आरक्षण में पिछड़ों के आरक्षण में ट्रिपल टेस्ट का फॉर्म्यूला लागू नहीं करने की बात कही गई थी.
इसके बाद आज यानी 27 दिसंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने नगर निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी करने को रोक दिया. कोर्ट का कहना है कि प्रथम दृष्टया से लगता है कि राज्य सरकार ने OBC कोटे का आरक्षण तय करने में ट्रिपल टेस्ट फॉर्म्यूला का अनुपालन नहीं किया. सरकार ने स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार मानने की बात कही थी. सरकार का कहना था कि इसी सर्वे को ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट माना जाए. योगी सरकार के तर्कों को कोर्ट ने नकार दिया और बिना किसी ओबीसी आरक्षण के चुनाव करवाने का निर्देश दिया है.
नगर निकाय चुनावों में सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी के आरक्षण को लेकर ट्रिपल टेस्ट फॉर्म्यूला तय किया है. इस फॉर्मूले के अनुसार निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण निर्धारित करने से पहले एक आयोग गठित होगा. यह आयोग नगरी निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति का आकलन करने का काम करेगा. और पिछड़ों के लिए सीटों का आरक्षण को प्रस्तावित भी करेगा. दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का टेस्ट किया जाएगा. तीसरे चरण में शासन के स्तर पर सत्यापन होगा. इस तरह ट्रिपल फॉर्म्यूला के बाद ही निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण तय किया जाएगा.
महाराष्ट्र में भी एक बार इसी तरह का पेंच फंस चुका है. जहां 92 नगर परिषदों और चार नगर पंचायतों के चुनाव कराने की घोषणा की थी. लेकिन राज्य सरकार ने ओबीसी के आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट का सही से पालन नहीं किया था. हाई कोर्ट में याचिका दायर होने के बाद सभी सीटों को सामान्य (जनरल) घोषित कर दिया था. इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ओबीसी के लिए अध्यादेश लेकर आई थी, जिसे SC ने नहीं माना था. सर्वोच्च अदालत ने ‘ट्रिपल टेस्ट का पालन किए बिना ओबीसी आरक्षण के लिए अध्यादेश लाने के राज्य सरकार के फैसले को स्वीकार ना करने की बात कही थी.
स्थानीय निकाय चुनावों महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा था. तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली महाविकास आघाड़ी सरकार ने निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण दिलवाने के मद्देनजर पूर्व मुख्य सचिव जयंत कुमार बांठिया की अध्यक्षता में 11 मार्च 2022 को बांठिया कमीशन बनाई थी. राज्य की मतदाता सूची को आधार बनाते हुए आयोग ने अनुभवजन्य (इंपीरिकल) डाटा तैयार किया था. अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई थीं. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बांठिया आयोग की सिफारिशों के आधार पर ही स्थानीय निकायों में ओबीसी को आरक्षण देने का आदेश दिया था.
शिवराज सरकार की सरकार में भी ऐसा कुछ देखने को मिला था. जब एमपी सरकार ने पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव में ट्रिपल टेस्ट के बिना ओबीसी आरक्षण दे दिया था. इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव की घोषणा भी कर दी थी. लेकिन जबलपुर हाई कोर्ट में मामला अटक गया. इसे बाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने का फैसला दिया था. हाई कोर्ट के इस फैसले को लेकर शिवराज सरकार घिर गई थी.
हालांकि हाई कोर्ट के फैसले पर शिवराज सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी. इस पर सुनवाई करते हुए SC ने कहा था कि ‘इसी तरह का OBC कोटा महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में लागू हुआ था. किसी भी सूरत में ट्रिपल टेस्ट के बिना ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता. इस समय केवल एससी और एसटी आरक्षण के साथ ही चुनाव करवाने होंगे.’
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के बाद झारखंड में भी नगरीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण का ट्रिपल टेस्ट का फॉर्म्यूला फेल हो गया था. तब हाई कोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव करवाने का आदेश दिया था. राज्य सरकार ने तब सर्वोच्च न्यायलय में याचिका दाखिल कर दी थी. इस पर हेमंत सोरेन सरकार द्वारा SC में शपथपत्र देकर बताया गया था कि आरक्षण से संबंधित ट्रिपल टेस्ट प्रक्रियाधीन है. झारखंड सरकार भविष्य में चुनाव में ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रिया को पूरा करने के बाद ही आगे बढ़ेगी. इस तरह जनवरी-फरवरी में झारखंड निकाय चुनाव कराए जाने की संभावना जताई जा रही है.
बिहार राज्य निर्वाचन आयोग ने निकाय चुनाव में भी ऐसा ही कुछ हुआ था. जहां 10 और 20 अक्टूबर को दो चरणों में नगर निकाय चुनाव करवाने के लिए तारीखों की घोषणा की गई थी. इस बीच ओबीसी आरक्षण को लेकर पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर हो गई. इस याचिका पर कोर्ट ने आरक्षण के मुद्दे पर आपत्ति जताई थी. इसके बाद नगर निकाय चुनाव को स्थगित भी कर दिया गया था. हाई कोर्ट ने कहा था कि बिहार में नगर निकाय चुनाव में ओबीसी और ईबीसी वर्ग को आरक्षण देने की व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण के ट्रिपल टेस्ट से जुड़े नियमों के खिलाफ थी. इस तरह से ओबीसी और ईबीसी आरक्षण के बिना चुनाव करवाए गए. बिहार निकाय चुनाव के लिए जो सीटें आरक्षित की गई थीं, उन्हें सामान्य वर्ग की सीटें घोषित की जाएं.
उस समय SC ने कहा था कि बिहार सरकार अति पिछड़ा आयोग के जरिए ओबीसी आरक्षण के लिए रिपोर्ट तैयार करवा तो रही है लेकिन वो समर्पित कमीशन ही नहीं है. हालांकि, कोर्ट का आदेश आने से पहले नीतीश सरकार द्वारा तैयार कराए गए अति पिछड़ा आयोग ने रिपोर्ट सौंप दी थी. इसी आधार पर राज्य निर्वाचन आयोग ने राज्य में निकाय चुनाव की तारीख तय कर दी. अब 20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी कमीशन पर सुनवाई होनी है. इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं किया.
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