देश-प्रदेश

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस LIVE: मुस्लिम पक्षों ने दी बहिष्कार की धमकी, सिब्बल बोले- 2019 के बाद हो सुनवाई

नई दिल्लीः 6 दिसंबर को विवादित ढांचा ढहाए जाने के 25 साल पूरे होने से एक दिन पहले अयोध्या राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर मंगलवार से सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई जारी है. सुनवाई को दौरान शिया बोर्ड ने कहा कि विवादित भूमि पर मंदिर बनाया जाए. मुस्लिमों के वकील राजीव धवन ने कहा कि रोज हुई सुनवाई तो एक साल में पूरी होगी सुनवाई. वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 2019 के चुनाव में मंदिर को लेकर राजनीति हो सकती है, उन्होंने कहा कि सुनवाई 2019 के बाद हो. उन्होंने 5 जजों की बेंच से सुनवाई की मांग की.

कुछ देर बाद मुस्लिम पक्षकारों और कपिल सिब्बल ने इस मामले की सुनवाई का विरोध किया. कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि राम मंदिर का मुद्दा NDA के घोषणापत्र का हिस्सा है, लिहाजा इस मामले को 2019 में होने वाले आम चुनाव तक टाला जाए. इस दौरान वकील राजीव धवन और कपिल सिब्बल ने सुनवाई के बहिष्कार की धमकी दी.

मंगलवार से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की नियमित सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली 3 जजों की बेंच इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले और सभी पक्षों की दलीलों के मद्देनजर यह तय करेगी कि आखिर इस मुकदमे का निपटारा करने के लिए सुनवाई को कैसे पूरा किया जाए. यानी हाईकोर्ट के फैसले के अलावा और कितने तकनीकी और कानूनी बिंदु हैं, जिनपर कोर्ट को सुनवाई करनी है.

PTI के मुताबिक, इस केस की सुनवाई करने वाले जजों में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर हैं. जाने-माने वाले वकील हरीश साल्वे रामलला की ओर से पक्ष रखेंगे तो सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन होंगे. सुप्रीम कोर्ट केस से जुड़े अलग-अलग भाषाओं के ट्रांसलेट किए गए 9000 पन्नों को देखेगा. कोर्ट देखेगी कि इन दस्तावेजों के ट्रांसलेशन का काम अभी पूरा हुआ है या नहीं. इस मामले में अदालत पहले ही कह चुकी है कि अब सुनवाई और नहीं टलेगी, 5 दिसंबर से दोनों पक्षों की दलीलें सुनी जाएंगी.

दरअसल बीते 11 अगस्त को 3 जजों की स्पेशल बेंच ने इस मामले की सुनवाई की थी. सुप्रीम कोर्ट में 7 साल बाद राम जन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद मामले की सुनवाई हुई थी. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि 7 भाषा वाले दस्तावेज का पहले अनुवाद किया जाए. कोर्ट ने कहा था कि वह इस मामले में आगे कोई तारीख नहीं देगा. इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में हैं, जिसपर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेजों को अनुवाद कराने की मांग की थी.

अयोध्या से दिल्ली पहुंचे रामलला विराजमान की ओर से पक्षकार महंत धर्मदास ने दावा किया कि सभी सबूत, रिपोर्ट और भावनाएं मंदिर के पक्ष में हैं. हाईकोर्ट के फैसले में जमीन का बंटवारा किया गया है, जो हमारे साथ उचित न्याय नहीं है. महंत धर्मदास ने आगे कहा, हमारी कोर्ट में दलील होगी कि यहां ढांचे से पहले भी मंदिर था और जबरन यहां मस्जिद बनाई गई, लेकिन बाद में फिर मंदिर की तरह वहां रामलला की सेवा और पूजा होती रही. अब वहीं अयोध्या राम जन्मभूमि मंदिर है. लिहाजा इसपर हमारा ही दावा बनता है. कोर्ट सबूत और कानून से न्याय करता है और सबूत और कानून हमारे साथ है. यानी रामलला के जन्मस्थान पर सुप्रीम कोर्ट भी सबूतों और कानूनी प्रावधान पर ही न्याय करेगा.

दूसरी ओर शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी का कहना है कि कोर्ट में भी वो अपने बोर्ड का रुख ही दोहराएंगे. शिया वक्फ बोर्ड का तो मानना साफ है कि विवादित जगह पर राम मंदिर बने. रही बात मस्जिद की तो लखनऊ या फैजाबाद में मस्जिदे अमन बने. वहां मुस्लिम भाई नमाज अदा करें. किसी को इसमें कोई परेशानी नहीं है, लेकिन चंद मुट्ठी भर धर्म के ठेकेदार हैं जिन पर विदेशी ताकतों का दबाव भी है. वो नहीं चाहते कि अमन और भाईचारे से यह मामला हल हो. जबकि हमें हिंदू भावनाओं का सम्मान करते हुए भारत की शान बढ़ानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में भी उनका यही रुख रहेगा. दूसरी ओर यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस बारे में कुछ भी बोलने से इनकार किया.

ये है पूरा मामला
अयोध्या में विवादित जगह पर राम मंदिर बनाने की मांग दशकों पहले से हो रही है. राम मंदिर बनाने के लिए किए गए आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था. इस मामले में कई राजनेताओं के खिलाफ केस दर्ज किया गया था. आपराधिक मामले के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चलता रहा. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 को अयोध्या विवाद में फैसला सुनाया था. फैसले में विवादित जगह को 3 बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया गया.

फैसले के मुताबिक, जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए. जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिका दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए और खुद मामले की सुनवाई करने की बात कही. मंगलवार से एक बार फिर इस मामले में नियमित सुनवाई शुरू होगी.

 

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का बड़ा बयान, हिन्दू और मुस्लिम समाज के पूर्वज एक ही हैं

 

 

Aanchal Pandey

Recent Posts

रमेश बिधूड़ी को CM का चेहरा बनाएगी बीजेपी! आतिशी बोलीं- मुझे गालियां देने वाले को मिला इनाम

सीएम आतिशी ने कहा कि एक गाली-गलोच पार्टी ने तय किया है कि वो अपने…

39 seconds ago

कोहली का नहीं चला बल्ला तो पहुंच गए संत प्रेमानंद महाराज के यहां, मिला ऐसा आशीर्वाद

ऑस्ट्रेलिया दौरे पर बुरी तरह नाकाम होने के बाद विराट कोहली देश लौट आए और…

2 minutes ago

मोदी के जीवन में आया सबसे मुश्किल, टूटकर बिखरे प्रधानमंत्री ने लिया बड़ा संकल्प

पॉडकास्ट में पीएम मोदी के जीवन से जुड़ी हुई कई बातों का उल्लेख किया गया…

13 minutes ago

ईरान ने मान ली हार, इजराइल से युद्ध नहीं लड़ सकते, रूस पर लगाया यहूदियों की मदद का बड़ा आरोप

सीरिया में तैनात रहे एक टॉप ईरानी जनरल ने पहली बार स्वीकार किया है कि…

34 minutes ago

बिजली विभाग ने थमाया 200 करोड़ का बिल, ईंट व्यापारी के उड़े होश

हमीरपुर के एक ईंट व्यापार को दो अरब, 10 करोड़ 42 लाख 8 हजार और…

54 minutes ago

दिल्ली चुनाव में कांग्रेस का बड़ा दांव, कर दिया ऐसा वादा… AAP और BJP हक्का-बक्का!

दिल्ली में अपनी खोई हुई सियासी जमीन फिर से हासिल करने के लिए कांग्रेस पार्टी…

54 minutes ago