नई दिल्ली. 2017-18 के आंकड़ों से पता चलता है कि 2011-12 के मुकाबले बेरोजगारी दर में कमी आई है. 2011-12 में 30.4 करोड़ पुरुष नौकरी पर थे लेकिन अब ये दर घटकर 28.6 करोड़ हो गई है. अभी तक जारी की गई पीएलएफएस रिपोर्ट में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष के लिए बेरोजगारी दर 7.1 प्रतिशत और 5.8 प्रतिशत है.
1993-94 के बाद पहली बार भारत के पुरुष कर्मचारियों की संख्या या काम कर रहे पुरुषों का वास्तविक आकार कम हो गया है. एनएसएसओ के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2017-18 के डेटा के मुताबिक देश में 28.6 करोड़ पुरुष कार्यरत हैं. पुरुष कर्मचारियों की संख्या में गिरावट की यह पहली घटना है, जो कि 1993-94 में 21.9 करोड़ से 2011-12 में घटकर 30.1 करोड़ हो गई थी. यह बताता है कि पांच साल पहले की तुलना में 2017-18 में कम पुरुषों को नियुक्त किया गया था.
ग्रामीण और शहरी पुरुष कार्यबल की वास्तविक संख्या में गिरावट 1993-94 के बाद पहली बार हुई है. शहरी क्षेत्र में ये दर 4.7 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 6.4 प्रतिशत है. अभी तक जारी की गई पीएलएफएस रिपोर्ट में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष के लिए बेरोजगारी दर 7.1 फीसदी और 5.8 फीसदी है. विशेषज्ञों का कहना है कि डेटा के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता है, लेकिन ये स्पष्ट रूप से नौकरी के नुकसान और कम रोजगार के अवसरों की ओर इशारा करता है.
जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच आयोजित पीएलएफएस पर आधारित एनएसएसओ रिपोर्ट अभी तक सरकार द्वारा जारी नहीं की गई है. राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष पी सी मोहनन और एक अन्य सदस्य जे वी मीनाक्षी ने दिसंबर 2018 में आयोग द्वारा अनुमोदित रिपोर्ट को जारी करने से रोक देने के बाद इस साल जनवरी के अंत में अपना पद छोड़ दिया था.
2017-18 के एनएसएसओ सर्वेक्षण की तरह, 2011-12 के सर्वेक्षण में भी ग्रामीण महिलाओं के रोजगार का एक बड़ा नुकसान दर्ज किया गया था. 2004-05 और 2011-12 के बीच ग्रामीण रोजगार में महिलाएं 22 मिलियन से कम हो गईं. इसी अवधि में, ग्रामीण पुरुष रोजगार में 13 मिलियन की वृद्धि हुई.
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