नई दिल्ली: एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत 131 शहरों को आवंटित धन का लगभग दो-तिहाई हिस्सा धूल प्रबंधन के लिए इस्तेमाल किया गया है, जबकि औद्योगिक क्षेत्र से वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक प्रतिशत से भी कम का उपयोग किया गया है.
साल 2019 में लॉन्च किया गया एनसीएपी स्वच्छ वायु लक्ष्य निर्धारित करने का भारत का पहला राष्ट्रीय प्रयास है, जिसका लक्ष्य 2017 को आधार वर्ष मानकर 2024 तक पीएम 10 प्रदूषण में 20-30 प्रतिशत की कमी लाना है. संशोधित लक्ष्य 2019-20 को आधार वर्ष के रूप में उपयोग करते हुए 2026 तक 40 प्रतिशत की कटौती है. शीर्षक वाली रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 131 शहरों को दिए गए कुल फंड का केवल 64 प्रतिशत ही खर्च किया गया है.
हालांकि एनसीएपी के उद्देश्य और उद्देश्य हमेशा सराहनीय रहे हैं, हम पा रहे हैं कि इसके तहत ध्यान और निवेश काफी हद तक धूल नियंत्रण पर केंद्रित है, न कि उद्योगों या वाहनों जैसे उत्सर्जन उगलने वाले दहन स्रोतों पर. वहीं इस संबंध में सीएसई महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि एनसीएपी और 15वें वित्त आयोग के तहत उपयोग की गई धनराशि का 64 प्रतिशत सड़क धूल शमन पर खर्च किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार कुल धनराशि का केवल 0.61 प्रतिशत औद्योगिक प्रदूषण से निपटने के लिए 12.63 प्रतिशत वाहन प्रदूषण के लिए और 14.51 प्रतिशत बायोमास जलाने के लिए उपयोग किया गया है.
आपको बता दें कि एनसीएपी के अंतर्गत आने वाले शहरों में से 82 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से सीधे धन मिलता है, जबकि 42 शहरों और दस लाख से अधिक आबादी वाले सात शहरी समूहों को 15वें वित्त आयोग से धन मिलता है. रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से 131 शहरों को आवंटित कुल 10,566 करोड़ रुपये में से केवल 6,806 करोड़ रुपये (64 प्रतिशत) का उपयोग 3 मई तक किया गया है.
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