लखनऊ। मौजूदा समय में हुए उपचुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र सेमीफाइनल माने जा रहे हैं। इन उपचुनावों में भाजपा की अपेक्षा समाजवादी पार्टी के अच्छे परफॉर्मेंस को देखते हुए 2024 के लोकसभा चनावों में भाजपा के लिए मसीबत का सबब बन सकता है। ज़मीनी स्तर पर मज़बूत हैं शिवपाल वरिष्ठ पत्रकारो का मानना […]
लखनऊ। मौजूदा समय में हुए उपचुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र सेमीफाइनल माने जा रहे हैं। इन उपचुनावों में भाजपा की अपेक्षा समाजवादी पार्टी के अच्छे परफॉर्मेंस को देखते हुए 2024 के लोकसभा चनावों में भाजपा के लिए मसीबत का सबब बन सकता है।
वरिष्ठ पत्रकारो का मानना है कि अखिलेश यादव और शिवपाल के फिर से एक हो जाने के बाद भाजपा को मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि पुराने कार्यकर्ताओं से मुलायम सिंह के बाद शिवपाल यादव के ही रिश्ते हैं। माना जा रहा है कि, डिंपल यादव को मिली जीत के पीछे शिवपास यादव का ही हाथ है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि, अखिलेश यादव के साथ जुड़े नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का पार्टी की राजनीति से अटैचमेंट है, लेकिन शिवपास के साथ इमोशनल अटैचमेंट है।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार यदि शिवपाल एवं अखिलेश के बीच दूरियां न होतीं तो अज़मगढ़ में समाजवादी पार्टी को भाजपा के सामने घुटने ने टेकने पड़ते इसके अलावा फिरोजाबाद एवं बदायूं में बी उपचुनावों में हार का सामना नहीं करना पड़ता। उन्होने कहा कि, 2017 के विधानसभा चुनाव के समय दोनों नेताओं के बीच हुआ झगड़ा ही हार का कारण बना जिसके कराण समाजवादी पार्टी दो डिजिट में ही सिमट कर रह गई यदि यह झगड़ा न हुआ होता तो सपा तीन डिजिट का सफर तय करती।
राजनीतिक विशेषज्ञों की यह बात कितनी सही है यह केवल आगामी लोकसभा चुनावों के बाद ही कहा जा सकता है क्योंकि मैनपुरी में जीत का श्रेय सिर्फ दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव को ही जा सकता है। खतौली में राष्ट्रीय लोक दल की जीत महज एक इत्तेफाक या जयंत चौधरी के प्रयास द्वारा ही सुनिश्चित हो सकी है खतौली की जीत में शिवपाल का योगदान कितना रहा यह कह पाना मुश्किल होगा. हां यदि रामपुर विधानसभा सीट में समाजवादी पार्टी जीत हासिल कर पाती तो शायद शिवपाल के योगदान की वाहवाही होती लेकिन इस सीट में हार के बाद शिवपाल के पार्टी में जुड़ जाने का कोई खास असर नहीं दिखाई दिया।