त्रिपुरा के युवराज की बॉलीवुड का ‘प्रिंस ऑफ म्यूजिक’ बनने की कहानी

अपने पिता सचिन देव वर्मन की तरह आरडी वर्मन का मन भी म्यूजिक में ही रमता था. शोले, दम मारो दम, गर्दिश, प्रोफेसर की पडोसन, नया दौर, द बर्निंग ट्रेन, आंधी, दीवार, नमक हराम, छलिया, हीरा पन्ना, सीता और गीता, कटी पतंग, पड़ौसन और 1942 ए लव स्टोरी जैसी सैकड़ों फिल्मों में म्यूजिक देने वाले आरडी वर्मन बॉलीवुड में म्यूजिक के प्रिंस बने.

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त्रिपुरा के युवराज की बॉलीवुड का ‘प्रिंस ऑफ म्यूजिक’ बनने की कहानी

Aanchal Pandey

  • March 3, 2018 5:00 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. जब दोनों बाप बेटे मुंबई में पहली बार आए तो ठिकाना बना बोरीवली की एक छोटी सी चाल, गंदगी से बजबजाता इलाका, एक छोटा सा कमरा, बाथरूम-टॉयलेट के आगे लम्बी सी लाइनें.. बमुश्किल एक महीने उस चॉल में गुजार पाया वो परिवार। किसी को कैसे बताते कि वो त्रिपुरा के उस राजघराने के प्रिंस हैं, जो जापान के बाद विश्व का दूसरा राजघराना है, जो एक हजार साल से किसी राज्य की गद्दी पर आसीन है। लेकिन एक दिन वो आया जब चॉल से निकलकर त्रिपुरा का वो प्रिंस अपनी धुनों के जरिए पूरे भारत के दिलों पर राज करने लगा। लोगों ने उसका नाम भी रख दिया, प्रिंस ऑफ म्यूजिक यानी आरडी वर्मन।

राहुल देव वर्मन जब पहली बार मुंबई आए थे, तो उनकी उम्र महज पांच साल की थी। उनके पिता सचिन देव वर्मन को म्यूजिक का बड़ा शौक था। त्रिपुरा के राजघराने की शाही ऐशगाह को छोड़कर 1939 में वो कोलकाता आ गए थे, म्यूजिक की दुनियां में अपना नाम कमाने। उनके दादा ईशान चंद्र मानिक्य त्रिपुरा के 180 वें राजा थे। उसके बाद उनके पिता या ताऊ की बजाय दादा के छोटे भाई वीर चंद्र मानिक्य को महाराज बनाने का ऐलान हो गया था और फिर उनके बेटे राजा बनने लगे थे। ऐसे में सचिन्द्र या सचिन देव वर्मन संगीत की दुनियां में सक्रिय हो गए थे। इधर 9 सितम्बर 1949 को त्रिपुरा स्टेट का भारत में विलय हो गया।

1944 में सचिन देव वर्मन ने पत्नी मीरा और बेटे राहुल के साथ मुंबई का रुख किया और फिल्मिस्तान स्टूडियो ज्वॉइन कर लिया। लेकिन पहला ही ठिकाना बोरीबली की चॉल बनी। वहां परेशान हुए तो हुए ही, म्यूजिक के रियाज के लिए उस शोरशराबे में कोई माहौल नहीं था। एक महीने के अंदर ही वो एक वन रूम फ्लैट में शिफ्ट हो गए, जो पास में ही था। लेकिन दिक्कत ये थी कि उस फ्लैट को भी उन्हें एक परिवार के साथ शेयर करना था। ये परिवार था एक्टर हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय का।

अब तक बड़े घरों में रहने का आदी राहुल तो परेशान रहने लगा, कहीं खेलने तक की जगह नहीं थी। वो तो वापस कोलकाता लौटने की जिद करने लगा। जबकि सचिन देव वर्मन की मुंबई में ये पहली नौकरी थी, उनके पास काफी काम था, सो ढंग का घर ढूंढने तक की फुरसत नहीं थी, जबकि उस छोटे से शेयरिंग कमरे में उनकी मां मीरा जैसे तैसे घरेलू काम निपटाने में ही लगी रहती थीं। उसके चलते पांच साल के राहुल को अकेलेपन ने घेर लिया। एक दिन वो घर से निकल भागा, जैसे तैसे बोरीवली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया और एक ट्रेन में भी बैठ गया।

जब ये ट्रेन विक्टोरिया टर्मिनल यानी वीटी स्टेशन पर पहुंची तो राहुल चलती ट्रेन से अचानक उतरा तो गिर पड़ा, उसका एक हाथ टूट गया। लेकिन कोई भी मदद करने वाला नहीं थी। जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो कैसे भी राहुल वापस ट्रेन में बैठा और बोरीवली स्टेशन पर उतर गया और टूटा हाथ लेकर घर में पहुंचा तो देखा मां बाप काफी परेशान थे। उसको लेकर फौरन वो डॉक्टर के पास पहुंचे, जैसे तैसे हाथ कई दिनों में ठीक हुआ तो अगले 6 महीने में राहुल ने फिर अपना हाथ तोड़ लिया।

सचिन देव वर्मन को लगा कि वो अपना काम और राहुल की रखवाली दोनों एक साथ नहीं कर सकते, वैसे भी नया शहर था, उन्हें ज्यादा लोग जानते भी नहीं थे। वो वैसे भी राजघराने से विद्रोह करके आए थे। नहीं चाहते थे कि उन पर नाकामयाबी का ठप्पा लगा तो उन्होंने तय किया कि राहुल और पत्नी मीरा को वापस कोलकाता ग्रांडमदर के घर भेज दिया गया। सचिन दा ने तय कर लिया था कि दोनों को तभी वापस मुंबई बुलाएंगे, जब उनका काम यहां जम जाएगा और उनके पास रहने की कोई अच्छी जगह मिल जाएगी। उसके बाद कई साल बाद ही वो परिवार को लेकर आए।

राहुल को वापस मुंबई भी म्यूजिक ही खींचकर लाया, उनका मन भी पिता की तरह म्यूजिक में ही रमता था। जब राहुल थोड़े बड़े हो गए तो सचिन दा उन्हें मुंबई ले आए, अपना असिस्टेंट बना लिया और फिर तो एक दिन वो आया कि लोग सचिन दा को राहुल देव वर्मन के पिता के तौर पर जानने लगे। शोले, दम मारो दम, गर्दिश, प्रोफेसर की पडोसन, नया दौर, द बर्निंग ट्रेन, आंधी, दीवार, नमक हराम, छलिया, हीरा पन्ना, सीता और गीता, कटी पतंग, पड़ौसन और 1942 ए लव स्टोरी जैसी सैकड़ों फिल्मों का म्यूजिक आरडी ने दिया और एक दिन वो वाकई में प्रिंस बन गए, बॉलीवुड में म्यूजिक के प्रिंस.

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