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Tripura Election Results 2018: त्रिपुरा में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत के दस फॉर्मूले

Tripura Election Results 2018: पिछले विधानसभा चुनावों में केवल डेढ़ फीसदी वोट पाने वाली बीजेपी ने जब 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के बराबर यानी करीब 6 फीसदी वोट झटक लिए तो उन्हें उम्मीद जगी. वो चुनाव विकास और मोदी के नाम पर लड़ा गया था. सो इस बार भी मोदी और विकास की बात की गई.

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Tripura Election Results 2018
  • March 3, 2018 2:47 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. भारत में लेफ्ट का एक और मजबूत और बड़ा गढ़ ढह गया है. बीजेपी ने नामुमकिन जैसा लगने वाला काम कर दिखाया है. जिस प्रदेश त्रिपुरा में बीजेपी कभी खाता नहीं खोल पाई थी, वहां वो अपने दम पर सरकार बनाने जा रही है. तो ये चमत्कार कैसे हुआ? समझने के लिए पढ़िए बीजेपी की त्रिपुरा में इस ऐतिहासिक जीत के दस फॉर्मूले–

1—दिल्ली का आप फॉर्मूला—दिल्ली में जब आप पहली बार कांग्रेस के सहयोग से सरकार नहीं चला पाई तो आप नेताओं ने दूसरी रणनीति पर काम किया और दुश्मन बदल दिया वो भी दूसरे दुश्मन को जनता की नजर में खारिज करके. जब पहली बार कांग्रेस की केवल 8 सीटें आईं तो आप ने कांग्रेस के गढ़ में उनके कोर वोटर्स के बीच ये कैम्पेन शुरू किया कि बीजेपी को केवल हम हरा सकते हैं, कांग्रेस को अपना वोट देकर बर्बाद ना करें. आम पब्लिक भी अपना वोट बेकार नहीं करना चाहती. नतीजा ये हुआ कि जो बीजेपी पहले उतने ही वोट परसेंटेज पर नंबर 1 थी, उसकी केवल 3 सीटें आईं, कांग्रेस बिलकुल साफ हो गई और आप की 67 सीटें आईं, जबकि बीजेपी का वोट परसेंट भी नहीं गिरा. त्रिपुरा में पिछले 25 सालों से बीजेपी खाता भी नहीं खोल पाई थी, और कांग्रेस लगातार दूसरे नंबर पर बनी हुई थी. बीजेपी ये समझाने में लोगों को कामयाब रही कि जब 25 साल में कांग्रेस लैफ्ट का कुछ नहीं उखाड़ पाई तो अब भी नहीं उखाड़ पाई, तो अब क्या कर लेगी? नतीजा ये हुआ कि दिल्ली की तरह कांग्रेस त्रिपुरा में भी साफ हो गई और एक भी सीट ना जीतने वाली बीजेपी ने सरकार बना ली.

2—अरुणाचल-आसाम फॉर्मूला—बीजेपी के पास नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में बड़े चेहरे नहीं है. ऐसे में उसको अगर सरकार बनानी है तो दूसरी पार्टियों से नेता लेने ही होंगे. ऐसे में बीजेपी ने अरुणाचल, आसाम वाली रणनीति यहां भी अपनाईं. हेमंत विश्वसर्मा तो पहले से ही इलेक्शन इंचार्ज हैं, कांग्रेस के त्रिपुरा के पूर्व अध्यक्ष सुदीप रॉय वर्मन को तोड़कर अगरतला से बीजेपी उम्मीदवार बना दिया और पूर्व नेता विपक्ष रतन लाल नाथ को भी टिकट दे दी. इतना ही नहीं आखिर तक त्रिपुरा के महाराजा प्रद्योत किशोर देव वर्मन जो कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष हैं, उनके भी सम्पर्क में बनी रही. माना जाता है कि राजा लैफ्ट के 25 साल के राज से काफी परेशान थे और किसी भी कीमत पर उसे हटाना चाहते थे. लेकिन कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प नहीं था, ऐसे में माना जा रहा है कि राजा का भी अंदरखाने रोल हो सकता है. साथ ही बीजेपी ने कांग्रेस और लैफ्ट को छोड़कर हर नॉर्थ ईस्ट राज्य में किसी ना किसी स्थानीय पार्टी से टाईअप भी किया. कांग्रेस ने पिछली बार केवल 10 सीटें जीती थीं, जिनमें से 6 विधायकों सुदीप रॉय बर्मन, आशीष कुमार साहा, विश्व बंधु सेन, प्रणजीत सिंह रॉय, दिलीप सरकार और हरंगखाल ने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) ज्वॉइन कर ली. ये 6 विधायक ज्यादा देर तक टीएमसी में भी नहीं रहे, अगस्त 2017 में ये विधायक बीजेपी में शामिल हो गए और ये पक्की सीटों वाले थे.

3— अमित शाह का नवशक्ति फॉर्मूला—अमित शाह ने आबादी की दृष्टि से घने यूपी के इलाकों में बूथ इंचार्ज की बजाय पन्ना प्रमुख नियुक्त कर दिए थे, यानी मतदाता सूची के हर पन्ने या पेज का एक अलग इंचार्ज. त्रिपुरा के शहरी इलाकों में उसी रणनीति को रखा लेकिन ग्रामीण या छितरी आबादी वाले इलाकों में उन्होंने त्रिपुरा के खास ‘नवशक्ति फॉरमूला’ अपनाया. यानी हर बूथ पर 9 यूथ. उनसे कहा गया कि आपका बूथ आपके लिए कुरुक्षेत्र है और आप उसके 9 लोग उसके अर्जुन, अपने बूथ की नैया आपको भागवत गीता के उपदेशों से पार लगानी है यानी युद्ध कर.

4—योगी का नाथ फैक्टर—ये वाकई में चौंकाने वाला था कि उत्तराखंड के रहने वाले योगी आदित्यनाथ यूपी में इतने लोकप्रिय हो जाते हैं कि सरकार बनाकर चीफ मिनिस्टर बन जाते हैं, उनके बड़ी फैन फॉलोइंग त्रिपुरा में भी है. मोदी और अमित शाह की तरह योगी को भी त्रिपुरा में तीसरा बड़ा स्टार कैम्पेनर बनाया गया. जिस नाथ सम्प्रदाय की वो गोरखपुर पीठ चलाते हैं, उसको मानने वाले त्रिपुरा के बंगाली अप्रवासियों की 35 फीसदी जनसंख्या त्रिपुरा में रहती है. इन सभी नाथ बंगालियों का त्रिपुरा की 10 सीटों पर बहुमत है, ऐसे में योगी के दौरे में काफी भीड़ उमड़ी और बीजेपी के लिए विश्वास बढ़ा.

5—आरएसएस की जमीनी पकड़— कई सालों से आरएसएस नॉर्थ ईस्ट में जमीनी स्तर पर काम कर रहा है. वनवासी कल्याण आश्रम और एकल विद्यालय जैसे संगठन आदिवासियों के बीच अरसे से काम कर रहे हैं. वैसे भी बांग्लादेश से आकर बसे बंगालियों की वजह से मूल आदिवासी अल्पसंख्यक हो गए हैं. इस वजह से भाजपा को यहां काफी संख्या में कार्यकर्ता मिले हैं.

6—भाजपा का ऑपरेशन आदिवासी– ट्राइबल बाहुल्य क्षेत्रों के लिए बीजेपी ने खास रणनीति बनाई. आदिवासी संगठन आईपीएफटी पहले से ही बीजेपी के साथ है. त्रिपुरा में विवाद बंगाली भाषी बहुसंख्यकों और 31 फीसदी स्वदेशी लोगों के बीच भी है, उन बंगालियों में से 35 फीसदी नाथ सम्प्रदाय के बंगाली योगी के चलते पहले ही बीजेपी के खाते में तय माने जा रहे थे. 1997 में राज्य में हुई कई हिंसक वारदात के बाद यहां हालात बिगड़े हैं, राज्य में दो अलगाववादी संगठनों नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF) सक्रिय है, जो भारत से त्रिपुरा को अलग करना चाहते हैं. ऐसे में बीजेपी राष्ट्रवाद के बूते लोगों को एकजुट करती आई है

7– आक्रामक प्रचार की रणनीति — पीएम मोदी की हालिया रैलियों में उमड़ी भीड़ यह बता रही है कि बीजेपी की जड़ें यहां जम रही हैं. बीजेपी ने रणनीति बना ली थी कि अभी नहीं तो कभी नहीं. त्रिपुरा के लोगों को बताया गया कि कैसे पूर्वोत्तर का सबसे मजबूत राज्य त्रिपुरा सबसे गरीब बन गया है क्योंकि सेंट्रल की स्कीमों का फायदा यहां के लोगों को नहीं मिलता. आसाम, अरुणाचल, मणिपुर के करीब तीस स्थानीय विधायकों के जमीनी प्रचार का लाभ भी बीजेपी को मिला. रही सही कसर मोदी, अमित शाह और योगी की ताबड़तोड़ रैलियो ने कर दी.

8—सुपर 35 पर जोर—सुपर 35 क्या है? ये वो सीटें थीं जिन पर 2013 के चुनाव में सीपीएम 3000 से कम मतों के अंतर से जीती थी. यानी पूरी 60 सीटों के बजाय बीजेपी ने केवल 35 सीटों पर ही फोकस किया और उसका लाभ मिला भी. बीजेपी ने इन सीटों के लिए खास रणनीति बनाई, इतना ही नहीं पीएम मोदी की रैली को सफल बनाने के लिए बीजेपी त्रिपुरा ने ईसाई समुदाय के साथ भी लगातार संपर्क बनाए रखा. त्रिपुरा में बड़ी आबादी ईसाई समुदाय की है.

9– माणिक नहीं मनमोहन है—चार बार से चुनाव जीत रहे माणिक सरकार की बेदाग छवि ही बीजेपी के लिए सबसे मुश्किल थी. इसलिए माणिक सरकार की बेदाग छवि से निपटने के लिए उनको मनमोहन सिंह जैसा बताया गया यानी उनको आगे रखकर राज्य के पैसे की लूट जारी रही. दूसरे उन्होंने सेंट्रल स्कीमों का लाभ प्रदेश की जनता को नहीं दिया. मोदी के आगे माणिक सरकार लोगों को छोटे नजर आने लगे और बीजेपी ने इसी दिशा में लगातार अपना कैम्पेन की धार बनाए रखी, जिसका फायदा मिला भी है, एक और लाल गढ़ ढह गया है.

10—बीजेपी का विजन डॉक्यूमेंट—पिछले विधानसभा चुनावों में केवल डेढ़ फीसदी वोट पाने वाली बीजेपी ने जब 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के बराबर यानी करीब 6 फीसदी वोट झटक लिए तो उन्हें उम्मीद जगी. वो चुनाव विकास और मोदी के नाम पर लड़ा गया था. सो इस बार भी मोदी और विकास की बात की गई. बीजेपी के ‘त्रिपुरा के लिए विजन डॉक्यूमेंट’ में युवाओं के लिए मुफ्त स्मार्टफोन, महिलाओं के लिए मुफ्त में ग्रेजुएशन तक की शिक्षा, रोजगार, कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने जैसे वादों का जिक्र किया गया है.

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