नई दिल्ली। पंजाब के अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 के दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने कई भारतीयों पर गोलियां बरसाई थी। बता दें, इस दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग में जनरल डायर के द्वारा जवान से लेकर बूढ़े, महिलाओं और बच्चों को गोलियां से भुन दिया गया था। आज जलियांवाला […]
नई दिल्ली। पंजाब के अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 के दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने कई भारतीयों पर गोलियां बरसाई थी। बता दें, इस दिन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग में जनरल डायर के द्वारा जवान से लेकर बूढ़े, महिलाओं और बच्चों को गोलियां से भुन दिया गया था। आज जलियांवाला बाग हत्याकांड को 104 साल पूरे हो चुके हैं। जिस दिन ये हत्याकांड उस समय पूरे देश में शोक की लहर थी। इस हत्याकांड के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूरे देश में हड़ताल की घोषणा कर दी थी। इसके अलावा महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया था। इस घटना की वजह से साइमन कमीशन का गठन हुआ था।
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में दो राष्ट्रवादी नेताओं सत्य पाल और डॉ सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में बड़ी संख्या में लोग एकजुट हुए थे। जहां अचानक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ पार्क के अंदर आ गया और लोगों को चेतावनी दिए बिना उसने अपने सैनिकों को दस मिनट के लिए ताबड़तोड़ गोली चलाने का आदेश दे दिया। इस फायरिंग के दौरान ही दस मिनट में हजारों की संख्या में लोग मारे गए थे, और कई लोग घायल हुए थे। आज भी हत्याकांड के निशान जलियांवाला बाग की दीवारों पर देखे जा सकते हैं। ब्रिटिश सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार, कर्नल रेडिनाल्ड डायर की ओर से चलवाई गई अंधाधुंध गोलियों में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित 388 लोग मारे गए थे, जबकि 1200 लोग घायल हुए थे।
बता दें, जनरल डायर के आदेश के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई थी। इस दौरान जलियांवाला बाग में मौजूद उस मैदान से बाहर नहीं निकल पाए थे, क्योंकि बाग के चारों तरफ मकान बने थे। बाहर निकलने के लिए बस एक संकरा रास्ता था।
फायरिंग के दौरान लोगों के भागने की जगह नहीं मिली जिस कारण कई लोग वहां स्थित कुएं में कूद गए थे। जिसके कुछ देर बाद ही वह कुआं लाशों के ढेर से भर गया था। जलियांवाला बाग में शहीद होने वाले लोगों का सही आंकड़ा आज भी किसी को पता नहीं है। वहीं ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के घायल होने का दावा किया गया था। हालांकि अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ब्रिटिश सरकार और जनरल डायर के इस नरसंहार से 1000 से ज्यादा लोगों की मौत और लगभग 2000 भारतीय घायल हुए थे।
बाद में 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को उधम सिंह ने इस हत्याकांड का बदला लिया था। उधम सिंह ने एक भरे हॉल में जनरल डायर को गोली मार दी थी। बता दें, डायर रिटायर होने के बाद वापस लंदन चला गया था। और उसने 1940 में कॉक्सटन हॉल में हुई बैठक में हिस्सा लिया था, इस बैठक में उधम सिंह भी पहुंचे थे। डायर के भाषण के बाद उधम सिंह ने उस पर गोली चला दी थी, जिसकी वजह से डायर की मौके पर ही मौत हो गई थी।