News Rules : 30 जून के रात 12 बजे से देश में नए अपराधिक कानून लागू होंगे.1 जुलाई से 1860 में बनी आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, लेगी वहीं 1898 में बनी सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता लेगी इसके अलावा 1872 के इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम ले लेगी। ये नए कानून पिछले साल अगस्त में मानसून सत्र के दौरान संसद में पेश किए गए. आईए जानते है नए कानून से क्या बदलाव आयेगा.
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) भारत की 163 साल पुरानी आईपीसी की जगह लेनी वाली है.इससे सजा में बदलाव किए गए है और यौन अपराधों के लिए कड़े कदम उठाए गए हैं. इसमें दंड कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किए जाएंगे .यौन अपराधों के लिए कड़े कदम उठाए गए हैं, कानून में उन लोगों के लिए दस साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है, जो शादी का वादा करके धोखे से यौन संबंध बनाते हैं, लेकिन उसे पूरा करने का इरादा नहीं रखते। नया कानून धोखे से निपटने के लिए भी प्रावधान है. जिसमें अपनी पहचान छिपाकर नौकरी, पदोन्नति या शादी से जुड़े झूठे वादे शामिल हैं।
इस कानून में अवैध गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला भी शामिल है। इन गतिविधियों में अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, जबरन वसूली, भूमि हड़पना, अनुबंध हत्या, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध और मानव, ड्रग्स, हथियार या अवैध सामान या सेवाओं की तस्करी शामिल है। वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव तस्करी, संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्यों के रूप में या ऐसे सिंडिकेट की ओर से मिलकर काम करने वाले व्यक्तियों या समूहों द्वारा की जाती है, तो उन्हें कड़ी सजा का प्रावधान है .प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप अपने लाभ के लिए हिंसा, धमकी, डराने-धमकाने, जबरदस्ती या अन्य गैरकानूनी तरीकों से किए गए अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है ।
राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाले कृत्यों के लिए, बीएनएस ने आतंकवादी कृत्य को ऐसी किसी भी गतिविधि के रूप में परिभाषित किया है जो लोगों में आतंक फैलाने के इरादे से भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता या आर्थिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाती है।
ये कानून भीड़ के द्वारा किसी व्यक्ति की हत्या के गंभीर मुद्दे को भी संबोधित करता है. जिसमें कहा गया है, “जब पांच या उससे अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार पर हत्या करता है, तो ऐसे समूह के प्रत्येक सदस्य को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सज़ा दी जाएगी और जुर्माना भी लिया जाएगा
धारा 65 के तहत अगर कोई व्यक्ति 16 साल की लड़की का रेप करता है .तो उसे 20 साल की सजा होगी. और सजा को उम्रकैद में भी बढ़ाया जा सकता है .
धारा 66 के तहत अगर किसी महिला का रेप करने के दौरान मौत हो जाती है, या महिला कौमा में चली जाती है तो ऐसे मामले में दोषी को 20 साल की सजा होगी और इस सजा को उम्रकैद में भी बदला जा सकता है .
धारा 70 गैंग रेप से जुड़ा मामला है. इसके तहत आरोपी को 20 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है .इस धारा में नाबालिग के साथ गैंग रेप का भी प्रावधान है .इसके अलावा सजा को उम्रकैद में भी बढ़ाया जा सकता है और जो जुर्माने लिया जाएगा वो पीड़िता को मिलेगा.
धारा 71 के तहत कोई व्यक्ति रेप केस या गैंग रेप के किसी मामले में दोषी पाया जाता है तो उसे जिंदा रहने तक उम्र कैद की सजा काटनी होगी .
धारा 104 के तहत उम्र कैद काट रहा कोई व्यक्ति किसी का जेल में खून कर देता है तो उसे सजा मौत दी जाएगी .
धारा 109 के तहत सब-सेक्शन 2 के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है और किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाता है तो उसे सजा-ए-मौत या फिर उम्रकैद कैद की सजा होगी.
धारा 139 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चा का अपरहण भीख मंगवाने के लिए करता है तो दोषी पाए जाने पर 10 साल की सजा या उम्रकैद की सजा भी हो सकती है .धारा 139(2) के तहत अगर बच्चा भीख मांगने के मकसद से अंपग हो जाता है तो ऐसे में दोषी को उम्रकैद की सजा होगी .
धारा 143 के तहत मानव तस्करी से जुड़े अपराध के लिए सजा का प्रावधान है.कोई व्यक्ति एक से अधिक बार किसी बच्चे की तस्करी में शामिल होने का दोषी पाया जाता है तो उसे जीवनभर के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई जाएगी . धारा 143 (7) के तहत अगर कोई सरकारी कर्मचारी ,या पुलिस कर्मी किसी बच्चे के तस्करी में शामिल होता है तो उसे जिदंगी भर के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई जाएगी.
1973 की दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इसमें महत्वपूर्ण प्रावधान विचाराधीन कैदियों के लिए है. जो पहली बार अपराध करने वालों को उनकी अधिकतम सजा का एक तिहाई हिस्सा पूरा करने के बाद जमानत पाने की अनुमति देता है.आजीवन कारावास या कई आरोपों वाले मामलों को छोड़कर, जिससे विचाराधीन कैदियों के लिए अनिवार्य जमानत के लिए अर्हता प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
अब कम से कम सात साल की सजा वाले अपराधों के लिए फोरेंसिक जांच जरूरी है,इसमें सुनिश्चित होगा कि फोरेंसिक विशेषज्ञ अपराध स्थलों पर जाकर साक्ष्य एकत्र करें और रिकॉर्ड करें. अगर किसी राज्य में फोरेंसिक सुविधा नहीं है. तो फिर उसे दूसरे राज्य में सुविधा का उपयोग करना होगा।
नए कानून में भारत में आपराधिक न्याय प्रक्रिया को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं।
मुख्य परिवर्तन इस प्रकार हैं:
प्रक्रियाओं के लिए समयसीमा:विधेयक में सभी कानूनी प्रक्रियाओं के लिए विशिष्ट समयसीमा निर्धारित की गई है।रेप पीड़ितों की जांच करने वाले डॉक्टर को सात दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट जांच अधिकारी को प्रस्तुत करनी होगी. बहस पूरी होने के 30 दिनों के अदंर निर्णय सुनाया जाना चाहिए, जिसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।पीड़ितों को 90 दिनों के अंदर जांच की प्रगति की जानकारी दी जानी चाहिए.सत्र न्यायालयों को ऐसे आरोपों पर पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय करना आवश्यक है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 में भारतीय न्यायालयों में साक्ष्य की स्वीकार्यता को नियंत्रित करने वाले नियम है. इसे 1872 में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किए गए अधिनियम के जगह पर पेश किया गया है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई 2024 से देश में लागू होगा .. इस एक्ट को तीन भागों में बांटा गया है जिसके अंतर्गत कुल 11 अध्याय हैं और 167 धाराएं है.
1. इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य बनाता है, जिससे उनका कानूनी प्रभाव कागजी दस्तावेजों के समान ही होगा।
2. यह साक्ष्य अधिनियम के पांच मौजूदा प्रावधानों को निरस्त करता है, 23 प्रावधानों को संशोधित करता है, तथा एक नया प्रावधान जोड़ता है।
3. इसके अलावा, विधेयक में 23 धाराओं में संशोधन का प्रस्ताव है और इसमें कुल 170 धाराएं हैं।
4. विधेयक में द्वितीयक साक्ष्य के दायरे का विस्तार करते हुए इसमें यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा मूल से बनाई गई प्रतियां, दस्तावेजों के प्रतिरूप तथा दस्तावेज की विषय-वस्तु के मौखिक विवरण को भी शामिल किया गया है।
5.इस विधेयक के माध्यम से सरकार का लक्ष्य मामलों की सुनवाई के दौरान साक्ष्यों से निपटने के लिए सटीक और एकसमान नियम लागू करना है।
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