NEET Scam: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि नीट एग्जाम को रद्द नहीं किया जाएगा। जस्टिस चंद्रचूड़ ने दोबारा एग्जाम कराने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। आइए जानते हैं वो 5 कारण जिस वजह से दोबारा नीट एग्जाम होने से बच गया…. लाखों छात्रों के भविष्य का सवाल […]
NEET Scam: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि नीट एग्जाम को रद्द नहीं किया जाएगा। जस्टिस चंद्रचूड़ ने दोबारा एग्जाम कराने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। आइए जानते हैं वो 5 कारण जिस वजह से दोबारा नीट एग्जाम होने से बच गया….
कोर्ट ने फैसले के दौरान 20 लाख से ज्यादा छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखा। सीजेआई ने कहा कि नए सिरे से परीक्षा कराने के निर्देश देने पर परिणाम गंभीर हो सकते हैं। एग्जाम में शामिल होने वाले 24 लाख छात्रों पर इसका असर पड़ेगा। दागी छात्रों को इससे अलग किया जाता है। अगर काउंसलिंग होने के बाद भी ऐसे लाभार्थी पकड़े जाते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
नीट की परीक्षा में एक प्रश्न के दो उत्तर के मिले नंबर को लेकर आईआईटी दिल्ली का कहना है कि पहला विकल्प ‘परमाणु विद्युत रूप से तटस्थ होते हैं क्योंकि उनमें समान संख्या में पॉजिटिव और निगेटिव चार्ज होते हैं’ ये सही है। वहीं दूसरा विकल्प ‘प्रत्येक तत्व के परमाणु स्थिर हैं और अपने विशिष्ट स्पेक्ट्रम का उत्सर्जन करते हैं। NTA ने दोनों विकल्पों में से किसी एक को सही चुनने वालों को पूरे 4 अंक देने का फैसला किया था। करीब 9 लाख परीक्षार्थियों ने पहला जबकि 4 लाख से अधिक ने दूसरा विकल्प चुना था।
कोर्ट ने कहा कि सीबीआई रिपोर्ट से पता चलता है कि जांच अभी जारी है। रिपोर्ट से जो संकेत मिला है कि हजारीबाग और पटना के परीक्षा केंद्रों से चुने गए 155 छात्र धोखाधड़ी के मामले में शामिल थे। सीबीआई की जांच अभी जारी है तो 571 शहरों में 4750 केंद्रों के परिणामों से असामान्यता के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।
नीट मामले में IIT मद्रास ने अपनी रिपोर्ट में कहा था परीक्षा में बड़े स्तर पर पेपल लीक नहीं हुआ है। शिक्षा मंत्रालय के कहने पर IIT मद्रास ने परीक्षा में शामिल 1.4 लाख छात्रों का विश्लेषण किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनके समक्ष पेश रिकॉर्ड से फिलहाल ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली है, जिसे देखत हुए ये कहा जा सके कि परीक्षा का परिणाम प्रभावित है या पेपर लीक हुआ है। पिछले तीन सालों के नतीजों की तुलना करने पर मालूम पड़ता है कि पेपर में खामी के पर्याप्त सबूत मौजूद नहीं है।