नई दिल्ली: जरायम की दुनिया का जब भी जिक्र होगा तो यूपी के उन बाहुबलियों का नाम भी सामने आएगा जिन्हें कभी अपराध की दुनिया का ‘शहंशाह’ कहा जाता था। खौफ का आलम इस कदर था कि पुलिसकर्मी उनकी गर्दन पर हाथ रखने के बजाय अपने हाथ खड़े करके सलाम करते थे। माफियाओं का दबदबा इस कदर था कि वे अपराध करते थे, लेकिन मुकदमा दर्ज नहीं हो पाता था। अगर कोई केस होता भी तो कोई गवाह नहीं होता जो उन्हें सजा दिला सके। इसकी वजह इन सभी माफियाओं की रॉबिनहुड इमेज भी थी। जिससे उन्हें राजनीति में शरण मिली और राजनीतिक दलों का समर्थन भी।
जरायम की दुनिया के ऐसे ही बाहुबलियों की लिस्ट में अतीक अहमद भी शामिल हैं। अतीक को कल सजा सुनाई जा सकती है, हालांकि अतीक अहमद की यह पहली सजा होगी जबकि उसके खिलाफ 100 से ज्यादा मामले दर्ज हैं। अतीक के अलावा, बाहुबली विजय मिश्रा, पूर्व सांसद धनंजय सिंह और पूर्व MLC बृजेश सिंह और हरिशंकर तिवारी सहित कई ऐसे बाहुबली हैं, जिन पर एक के बाद एक कई मुकदमे दर्ज किए, लेकिन इन्हें कभी सजा नहीं मिली। आज की कहानी इन्हीं बाहुबलियों के बार में है। आइए आपको बताते है:
आपको बता दें, साबरमती जेल में बंद अतीक अहमद को प्रयागराज ले जाया गया। कल अतीक को MP MLA की स्पेशल अदालत सजा सुनाएगी। राजू पाल हत्याकांड में सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने 17 मार्च के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था। राजू की 2005 में हत्या कर दी गई थी। उस समय राजू बसपा के विधायक थे। हाल ही में उमेश पाल की हत्या का आरोपी अतीक अहमद उमेश पाल राजू पाल की हत्या का गवाह बना।
अतीक इतने बाहुबली आदमी थे कि उन्होंने जरायम की दुनिया में हाथ मलकर राजनीति में कदम रखा और यहां भी बाहुबल के दम पर कहर बरपाते रहे। 1984 से अब तक उसके खिलाफ हत्या, फिरौती, अपहरण और रंगदारी जैसे 100 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं, लेकिन फिर भी उसे दोषी नहीं ठहराया गया। यह पहला मामला है जिसमें अतीक की सजा पर कल सुनवाई होगी।
इस बाहुबल की लिस्ट में पूर्व विधायक विजय मिश्रा नंबर 2 पर हैं, 4 बार भदोही के ज्ञानपुर इलाके से विधायक रहे। आपको बता दें, विजय मिश्रा जरायम की दुनिया में तीन दशक तक छाए रहे। उसके खिलाफ 75 से ज्यादा मामले दर्ज हैं। 2010 में बसपा सरकार में मंत्री रहे नंद गोपाल नदी पर हुए हमले में विजय मिश्रा का नाम दर्ज था। जरायम दुनिया में विजय मिश्रा के सफर की बात करें तो यह 80 के दशक में शुरू हुआ था। भदोही तब नया जिला था। 90 के दशक में विजय ब्लॉक बॉस बने इस बीच उनका नाम क्राइम की दुनिया में आने लगा। 2002 में सपा के टिकट से उन्होंने खुद विधायक और आसपास की जगहों पर भी अपने दबदबे से जीत दर्ज की।
साल 2009 के उपचुनाव में विजय मिश्रा उस समय सुर्खियां बटोर रहे थे। बताया जाता है कि जब पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने आई तो वे पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के साथ हेलीकॉप्टर से रवाना हुए। बाद में विजय मिश्रा पर ढाई लाख का इनाम घोषित कर दिया गया और उसे भी दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया। विजय के खिलाफ तब तक 60 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके थे। वह स्थायी विधायक थे और 2017 में निषाद पार्टी का चुनाव भी जीते थे। हालांकि तब तक उनके बुरे दिन शुरू हो गए थे। योगी सरकार से विजय मिश्रा की कई संपत्तियां कुर्क की गईं और बुलडोजर चलाए गए। हालांकि एक भी मामले में सजा नहीं मिली।
जानकारी के लिए बता दें, यूपी में माफिया के राज की शुरुआत 1980 के दशक से मानी जाती है, यही वह समय था जब पूर्वांचल में बाहुबलियों का राज शुरू हुआ था। इस लिस्ट में पूर्व विधायक हरिशंकर तिवारी भी शामिल हैं। 1980 के दशक में हरिशंकर तिवारी पर 26 से ज्यादा मामले दर्ज थे। इनमें हत्या, अपहरण, जबरन वसूली, रंगदारी जैसे मामले थे। 1985 में उन्होंने चिल्लूपार से गोरखपुर तक राजनीति में प्रवेश किया।
हरिशंकर तिवारी का खौफ ऐसा था कि पूर्वांचल में होने वाले ठेको में वो सीधे दखल करते थे। हरिशंकर तिवारी कई सरकारों में मंत्री रह चुके हैं। हरिशंकर तिवारी के खिलाफ मामले लगातार दर्ज किए गए लेकिन कभी कोई आरोप साबित नहीं हुआ। तमाम दर्ज मुकदमों के बावजूद हरिशंकर तिवारी की छवि रॉबिनहुड की बनी रही और वे चुनाव जीतते चले गए।
धनंजय सिंह पर 10वीं कक्षा में ही हत्या का आरोप था। इसके बाद धनंजय जौनपुर के उसी टीडी कॉलेज से छात्र राजनीति में आया था। उसके खिलाफ डकैती, लूट, रंगदारी और हत्या के सभी मामले दर्ज हैं। धनंजय का नाम मऊ जिले में एक गुट के नेता की हत्या के मामले में भी सामने आया है। धनंजय कई बार जेल गया लेकिन हर मामले में उसे सजा नहीं हो सकी। दसवीं में उन पर एक पूर्व शिक्षक की हत्या का आरोप लगा था। 1998 में धनंजय पर इतने मुकदमे दर्ज हुए थे कि उस पर 50 हजार का इनाम था। एक दिन, पुलिस ने घोषणा की कि धनंजय एक मुठभेड़ में मारा गया है, लेकिन जौनपुर के बाहुबली के मुठभेड़ में मारे जाने का दावा झूठा निकला।
जब धनंजय एक मामले को लेकर पुलिस के सामने पेश हुआ। आखिरकार, पुलिस इस मामले में उल्टा ही फंस गई और 34 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मानवाधिकार आयोग में मामला दर्ज किया गया। 2002 में पहली बार निर्दलीय विधायक बने धनंजय, 2007 में जौनपुर से जदयू के टिकट पर जीते थे 2009 में बसपा से जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2012 में धनंजय और उनकी पत्नी पर अपनी नौकरानी की हत्या का आरोप लगा था। इसके बाद धनंजय सिंह कभी नहीं जीते।
पूर्व MLC ब्रजेश सिंह वाराणसी के धौरहरा गांव से थे, कहा जाता है कि वह अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए जरायम की दुनिया में उतरे थे, अपने पिता की हत्या के आरोपी को अदालत के एक हॉल में एके 47 से भून दिया था। इस मामले में छह से ज़्यादा क़त्ल हुए थे। इसके बाद ब्रजेश सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन वह अस्पताल से भाग गया। बाद में उसने त्रिभुवन सिंह के साथ गिरोह बना लिया, त्रिभुवन के भाई की हत्या के बाद ब्रजेश का मुख्तार से झगड़ा शुरू हो गया।
कहा जाता है कि माफिया ब्रजेश का खौफ और कद इतना बढ़ गया था कि छोटा राजन से भी संपर्क के आरोप लगे हैं। पूर्वांचल में अपना राज्य स्थापित करने से पहले ही मुख्तार एक रोड़ा बन गया। इससे निपटने के लिए 2001 में मुख्तार के काफिले पर बड़ा हमला हुआ, जिसका दोष बृजेश सिंह पर मढ़ा गया। यह हमला एके-47 से किया गया था। हमले के बाद ब्रजेश छिप गया। 2008 में, ब्रजेश को उड़ीसा के भुवनेश्वर में गिरफ्तार किया गया था, जहां वह एक झूठे नाम से रह रहा था।
साल 2012 में ब्रजेश सिंह ने इसी जेल से विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। लेकिन 2016 में शाहजहांपुर जेल में रहते हुए उन्होंने वाराणसी विधान परिषद का चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। वर्तमान में उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह एमएलसी हैं। ब्रजेश के खिलाफ मकोका, टाडा, गैंगस्टर, हत्या, दंगा समेत कई गंभीर धाराओं में मामले दर्ज हैं।
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