नई दिल्ली: हिन्दुस्तान में कभी चीतों का बसेरा हुआ करता था, जो आजादी के वक्त ही खत्म हो गए थे। आखिरी तीन चीतों का शिकार 1947 में मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था। इसकी फोटो अभी भी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में रखी हुई है। उस दिन […]
नई दिल्ली: हिन्दुस्तान में कभी चीतों का बसेरा हुआ करता था, जो आजादी के वक्त ही खत्म हो गए थे। आखिरी तीन चीतों का शिकार 1947 में मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने किया था। इसकी फोटो अभी भी बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी में रखी हुई है। उस दिन के बाद से भारत में चीते नहीं दिखे। अब 75 साल बाद 8 चीतों को नामीबिया से लाया गया है।
1608 में ओरछा के राजा वीर सिंह देव के पास सफेद चीते थे। इन चीतों के शरीर पर काले की बजाय नीले धब्बे थे। जहांगीर ने अपनी किताब तुजुक-ए-जहांगीरी में इसका जिक्र किया है। इस तरह का ये इकलौता चीता कहा जा रहा था। इसके बाद धीरे-धीरे चीतों का शिकार शुरू हो गया। जो बचे भी थे उन्हें राजाओं और अंग्रेजों के शौक ने मार डाला। उस समय चीतों का शिकार करने पर इनाम मिलता था। चीतों के शावकों को मारने पर 6 रुपये और वयस्क चीतों को मारने पर 12 रुपये का इनाम मिलता था।
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के पूर्व उपाध्यक्ष दिव्य भानु सिंह ने चितों को लेकर एक खास किताब लिखी है। इसका नाम ‘द एंड ऑफ ए ट्रेल-द चीता इन इंडिया’ रखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि अलग-अलग राजाओं के शासनकाल में चीतों की उपस्थिति देखी गई है। कहा जाता है कि 1556 से 1605 तक शासन करने वाले मुगल बादशाह अकबर के समय हिन्दुस्तान में 10 हजार से अधिक चीते थे।
अकबर के बेटे जहांगीर ने पाला के परगना में चीतों की सहायता से 400 से ज्यादा हिरणों का शिकार किया था। मुगलकाल और बाद के कई राजाओं ने शिकार के लिए चीतों का सहारा लेना शुरू कर दिया। बता देें कि शिकार के लिए राजा चीतों को कैद करने लगे। अन्य पालतू जानवरों की तरह चीतों को राजा पालते थे। इसी वजह से प्रजनन दर में गिरावट आई और आबादी घटती चली गई।
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