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नई दिल्ली. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने इतिहास में पहली बार मीडिया के सामने आकर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाए हैं. इन जजों में जस्टिस चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन लोकुर और कुरियन जोसफ शामिल हैं. इन चारों जजों की प्रेस कॉन्फेंस के बाद पीएम नरेंद्र मोदी को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ आपातकालीन बैठक बुलानी पड़ी. कानूनी मामलों के जानकारों के अनुसार चारों जजों का नेतृत्व करने वाले जज जस्टिस चेलमेश्वर और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बीच तकराव नया नहीं है.
नवंबर 2017 में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने जस्टिस चेलमेश्वर की अगुआई वाली दो सदस्यीय बेंच के भ्रष्टाचार के मामले में घिरे ओडिशा हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज के खिलाफ एसआईटी जांच की याचिका पर सुनवाई के लिए बड़ी संवैधानिक बेंच को भेजने के फैसले को पलट दिया था. जस्टिस चेलमेश्वर की अगुवाई वाली दो सदस्यों की बेंच के इस फैसले को जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली पांच सदस्यीय बेंच ने पलट दिया.
इसके अलावा 20 सितंबर 2017 को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने कहा था कि वरिष्ठ वकीलों को सुबह के वक्त जरूरी मामलों में मेंशनिंग की इजाजत नहीं होगी और सिर्फ एडवोकेट ऑन रिकार्ड ही ये मेंशनिंग कर पाएंगे. इस कारण को भी जानकार जजों के बीच टकराव की बड़ी वजह मानते हैं. बता दें कि मेंशनिंग की प्रथा कोई लिखित नियम नहीं है. जस्टिस वैकेंटचलैया और जस्टिस अहमदी के चीफ जस्टिस रहने के वक्त वरिष्ठ वकीलों द्वारा मेंशनिंग परंपरा पर रोक लगी थी. लेकिन बाद में कई वरिष्ठ वकीलों ने ये शुरु किया क्योंकि मेंशनिंग के लिए वो फीस भी लेने लगे.
इसके अलावा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने चेलमेश्वर के फैसले को रद्द करते हुए कहा था कि कौन सी बेंच कौन से केस की सुनवाई करेगी, यह फैसला करना चीफ जस्टिस का काम है. किस बेंच में कौन से जज होंगे, यह तय करने का अधिकार भी सिर्फ चीफ जस्टिस को ही है.
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