नई दिल्ली: सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं इस पर आज सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना रहा है. इस दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट कानून नहीं बना सकती है, लेकिन कानून की व्याख्या जरूर कर सकती है. इसके साथ ही सीजेआई ने केंद्र सरकार के उस तर्क को खारिज कर दिया कि समलैंगिकता सिर्फ एक शहरी अवधारणा भर है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे साहित्य में समलैंगिकता का पुराना इतिहास रहा है और इसको सिर्फ शहरी लोगों के साथ जोड़ना गलत होगा.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में आगे कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(e) किसी भी व्यक्ति को शादी करने का अधिकार देता है. लेकिन यह भी सही है कि कुछ मामलों में साथी चुनने के अधिकार पर कानूनी रोक लगी है. जैसे प्रतिबंधित संबंधों में शादी करना, लेकिन समलैंगिक तबके के लोगों को भी अपने साथी के साथ वैसे ही रहने का अधिकार है जैसे दूसरों रहते हैं. इसके साथ ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अविवाहित जोड़े को बच्चा गोद लेने से रोकने वाला प्रावधान गलत है. इससे भेदभाव होता है. इस तरह का प्रावधान अनुच्छेद 15 (समानत का अधिकार) का हनन है. (यानी सीजेआई समलैंगिक जोड़ों के बच्चा गोद लेने के पक्ष में हैं)
बता दें कि सुप्रियो और अभय डांग इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता था. इसके साथ ही 20 और याचिकाएं भी सर्वोच्च न्यायालय में डाली गई थीं. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने इन याचिकाओं पर 10 दिनों तक सुनवाई की थी. इस बेंच में जस्टिस एस रवींद्र भट, संजय किशन कौल, पीएस नरसिम्हा और हिमा कोहली भी शामिल थे. सुनवाई के बाद कोर्ट ने 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
वहीं, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई से पहले 56 पन्नों का एक हलफनामा दाखिल किया था. इस हलफनामे में सरकार ने कहा था कि समलैंगिक विवाह को मंजूरी नहीं दी जा सकती है. समलैंगिक शादी भारतीय परिवार की अवधारणा के विरुद्ध है. पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों से भारतीय परिवार की अवधारणा होती है. दो विपरीत लिंग के व्यक्तियों के मेल को ही शुरुआत से शादी का कॉन्सेप्ट माना गया है और इसमें कोई छेड़खानी नहीं होनी चाहिए.
समलैंगिक विवाह पर SC का फैसला, CJI बोले- समलैंगिक संबंधों को कानूनी दर्जा दे सरकार
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