नई दिल्ली: आरोपी आसाराम बापू के धार्मिक साम्राज्य का खुलासा तब हुआ जब अहमदाबाद में उनके आश्रम के दो छात्रों की लाश साबरमती नदी से बरामद होने की वारदात के बारे में पता चला. आसाराम बापू एक ऐसा संत हैं, जो कुछ ही सालों में धर्म का ज्ञान प्रदान करते हुए करोड़ो की संपत्ति का मालिक बन गया. समय के साथ बापू के आश्रम पर नेता से लेकर अभिनेता तक माथा टेकने लगे. बता दे, बेहद कम समय में उन्होंने शैंपू, साबुन, अगरबत्तियां व अन्य सामान बेचकर देशभर में 400 से अधिक आश्रम का निर्माण किया. वही करोड़ो रुपए के बादशाह बने आसाराम बहुत जल्द भक्तों के बीच भगवान बन गए. इन सबके दौरान उनका धार्मिक साम्राज्य अपने ऊचे स्थान पर पहुंचता रहा, लेकिन पलक झपकते ही अचानक सब खाक में मिल गया. इसी के साथ भगवान रुपी आसाराम बापू आसमान से गिर ज़मीन पर आ गया.
सूत्रों के अनुसार आसाराम बापू का जन्म साल 1941 में उस जगह हुआ जो अब पाकिस्तान कहलाता है. वही उसने एक साधारण हिंदू परिवार में जन्म लिया था. बता दे, उनका जन्म थाउमल और महंगीबा सिरुमलानी के घर हुआ। दरअसल बाबा का बचपन का नाम आसुमल थाउमल हरपलानी है. पता चला है कि साल 1947 में देश विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से गुजरात के अहमदाबाद पहुंच गया था. जहां जीवन के शुरुआती दिनों में उन्होंने अहमदाबाद में तांगा चलाने का काम किया. वही साइकिल की दुकान में भी काम किया. कुदरत का करिश्मा तो देखो जो व्यक्ति तांगा चलाने वाला लड़का है असल में वो एक दिन करोड़ो की संपत्ति का बेताज बादशाह बन जाएगा.
दरअसल आसुमल थाउमल हरपलानी उर्फ आसाराम बापू सिर्फ चौथी कक्षा तक पढ़े हैं. वही साइकिल की दुकान में काम करने के दौरान ही आसुमल की मुलाकात लीला शाह बाबा से हुई. बताया जाता है कि बापू आसुमल लीला शाह की हैसियत और शानो-शौकत को देख अचंभित होते थे. इसी वजह से आसुमल उर्फ़ आसाराम भी उसी राह पर चल पड़ा था.
धर्म को धंधा बनाने के इस सफर में निकलने से पहले उन्होंने अपना असली नाम आसुमल को बदलकर आसाराम बापू रख लिया. बापू के बारे में कहा जाता है कि छोटी उम्र में वह कच्छ के संत लीला शाह बाबा का अनुयायी बनना चाहते थे, लेकिन उनका जिद्दी होने की वजह से उन्होंने बापू को कभी मुनासिब व्यक्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया. इस वक़्त आरोपी आसाराम बापू की सच्चाई सार्वजनिक तौर पर किसी के सामने नहीं आई थी. खबरों के अनुसार, आसुमल ने अपना नाम आसाराम बापू रखते ही अपना पहनावा भी बदल लिया और एक संत की तरह सफेद चोला धारण कर लिया. इसी को देखकर उनके सत्संग में लोग जमा होने लगे.
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