कर्नाटक में भाजपा के पास बहुमत न होने पर भी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाम पर बीजेपी के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को शपथ दिलाई गई. लेकिन अब भाजपा के लिए बहुमत परीक्षण में खरा उतरना एक चुनौती है. ऐसे में भाजपा के पास बहुमत साबित करने के लिए तीन विकल्प हैं.
नई दिल्ली. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणामों में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने से बड़ी मुसीबत खड़ी हुई. सरकार बनाने को लेकर बीती रात सुप्रीम कोर्ट में खूब ड्रामा भी हुआ. वहीं अब स्थिति ऐसी है कि बहुमत से 8 सीट दूर भाजपा के मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा शपथ ले चुके हैं जबकि गठबंधन करके बहुमत का आंकड़ा पार कर चुकी कांग्रेस और जेडीएस कर्नाटक में सत्ता पाने के लिए जद्दोजहद में जुटी हैं. येदियुरप्पा के शपथ लेने के बाद से भाजपा आशवस्त हो गई है कि सरकार तो बन गई बहुमत साबित करना कौन सी बड़ी बात है. विकल्प देखे जाएं तो भाजपा के लिए बहुमत साबित करना वाकई कोई बड़ी बात नहीं दिखाई पड़ती. भाजपा के पास कई रास्ते हैं-
प्लान- 1
सबसे पहले ये जान लें कि कर्नाकट की 224 विधानसभा सीटों में से केवल 222 पर ही मतदान हुए थे जिनमें से दो सीटों पर जेडीएस की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा रहे एचडी कुमारस्वामी ने जीत दर्ज की है ऐसे में नियम के अनुसार उनकी विधायकी सिर्फ एक ही सीट पर गिनी जाएगी. यानि कि अब विधायकों की प्रभावी संख्या 221 रह गई है. 104 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी को बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए 112 सीटों की जरूरत होगी. इसके लिए बीजेपी अगर अपने साथ एक बीएसपी, एक केपीजेपी और एक निर्दलीय विजेता विधायक को जोड़ लेती है तो उसे मात्र 5 और सीटों की आवश्यकता होगी जिसके लिए कांग्रेस या जेडीएस के 5 विधायकों की क्रास वोटिंग कराने से काम बन सकता है. ये इसलिए भी आसान काम है क्योंकि मतगणना वाले दिन से ही ये कहा जा रहा है कि एचडी देवगौड़ा का समर्थन करने के चलते कांग्रेस के 7 लिंगायत विधायक पार्टी से नाराज़ हैं.
बहुमत के लिए 112 के जादुई आंकड़े तक पहुंचने में अगर बीजेपी नाकाम रहती है तो दूसरा तरीका ये है कि बहुमत के जादुई नंबर को ही ‘पॉलिटिकल पावर, पैसा या प्रेशर’ के दम पर नीचे लाया जाए. ये तरीका भी आसान है. करना ये है कि बहुमत परीक्षण वाले दिन जेडीएस या कांग्रेस के 15 विधायकों को विधानसभा से दूर रहने को राजी कर लिया जाए.
प्लान- 2
भाजपा को बहुमत साबित करने के लिए एक दूसरा उपाय ये भी है कि अगर शक्ति प्रदर्शन के दिन जेडीएस या फिर कांग्रेस के 15 विधायकों को विधानसभा से दूर रहने के लिए राजी कर लिया जाए. ऐसा करने से विधानसभा में विधायकों की प्रभावी संख्या 206 रह जाएगी तो बहुमत के लिए जरूरी सीटों की संख्या अपने आप गिर जाएगी और 104 विधायकों के साथ ही बहुमत की सरकार बना पाएगी. वहीं अगर बीजेपी उस दिन किसी तरह 107 विधायकों के समर्थन के साथ पहुंचती है तो कांग्रेस या जेडीएस के मात्र 8 विधायकों का ही विधानसभा न पहुंचना भाजपा के लिए कारगर रहेगा.
बता दें कि कुछ विधायकों को फ्लोर टेस्ट वाले दिन विधानसभा आने से रोकना कोई बड़ी बात नहीं है. नियम है कि फ्लोर टेस्ट से पहले विधायकों को शपथ लेनी होगी लेकिन इस शपथ से पहले कोई बीमार पड़ गया तो इसके लिए कोई सजा नहीं है. छोटी मोटी शारीरिक परेशानी बता देना कोई बड़ी बात नहीं है.
प्लान- 3
सरकार बनाने के लिए बहुमत जुटाने का एक नमूना येदियुरप्पा ने साल 2008 में पेश किया था जब उनकी झोली में बहुमत से दो सीटें कम आईं थी तो पहले तो उन्होंने दो निर्दलीय विधायकों को साथ जोड़कर सरकार बनाई उसके बाद कांग्रेस और जेडीएस के लगभग 18 विधायकों से इस्तीफा दिलवाकर पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली. वहीं इस्तीफा देने वाले विधायकों ने जब बीजेपी की ओर उपचुनाव लड़ी तो उन्हें जीत हासिल हुई. बीएस येदियुरप्पा के इस प्लान को ‘ऑपरेशन कमल’ कहा जाता है.
उनकी इस पहुंच को देखकर ऐसे करना उनके लिए बाएं हाथ का खेल माना जा रहा है. बता दें कि हड़बड़ी में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 6 घंटों के भीतर येदियुरप्पा ने 4 आईपीएस अफसरों के ट्रांस्फर कर दिया, 2 अधिकारियों को खूफिया विभाग दे दिया जबकि 2 अन्य अधिकारियों को बेंगलुरु का डीसीपी बना दिया है.
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