1959 में इंगलैंड के खिलाफ खेलते हुए दो पसलियां तुड़वा लेने के बावजूद इस खिलाड़ी ने 81 रन की शानदार पारी खेली. एक बार तो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शतक मारने के बावजूद लोगों ने अगले दिन उसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अपने ऑफिस जाते देखा तो पूछा कि ऑफिस क्यों जा रहे हो? तो नारी का जवाब था कि सेंचुरी से मेरा घर थोड़ी चलेगा, वो तो नौकरी से ही चलेगा.
नई दिल्ली. इस भारतीय क्रिकेट कैप्टन की कहानी अजीब से संयोगों या हादसों से भरी पड़ी है, उसे आज भले ही गावस्कर, कपिल, तेंदुलकर, गांगुली या धोनी की तरह आज के युवा नहीं जानते लेकिन जब वो कैप्टन बना था तो भारतीय टीम का सबसे कम उम्र का कप्तान था. फर्स्ट क्लास मैच में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ऑर्थर मॉरिस के बाद वो पहला क्रिकेटर था, जिसने अपने पहले मैच की दोनों पारियों में शतक बनाए हों. लेकिन जन्मदिन के दिन ही एक बॉल ने उसके कैरियर का दी एंड कर दिया और वो तारीख थी 7 मार्च 1962. इस क्रिकेट कैप्टन का नाम था नारी कांट्रेक्टर.
मुंबई के परिवार से ताल्लुक रखने वाला ये खिलाड़ी उस वक्त गुजरात का वासी बन गया, जब उसकी प्रेग्नेंट मां गुजरात के दाहोद से लौटते वक्त गोधरा के पास डिलीवरी पेन से परेशान हो गई. दिलचस्प बात थी कि ट्रेन के ड्राइवर की सीट पर उसके अपने अंकल, उन्होंने मदद की और उसे गोधरा में उतार लिया, जहां पैदा हुए नारी कांट्रेक्टर. जब एमसीए के लिए ट्रायल दे रहे नारी को गुजरात के कप्तान फीरोज खम्बाटा ने देखा तो गुजरात से खेलने का ऑफर दिया लेकिन नारी को लगता था कि उनका सलेक्शन एमसीए में पाकिस्तान सर्विसेज एंड भावलपुर क्रिकेट एसोसिएशन के साथ मैचों के लिए हो जाएगा, जो नहीं हुआ तो नारी ने गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन को एक टेलीग्राम लिखा, जवाब में उन्हें बड़ौदा के मैच से पहले ट्रायल के लिए बुलाया गया. दिलचस्प संयोग देखिए फायनल टीम में कैप्टन खम्बाटा की जगह नारी का नाम था.
नारी ने उस मैच की दोनों पारियों में शतक जमाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड की बराबरी कर ली. उसके बाद तो नारी का जलवा कायम हो गया. बहुत जल्द उनका टीम इंडिया में सलेक्शन हो गया. ये सब कुछ एक साल के अंदर हुआ, जो बंदा मुंबई की टीम में जगह नहीं बना पाया, वो भारत के लिए खेलने के लिए चुन लिया गया था, उस वक्त नारी की उम्र महज 21 साल थी. एक और संयोग नारी के साथ हुआ, एक मैच में जब बीनू मनकड़ खेलने नहीं आ पाए, तो नारी को ओपनिंग करने का मौका मिल गया, ये 1955 में न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट मैच की बात है. एक और बड़ा संयोग नारी के साथ ये हुआ कि वेस्टइंडीज के दौरे के लिए जब पॉली उमरीगर ने कप्तानी से मना कर दिया और रामचंद ट्रायल में फेल हो गए तो नारी कॉन्ट्रेक्टर को कप्तान चुन लिया गया. वो बाएं हाथ के बल्लेबाज थे.
1959 में इंगलैंड के खिलाफ खेलते हुए दो पसलियां तुड़वा लेने के बावजूद नारी ने 81 रन की शानदार पारी खेली. एक बार तो ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शतक मारने के बावजूद लोगों ने अगले दिन उसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अपने ऑफिस जाते देखा तो पूछा कि ऑफिस क्यों जा रहे हो? तो नारी का जवाब था कि सेंचुरी से मेरा घर थोड़ी चलेगा, वो तो नौकरी से ही चलेगा. ये उन दिनों का क्रिकेट था. 1961-62 में इंगलैंड के खिलाफ सीरीज जीतने के बाद नारी की कप्तानी में टीम को वेस्ट इंडीज के दौरे पर भेजा गया था. उन दिनों हैलमेट पहनने का चलन नहीं था, बाउंसर या बीमर फेंकने पर कोई रोक या ऊंचाई का नियम नहीं था. ये वो दौर था जब वेस्ट इंडीज के कैरेबियन बाउंसर्स का बड़ा खौफ था.
शुरूआती दो टेस्ट मैचों में भारत की बुरी हार हुई, खुद नारी कांट्रेक्टर जैसा बल्लेबाज 4 पारियों में कुल 26 रन बना पाया था. अब एक मैच बारबडोस की टीम के साथ था. तब वेस्ट इंडीज के कप्तान फ्रेंक वॉरेल ने चार्ली ग्रिफिथ को लेकर एक चेतावनी भी नारी को दी थी. 23 साल का ग्रिफिथ काफी खतरनाक बॉलर था. बारबडोस के 394 रन के स्कोर के बाद पारी की शुरुआत दिलीप सरदेसाई के साथ नारी कांट्रेक्टर ने की थी. ब्रेक के बाद जीरो पर आउट हो गए दिलीप, तो रुसी सुरती नारी का साथ देने आए. अब ग्रिफिथ के नए ओवर में सामने नारी कांट्रेक्टर थे, पहली बॉल ही नाक के करीब से गुजरी, अगली बॉल पर रुसी सुरती चिल्लाए चकिंग कर रहा है ये तो… नारी ने कहा तो एम्पायर को बोलो. ऐसे ही चार बॉल्स निकल गईं, पांचवी बॉल संयोगों के बादशाह के लिए हादसा बन गई. नारी के सर पर बड़ी तेजी से लगी, वो खुद को बचा नहीं पाए, नाक और कान से खून बहने लगा. उन्हें फॉरन हॉस्पिटल ले जाया गया. ये हादसा भी उस दिन हुआ, जिस दिन उनका जन्मदिन था यानी 7 मार्च को, 28 साल के हुए थे उस दिन वो. बाद में उसी मैच में विजय मांजरेकर भी चार्ली की बॉल पर घायल होकर लौटे.
टीम के मैनेजर थे गुलाम अहमद, उन्होंने स्थानीय हॉस्पिटल में इमरजेंसी ऑपरेशन की इजाजत दे दी, दो ऑपरेशन हुए. खून देने वालों में पहले थे वेस्ट इंडीज के कप्तान फ्रेंक वॉरेल, चंदू बोर्डे, बापू नाडकर्णी और पॉली उमरीगर ने भी खून दिया. बड़ी मुश्किल से नारी की जान बच पाई, सर में उनके स्टील की प्लेटें हमेशा के लिए डाल दी गईं. इससे उनका कैरियर तबाह हो गया. हालांकि नारी ने बाद में बयान दिया था कि ग्रिफिथ की चौथी बॉल पर अचानक से पवेलियन की कोई खिड़की किसी ने खोल दी थी, उन दिनों मैदान में स्क्रीन रखने की परम्परा नहीं थी, सो मेरा सारा ध्यान बंट गया और अगली बॉल को मैं तीन से चार इंच पहले ही देख पाया. लेकिन फिर भी नारी ने चार्ली ग्रिफिथ को क्लीन चिट दे दी थी.
गुलाम मोहम्मद की ही सलेक्शन कमेटी ने नेशनल टीम में नारी कांट्रेक्टर को चुनने से मना कर दिया, उनकी पत्नी को आराम करवाने की सलाह दी. हालांकि वो 10 महीने के अंदर ही प्रथम श्रेणी मैच खेलने के लिए उतरे. दिलचस्प बात थी उनके कप्तानी और इंडियन टीम दोनों से रिटायरमेंट का फायदा मिला नवाब पटौदी को, जिन्हें काफी कम उम्र में इंडिया का कप्तान चुन लिया गया. ये भी अनोखा संयोग है. उन दिनों नारी कांट्रेक्टर का इतना क्रेज युवाओं में था कि जब जयललिता का इंटरव्यू सिमी ग्रेवाल ने अपने शो के लिए किया, तो लाइफ का पहला क्रश वाले सवाल के जवाब में जयललिता ने नारी कांट्रेक्टर का नाम लिया था.
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