इंदिरा गांधी की जिंदगी के लिए 7 जनवरी की तारीख काफी अहम कही जाती है. क्योंकि करीब 2 साल की इमरजेंसी और ढाई साल सत्ता से बेदखल रहने के बाद उन्होंने इसी दिन से पूरे दम के साथ सत्ता में वापसी की थी.
नई दिल्ली. इंदिरा गांधी की जिंदगी के लिए ये तारीख काफी अहम थी. करीब दो साल की इमरजेंसी और करीब ढाई साल सत्ता से बेदखल रहने के बाद इंदिरा गांधी ने इस तारीख से पूरे दम खम के साथ सत्ता में वापसी की. उन्हें क्या पता था कि ये उनका आखिरी लोकसभा चुनाव भी होगा. ढाई साल का वो वक्त इंदिरा के लिए आसान तो बिलकुल नहीं था. इमरजेंसी के दौरान इंदिरा की जो पॉवर हंग्री की इमेज बनी, वो अगले ढाई सालों में उसे तोड़कर फिर से सत्ता में दमदार वापसी करना भी कोई आसान काम नहीं था. इंदिरा को गिरफ्तार कर लिया गया तो उनकी रिहाई के लिए उनके समर्थकों ने एक प्लेन हाईजैक कर लिया और इंदिरा की रिहाई की शर्त रख दी. सब झंझावातों से उबर कर जिस दिन इंदिरा की वापसी हुई वो दिन था 7 जनवरी 1980.
12 जून 1975 का दिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट का कोर्टरूम नंबर 24, वकीलों, पत्रकारों और नेताओं से खचाखच भरा हुआ था. पूरी कोर्ट में उस दिन आम दिनों के मुकाबले कई गुना ज्यादा भीड़ थी. उस दिन इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण की याचिका पर फैसला आना था. राजनारायण रायबरेली में इंदिरा के खिलाफ 1971 में लड़े थे और हारने के बाद उन्होंने आरोप लगाए कि इंदिरा ने चुनाव जीतने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया, कई तरह के नियमों को तोड़ा. चार साल से ज्यादा उस केस को चलते हुए हो गया था, 23 मई 1975 को केस की सुनवाई पूरी हो गई थी, 12 जून को जज जगमोहन लाल सिन्हा ने जैसे ही इंदिरा को दोषी करार दिया. पूरे कोर्ट में सन्नाटा छा गया. उन्होंने इंदिरा का चुनाव ही अवैध करार नहीं दिया बल्कि अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दे दिया, जिससे बाद में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली. अगले तेरह दिन के अंदर तो देश में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया गया, विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और ढेर सारे प्रतिबंध पूरे देश भर में लागू कर दिए गए.
दो बार इमरजेंसी को इंदिरा ने बढ़ा भी दिया. ये वो दौर था जब संजय गांधी का प्रादुर्भाव हुआ, बिना किसी पद पर होते हुए भी संजय उस वक्त देश की सबसे बड़ी ताकत बन गए थे. तकरीबन दो साल बाद इंदिरा ने इलेक्शंस का ऐलान कर दिया, उस वक्त इंदिरा के दवाब में मीडिया में जो लेख छप रहे थे, उनको पढ़कर इंदिरा ने अपनी पॉपुलेरिटी का अंदाजा गलत लगाया. उसको लगा कि वो सत्ता में फिर वापसी कर लेंगी, लेकिन जेपी ने विपक्ष के आंदोलन की अगुआई अपने हाथ में ले ली. जेपी ने देश के लोगों से आव्हान कर दिया कि, आपके पास ये आखिरी मौका है- डेमोक्रेसी और डिक्टेटरशिप में से किसी एक को चुनने का. जेपी की आंधी देखकर जगजीवन राम, हेमवंती नंदन बहुगुणा और नंदनी सत्पथी ने कांग्रेस से तोड़कर अपनी नई पार्टी ली कॉन्ग्रेस ऑफ डेमोक्रेसी (सीएफडी). आलम ये हुआ कि इंदिरा और संजय दोनों मां-बेटे अपनी सीट पर हार गए. कांग्रेस 350 से खिसककर 153 सीट्स पर आ गई. लोकसभा में गांधी की नामौजूदगी में यशवंत राव चाह्वाण को लीडर ऑफ अपोजीशन बना दिया गया. इस हार के बाद कांग्रेस में फिर फूट पड़ीं, इंदिरा ने अपनी पार्टी का नाम कांग्रेस (आई) यानी कांग्रेस (इंदिरा) कर लिया.
अगले साल ही इंदिरा को लोकसभा में लाने के लिए चिकमंगलूर सीट पर कांग्रेस सांसद डी बी चंद्रेगॉडा ने सीट से इस्तीफा दे दिया, उस सीट पर उपचुनाव हुआ. उस जिले की आठों विधानसभा सीट पर कांग्रेस काबिज थी, सो जीतना आसान था. उसी चुनाव में एक दिलचस्प नारा लगा- एक शेरनी दस लंगूर, चिकमंगलूर चिकमंगलूर. जीत कर इंदिरा फिर से लोकसभा में आ गईं. मोरोराजी देसाई पीएम बन गए थे. लेकिन चौधरी चरण सिंह इंदिरा से काफी खफा थे,उन दिनों वो जनता पार्टी सरकार में होम मिनिस्टर थे. उन्होंने इमरजेंसी में होने वाली ज्यादतियों और विपक्षियों को जेल में ही मारने के षडयंत्र के आरोप लगाकर इंदिरा को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी का ऐसे में मतलब था कि संसद सदस्यता हाथ से जा सकती थी और गई भी. लेकिन चरण सिंह के इस कदम से अब तक इमरजेंसी के चलते बैकफुट पर खड़ी कांग्रेस फ्रंटफुट पर आ गई, इंदिरा के समर्थन में सुहानुभूति लहर देश में चलने लगी.
कांग्रेस के दो कार्यकर्ताओं देवेन्द्र पांडेय और भोलानाथ पांडेय ने ग्रेनेड और पिस्तौल के बल पर इंडियन एयरलाइंस का एक प्लेन हाईजैक कर लिया, जिसमें 123 यात्री थे. उन्होंने जब यात्रियों को छोड़ने के लिए इंदिरा की रिहाई की मांग की तो देश चौंक गया. वो प्लेन को लखनऊ से लेकर बनारस चल गए. बाद में आश्वासनों के बाद उन्होंने 12 घंटे के बाद प्लेन को छोड़ा. इंदिरा पर हुआ ये एक्शन जनता पार्टी सरकार के लिए उलटा पड़ गया और देश भर में हुई हिंसा में कई लोग मारे गए. फिर उसके बाद जनता पार्टी सरकार के अंदर ही फूट पड़ गई, आरएसएस की दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर वबाल हुआ. जगजीवन राम और चरण सिंह लगातार अपनी ही सरकार को घेर रहे थे. भारतीय लोकदल समेत कुछ पार्टियों की समर्थन वापसी के बाद विश्वास मत पर वोटिंग में हारकर मनमोहन देसाई ने जुलाई 1979 मे इस्तीफा दे दिया और चरण सिंह को पीएम बना दिया गया. इंदिरा और संजय ने उन्हें बाहर से समझौते का भरोसा दिया. लेकिन बदले में उन्होंने एक शर्त रखी कि इंदिरा और संजय के ऊपर लगे सभी आरोप वापस ले लिए जाएंगे. लेकिन चरण सिंह नहीं माने औऱ अगले ही महीन अगस्त में ही 24 दिन के अंदर उन्होंने इस्तीफा दे दिया. अब इलेक्शन के अलावा और कोई चारा नहीं था.
इस बार इंदिरा गांधी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती थीं. चुनावों से पहले वो जामा मस्जिद दिल्ली के शाही इमाम सैयद अब्दुलाला बुखारी से मिलीं और मुसलमानों के वोट कांग्रेस के हक में सुरक्षित करने के लिए दस प्वॉइंट्स के प्रोग्राम पर हस्ताक्षर किए. जनता पार्टी सरकार की नाकामी और सरकार चलाने में उनके कम अनुभव को उन्होंने चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाया और एक दिन वो आया जब इंदिरा ने प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी की, कुल सीट्स मिली 353 यानी पिछली बार से कुल 200 सीट्स ज्यादा और वो तारीख थी 7 जनवरी 1980. इंदिरा गांधी दो जगह से चुनाव जीती, आंध्रप्रदेश के मेडक से एस जयपाल रेड्डी को हराया और रायबरेली से राजमाता विजयाराजे सिंधिया को हराया. संजय गांधी भी अमेठी से जीत गए. लेकिन इंदिरा गांधी ने लोगों की सलाह पर मकर संक्रांति के दिन यानी 14 जनवरी को पीएम पद की शपथ ली. हालांकि उसी साल दो और बड़ी घटनाएं हुईं, 6 अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई और 23 जून को संजय गांधी की प्लेन एक्सीडेंट में दर्दनाक मौत हो गई.
जब इंदिरा गांधी को मिली 1971 की जंग के हीरो की बगावत और तख्ता पलट की सीक्रेट इनफॉरमेशन